वाराणसी: धनतेरस का पर्व सुख समृद्धि और संपन्नता की देवी माता लक्ष्मी को समर्पित माना जाता है, लेकिन काशी में धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी के अलावा भूमि देवी और माता अन्नपूर्णा की भी पूजा का विधान है. सबसे बड़ी बात यह है कि विश्वनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित माता अन्नपूर्णा के मंदिर में धनतेरस से लेकर अन्नकूट तक चार दिनों के लिए माता अन्नपूर्णा की स्वर्णमई प्रतिमा के दर्शन भक्तों को मिलते हैं और दर्शन के साथ भक्तों को वह महाप्रसाद भी मिलता है, जिसका उन्हें एक साल इंतजार होता है. इस महाप्रसाद में धान का लावा और 50 पैसे का वह बंद हो चुका सिक्का होता है जो भले ही चलन में न हो लेकिन माता के इस आशीर्वाद को घर में रखने से पूरे साल न ही धन की कमी होती है न ही धान्य की.
सिर्फ 4 दिन होते हैं इस प्रतिमा के दर्शन
माता अन्नपूर्णा के बारे में यह कहा जाता है कि काशी में भगवान शिव माता अन्नपूर्णा से भिक्षा लेकर स्वयं अपना पेट भरते हैं और माता अन्नपूर्णा काशी में रहकर किसी को कभी भूखा नहीं रहने देतीं और इसी मान्यता के साथ दीपावली से पहले धनतेरस के मौके पर काशी में माता अन्नपूर्णा और अन्न पैदा करने वाली भूमि देवी के साथ माता लक्ष्मी की स्वर्णमई प्रतिमा के दर्शन का विधान है, जो धनतेरस से शुरू होता है और चार दिन बाद पड़ने वाले अन्नकूट तक चलता है.
नहीं होती धनधान्य की कमी
ऐसी मान्यता है कि आज के दिन माता के स्वर्ण प्रतिमा का दर्शन करने के बाद अनाज के रूप में धान का लावा और धन के रूप में कुछ पुराने सिक्के भक्तों को महाप्रसाद के रूप में दिए जाते हैं. इसे भक्त अपने घर में धन की कोठरी में और धान ने की कोठरी में रखकर पूरे वर्ष पर्यंत धनधान्य से परिपूर्ण रहते हैं. वहीं माता अन्नपूर्णा के इस भव्य स्वरूप का दर्शन करने बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ हर साल पहुंचती है.