वाराणसीः देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी अपने सबसे बड़े पर्व महाशिवरात्रि का इंतजार कर रही है. यहां के लोग इस खास दिन पर पूरी तरह से बाबा की भक्ति में रमे नजर आते हैं. इससे पहले बसंत पंचमी के दिन बाबा विश्वनाथ के विवाह रस्म की शुरुआत हो चुकी है. परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार, बसंत पंचमी के दिन हिमालय राज भगवान शंकर को तिलक चढ़ाने के लिए पहुंचे थे और अब भी बाबा विश्वनाथ की नगरी में इस परंपरा का निर्वहन कई सौ सालों से होता आ रहा है.
इस परंपरा का निर्वहन श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से आगे महंत परिवार में होता है, जहां बाबा विश्वनाथ की रजत पंच बदन प्रतिमा को इस परंपरा के लिए भक्तों के दर्शनार्थ खोला जाता है. बसंत पंचमी को बाबा विश्वनाथ का तिलकोत्सव संपन्न हुआ और गीत संगीत के बीच लोगों ने बाबा की इस अद्भुत छवि के दर्शन किए.
बसंत पंचमी के दिन वैदिक ब्राह्मणों के मंत्रोच्चार के बीच बाबा विश्वनाथ की पंच बदन रजत प्रतिमा का विधि विधान से पूजन कर पंचगव्य पंच द्रव्य दूध, गंगाजल से स्नान करवाने के बाद रजत सिंहासन पर विराजमान कराया गया. बाबा का विशेष श्रृंगार भी संपन्न हुआ. परंपरा अनुसार, शाम लगभग 5:00 बजे बाबा की प्रतिमा को तिलक चढ़ाया गया. इसके बाद बाबा को ठंडाई, पंचमेवा और मिष्ठान का भोग लगाकर महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने बाबा विश्वनाथ की इस चल रजत प्रतिमा की भव्य आरती संपन्न करवाई.
अब इस रस्म अदायगी के बाद शिवरात्रि के मौके पर बाबा के विवाह की रस्म पूरी होगी और होली से पहले रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ माता गौरा और बाल गणेश की चल रजत प्रतिमा रजत सिंहासन पर सवार होकर भक्तों के कंधे से सीधे विश्वनाथ मंदिर ले जाई जाएगी. पूरी वैवाहिक गीत भी गायब है. श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में गुरुवार को गणतंत्र दिवस के दिन बाबा का तिरंगा स्वरूप का श्रृंगार किया गया और पूरे विधि विधान से भोग आरती भी किया गया.
डॉक्टर कुलपति तिवारी ने बताया महंत आवास पर सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा का निर्वहन हुआ. गुरुवार को यहां पर बाबा के गृहस्थ का लोकाचार हुआ. बाबा का यहां पर परिवार है. लोकाचार्य के रूप में यह सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा है. बाबा का विवाह शिवरात्रि के दिन होता है. बाबा का गौना रंग भरी एकादशी के दिन किया जाता है. पुराणों के अनुसार राजा हिमालय आज ही के दिन तिलक लेकर बाबा के द्वार पर पहुंचे थे, उसी परंपरा को यहां पर निभाया.