वाराणसी : आज पूरा देश भारत माता के महान सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस को उनकी 124वीं जयंती पर नमन कर रहा है. देश के स्वतंत्रता आंदोलन में सुभाष चंद्र बोस के योगदान को पूरा देश कभी भूल नहीं सकता है. दूसरी तरफ बनारस और काशी हिंदू विश्वविद्यालय भी आंदोलनकारियों का गढ़ हुआ करता था. 1939 में कांग्रेस से अलग होने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने पूरे देश में घूमकर जनसभा किया. इसी कड़ी में वह बनारस आए इस दौरान वो काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भी गए.
बाल्यावस्था में पहुंचे थे काशी
नेताजी सुभाष चंद्र बोस 1910 में मात्र 13 वर्ष की आयु में काशी आए थे. यहां पर आकर वह सन्यास लेना चाहते थे, लेकिन अपने मौसी और मौसा के समझाने पर वह घर लौट गए. 7 मार्च 1940 को वह आखरी बार बनारस आए थे और कई जनसभाओं को संबोधित किया था.
बीएचयू के भारत कला भवन में आए
डॉक्टर बाला लखेंद्र ने बताया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस युवाओं के लिए सबसे बड़े आदर्श के रूप में हमारे सामने हैं. स्वामी विवेकानंद के बाद यदि कोई बड़ा व्यक्तित्व है तो वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं. देश के आंदोलन में एक नई भूमिका निभाते हुए देश को आजाद कराए. काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उनका गहरा संबंध रहा है. काशी यात्रा पर आने के दौरान व बीएचयू स्थित भारत कला भवन में आए. भारत कला भवन की संरक्षित चीजों को उन्होंने देखा. बीएचयू के लिए जो उनके शब्द रहे हैं वह मार्गदर्शक के रुप में रहे. आज बीएचयू में उनकी जयंती राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जा रहा है. हम लोग इनकी जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मना रहे हैं.