वाराणसी: शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (shankaracharya swami swaroopanand saraswati) का रविवार दोपहर में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. स्वामी स्वरूपानंद के निधन के बाद अब उनके उत्तराधिकारी (successor of shankaracharya swami swaroopanand) के चयन को लेकर कयास लगाए जाने लगे हैं. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने अपने दो शिष्य को दंडी स्वामी परंपरा के अनुरूप शिक्षा दी थी. जिसमें पहले और बड़े शिष्य स्वामी सदानंद सरस्वती और दूसरे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती हैं. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निजी सचिव स्वामी सुबुधानंद सरस्वती उनके उत्तराधिकारी की रेस में शामिल माने जा रहे हैं.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती वाराणसी में रहकर श्री विद्या मठ के अलावा ज्योतिर्मठ बद्रिका आश्रम की जिम्मेदारी संभालते हैं जबकि स्वामी सदानंद सरस्वती को स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की तरफ से द्वारिका शारदा पीठ के प्रमुख के तौर पर नियुक्त करते हुए वहां की जिम्मेदारी पहले ही सौंपी जा चुकी है. स्वामी सुबुधानंद सरस्वती हमेशा से ही स्वामी स्वरूपानंद के साथ रहते थे और उनका सारा कार्यभार भी देखते थे. इन दोनों शिष्यों के पास दो अलग-अलग पीठ की अलग-अलग जिम्मेदारियां पहले से मौजूद हैं.
इस बारे में आश्रम से जुड़े सूत्रों से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि संत परंपरा में अपने उत्तराधिकारी का चयन पहले से ही कर दिया जाता है. अपने जीवनकाल में ही अपने उत्तराधिकारी का चयन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने भी कर दिया है. लेकिन वह कौन है यह काशी विद्वत परिषद समेत देशभर के बड़े संत अखाड़ा और अन्य दो पीठ के शंकराचार्य मिलकर निर्धारित करेंगे. क्योंकि स्वामी सदानंद सरस्वती बड़े और पुराने शिष्य हैं इसलिए उनके ऊपर भी बड़ी जिम्मेदारी है.
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कौन हैं स्वामी सदानंद सरस्वती
रसिंहपुर मध्य प्रदेश के रहने वाले स्वामी सदानंद सरस्वती का पूर्व नाम रमेश अवस्थी था और 18 वर्ष की अवस्था में वह शंकराचार्य आश्रम आए थे. ब्रह्मचारी की दीक्षा लेने के बाद वह ब्रह्मचारी सदानंद हो गए थे और अब गुजरात के द्वारका शारदा पीठ में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के तौर पर वह सारा कार्यभार देख रहे हैं.
कौन हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के रहने वाले है . उनका पुराना नाम उमाकांत पांडेय था. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में उन्होंने पठन-पाठन के साथ छात्र नेता के तौर पर अपनी एक अलग पहचान बनाई थी, लेकिन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से प्रभावित होकर उन्होंने ब्रह्मचारी की दीक्षा ली और उनका नाम ब्रह्मचारी आनंद स्वरूप हो गया. बाद में बनारस में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से डंडी शिक्षा लेने के बाद उन्हें नया नाम स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती मिला. इसके बाद उन्हें उत्तराखंड के बद्रिका आश्रम में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में ज्योतिष पीठ का कार्यभार सौंपा गया है. फिलहाल, इन दो नामों को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है. ऐसा माना जा रहा है कि इन दोनों में से किसी एक को ही उत्तराधिकारी के तौर पर जिम्मेदारी दी जा सकती है.
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