वाराणसी: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग में मुस्लिम प्रोफेसर की नियुक्ति को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. गुरूवार को इस प्रकरण को धार्मिक रंग देते हुए अब धर्मगुरु भी छात्रों की इस लड़ाई में कूद गए हैं. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद गुरुवार छात्रों के समर्थन में पहुंच गए. छात्रों के समर्थन में उतरे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मुस्लिम प्रोफेसर की नियुक्ति को गलत बताया है.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि अगर छात्र इस मामले में पीछे हट भी जाएंगे तो धर्माचार्य और साधु संत इस मुद्दे को आगे बढ़ाते रहेंगे. यह मुद्दा धर्म से जुड़ा मामला है और इस मामले को राजनीतिक रंग नहीं देने दिया जाएगा.
मुस्लिम प्रोफेसर की नियुक्ति पर मचा बवाल
दरअसल, 14 दिन पहले काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र संस्कृत और धर्म विज्ञान संकाय में फिरोज खान नाम के मुस्लिम प्रोफेसर की नियुक्ति की गई है. विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि यूजीसी गाइडलाइन को फॉलो करते हुए इस नियुक्ति को किया गया, जबकि छात्र इसका विरोध कर रहे हैं. छात्रों का कहना है कि महामना के मूल्यों और आदर्शों से खिलवाड़ नहीं करने दिया जाएगा. पहले से यह महामना ने निर्धारित कर रखा है कि धर्म एवं विज्ञान संकाय में गैर हिंदू की नियुक्ति नहीं की जा सकती. इसका एक शिलापट्ट भी लगा है, लेकिन इन सब चीजों को दरकिनार कर यह नियुक्ति की गई है, जिसको लेकर अब इस मामले में धर्मगुरु भी कूद पड़े हैं.
छात्रों के समर्थन में उतरे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती
इस मामले में छात्रों का समर्थन करने पहुंचे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का कहना है कि यह गलत है और इसका समर्थन किसी हाल में नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि धर्म एवं विज्ञान संकाय में संस्कृत की पढ़ाई नहीं की जाती, बल्कि व्यावहारिक तौर पर धर्म से जुड़ी चीजों की जानकारी छात्रों को दी जाती है. जो व्यक्ति खुद धर्म से जुड़ी चीजों के बारे में नहीं जानता वह अपने शिष्यों को इस बारे में जानकारी कहां से देगा. उनका कहना है कि इस बारे में मैंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के अधिकारियों से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन मुझसे बात करने को कोई तैयार नहीं है.
हटा दी जाए महामना की प्रतिमा: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि छात्रों को मैं समर्थन इसलिए दे रहा हूं, क्योंकि पूरे प्रकरण को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है. इस पूरे प्रकरण में हिंदू और मुस्लिम दो भागों में बांटकर दिखाने का प्रयास है, जबकि ऐसा नहीं है. यहां विरोध किसी धर्म विशेष के व्यक्ति का नहीं है, उनका स्वागत है. उन्होंने कहा कि संकाय में जिस प्रोफेसर को भेजा गया है, उससे हटाकर दूसरी जगह ट्रांसफर कर दिया जाए. विश्वविद्यालय प्रशासन कह रहा है कि यूजीसी की गाइडलाइन के हिसाब से अब यूनिवर्सिटी चलेगी तो मुख्य द्वार पर लगी महामना की प्रतिमा को हटा दिया जाए. अगर महामना अप्रासंगिक नहीं हैं तो उनके विचारों और उनके आदर्शों की बात कर यूनिवर्सिटी को क्यों चलाया जा रहा है.