वाराणसी: रमज़ान के इस आखिरी अशरे में जहां आज अलविदा जुमा का दिन है.वहीं, हर किसी को ईद का इंतज़ार है. इस मौके पर बनारस की फिजाओं में इत्र की खूशबू घुल चुकी है. इत्र की मांग ईद पर काफी ज्यादा बढ़ जाती है.वहीं, मुस्लिम समुदाय के लोग सुबह-सुबह ईद पर नमाज़ पढ़ने से पहले नए-नए कपड़ों पर इत्र ज़रूर लगाते है. ईद के लिए लोग ईत्र की जमकर खरीदारी कर रहे हैं.
दुकानदारों की मानें तो इस वक्त मुश्क, अम्बर मुश्क, मुख्खलत, शामामा,मजमुआ,जन्नतुल फिरदौस, हसनैन, हूर, खस, ओसियन, फ़क़त अल रेज़ाल व अन्य नामों के इत्रों को काफी पसंद किया जा रहा है.
बाज़ार में इत्र खरीदने आए बब्लू कुरैशी ने बताया कि इत्र लगाना हम लोगों को सुन्नत है. ईद की नमाज़ पढ़ने या जुमा की नमाज़ पढ़ने जो लोग जाते हैं वे अपने कपड़ों पर इत्र जरूर लगाते हैं. मार्केट में बहुत तरह के इत्र आते हैं. इत्र के दामों की बात की जाए तो सस्ते और महंगे दामों के इत्र आते हैं. लोग ईद के मद्देनजर अपने घर परिवार के लिए इत्र की खरीदारी ज़रूर करते हैं.
वहीं, शाहिना ने बताया कि आदमी 30 दिन रोज़ा रखता है और उसके बाद हम लोग ईद का पर्व मनाते है. इसकी खुशी बहुत ज़्यादा होती है.उन्होंने कहा कि हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम साहब को खुशबू बहुत पसंद थी इसलिए हम लोग आगाज़ करते है कि ईद पर नए कपड़े पहने और इत्र लगाएं. हमने इत्र खरीदा है. मार्किट में मुश्क, जन्नतुल फिरदौस ,हूर,व अन्य नामों से इत्र बिकते है.वहीं औरतों के लिए कुछ अलग तरह के खुशबू के इत्र आते है.उन्होंने कहा कि हमारे काशी में हिन्दू मुस्लिम एक होकर सभी पर्व मनाते है.यह गंगा जमुनी तहज़ीब की मिसाल है और जगहों से हमारे बनारस में ये तहज़ीब अलग ही है।
वहीं, दुकानदार सईद अहमद का कहना है कि इत्र एक खुशबू की चीज़ है, जो भी ईद पर नमाज़ पढ़ने जाता है तो वह पाक साफ होकर नए कपड़ों इत्र ज़रूर लगाता है. हम लोग इत्र इस्तेमाल ज़्यादा करते हैं. बाज़ार में तरह तरह के इत्र आते है. मुश्क, खस, शामामा, मजमुआ, जन्नतुल फिरदौस और अन्य नामों से इत्र तरह तरह के आते है. ईद मौके पर इत्र लोग के काफी पसंद करते है. लोग जब एक दूसरे से मिलते है तो तोहफे में एक दूसरे को खुशबू देते भी है।
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