वाराणसीः योगी सरकार प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देने की बात करती है. मेडिकल में इस पर अधिक ध्यान देने के भी निर्देश हैं, लेकिन वाराणसी स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय(Sampurnanand Sanskrit University) के आयुष विभाग में ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है. यहां पर ऐसे 6 विषय हैं, जिनमें शोध कार्य कराने के लिए पीएचडी के शिक्षक ही नहीं हैं. ऐसे में जिन परीक्षार्थियों ने शोध कार्य की परीक्षा (पीएचडी) पास कर ली है उनका भविष्य अधर में लटका है.
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय ने पीएचडी की परीक्षा(PhD exam) आयोजित की थी. विश्वविद्यालय से संबद्ध आयुर्वेद महाविद्यालय ने 13 विषयों में पीएचडी के लिए आवेदन लिया था. वह भी उस समय जब विश्वविद्यालय में सात विषयों के पीएचडी के शिक्षक ही मौजूद नहीं थे. दरअसल, विश्वविद्यालय से 2020 में आयुर्वेद महाविद्यालय के 12 विभागों में पीएचडी के लिए वैकेंसी निकाली गई थी. आपको बता दें कि संपूर्णानंनद संस्कृत विश्वविद्यालय गोरखपुर आयुष महाविद्यालय (Gorakhpur Ayush College) का हिस्सा बन चुका है.
ये थी आवेदन की तिथि और प्रक्रिया
आवेदन साल प्रकिया 6 सितंबर 2021 ऑनलाइन शुरू हो गई थी. 27 सितंबर तक आवेदन शुल्क जमा करने की अंतिम तिथि थी. प्रवेश परीक्षा की तिथि 27 अक्टूबर को प्रस्तावित थी, जिसे 17 अप्रैल को आयोजित किया गया. इस परीक्षा में कुल 1150 परीक्षार्थियों ने भाग लिया था.
पढ़ेंः BAMS की कॉपी बदलने के मामले में STF ने परीक्षा नियंत्रक से की पूछताछ
इन विषयों में नहीं हैं पीएचडी के शिक्षक
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय (आयुष विभाग) में लगभग 6 विषयों में पीएचडी के शिक्षक नहीं हैं. जानकारी के अनुसार इनमें संहिता संस्कृत एवं सिद्धांत, क्रिया शरीर, रोग निदान, द्रव्यगुण, अगद तंत्र एवं व्यवहार आयुर्वेद और कौमार्य विभाग में कोई भी शिक्षक जिसने पीएचडी किया हो उपलब्ध नहीं है. इसके बाद भी विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी के शोधार्थियों से आवेदन मांगे गए और परीक्षा कराई गई है.
शोधार्थियों का क्या होगा? वैकल्पिक व्यवस्था होगी?
विश्वविद्यालय ने आयुष के जिन 13 विषयों में शोध के लिए आवेदन मांग थे, उनमें से 7 में तो पीएचडी के शिक्षक हैं, लेकिन जिन 6 में नहीं हैं उन विषयों के शोधार्थियों का क्या होगा? ऐसे छात्रों को काफी दिक्कतों का सामना कर पड़ सकता है. उनकी मेहनत बेकार हो सकती है और उनके अध्यन और अध्यापन क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है, क्योंकि इनके पास योग्य शिक्षक का अभाव था. इस मामले में प्रो. नीलम गुप्ता का कहना था कि इनके लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी.
पढ़ेंः बीच रास्ते में बिगड़ी एंबुलेंस की तबीयत, धक्का लगाने पर भी नहीं हुई स्टार्ट, वीडियो वायरल
पीएचडी के लिए क्या है UGC का नियम?
यूजीसी के नियमों के मुताबिक वही शिक्षक शोध करा सकता है, जिसने खुद पीएचडी की हो. एमडी किए हुए शिक्षक शोधार्थियों के गाइड हो सकते हैं. ऐसे शिक्षक जिस विषय में पीएचडी हैं उसी विषय के गाइड बन सकते हैं. साथ ही नियमित आचार्य जिसने किसी मान्यता प्राप्त पत्रिका में 5 शोध प्रकाशित किए हैं गाइड बन सकता है. ऐसा भी हो सकता है कि वह शिक्षक जिसने संबंधित विषय में पीजी किया और 15 वर्ष का अध्यापन का अनुभव हो वह गाइड बन सकता है या पीएचडी करा सकता है.
पढ़ेंः AMU के जेएन मेडिकल कॉलेज परिसर में मिले नवजात शिशुओं के शव, हड़कंप