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वाराणसी की ये महिलाएं सिर्फ रोटियां ही नहीं, रेलगाड़ी भी बनाती हैं

महिलाओं के आत्मनिर्भर होने की कई सफल कहानियां आज भी समाज में मौजूद हैं. वाराणसी के बनारस रेल इंजन कारखाने में भारी भरकम मशीनों और तकनीकों के साथ काम करती महिलाएं भी ऐसी ही पॉजिटिव स्टोरी का हिस्सा हैं (women workers of Bereka). आप भी जब उनके काम करने के जज्बे और हुनर को जानेंगे तो आप भी इस मातृशक्ति के कायल हो जाएंगे क्योंकि वह सिर्फ रोटियां नहीं रेलगाड़ी भी बनाती हैं.

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Published : Dec 27, 2022, 8:39 PM IST

Updated : Dec 27, 2022, 10:56 PM IST

मामले के बारे में जानकारी देते बरेका के पीआरओ राजेश कुमार और महिला कर्मचारी

वाराणसी : बनारस रेल इंजन कारखाना यानी बरेका (Banaras Rail Engine Factory) ने 2022 में एक बड़ा रिकॉर्ड बनाया. बरेका (bereka electric locomotive) के इतिहास में पहली बार हुआ है कि जब 365 दिनों में कारखाने में 367 रेल इंजनों को तैयार किया गया. इस रेकॉर्ड को बनाने में यहां के 5700 कर्मचारियों ने दिन रात मेहनत की. खास यह है कि इनमें बरेका की 350 महिलाएं भी शामिल रहीं, जिन्होंने भारी भरकम मशीनों और पेचीदे टूल के साथ टेक्निकल काम भी किए. इनके बनाए इंजन दुनिया के 11 देशों में पटरियों पर दौड़ रहे हैं.

बनारस रेल इंजन कारखाने में सबसे पहले 1964 में डीजल लोकोमोटिव (diesel locomotive) बनकर तैयार हुआ था. तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसे देश को समर्पित किया था. 2017 के बाद डीजल रेल इंजन के साथ यहां विद्युत रेल इंजन (bereka electric locomotive) का भी निर्माण शुरू किया. अब तक 1,276 विद्युत रेल इंजनों का निर्माण भी किया जा चुका है.

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बनारस रेल इंजन कारखाना

बनारस के रेल इंजन कारखाने में कभी पुरुषों का वर्चस्व था. मगर वक्त के साथ यहां महिलाओं की एंट्री हुई. तकनीकी कार्यों के अलावा वह सारे काम करती हैं, जो वहां मौजूद पुरुष कर्मचारी करते हैं. बरेका (bereka electric locomotive) के जनसंपर्क अधिकारी राजेश कुमार ने बताया कि रेल इंजन बनाने के दौरान प्रोडक्शन वर्क में महिलाएं अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. रेल इंजनों को बनाने में सबसे ज्यादा महिलाएं हार्वेस प्रोडक्टिविटी में मौजूद हैं. इस विभाग में 45 लोग कार्यरत हैं, जिसमें 30 फ़ीसदी महिलाएं हैं. उन्होंने बताया कि ये महिलाएं हारवेस, रूफटॉप, सेल और इंजन बना रही हैं.

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बनारस रेल इंजन कारखाने में काम करने वाली महिला कर्मचारी
तीन दिन में तैयार कर लेती है 2 ट्रेनों का वायर : बरेका मेंरेल इंजन को बनाने वाली गायत्री बताती हैं कि वह बीते कई सालों से बरेका में काम कर रही हैं. रेल इंजन में में लगने वाली वायर तैयार करती हैं. तीन दिन में उनकी पूरी टीम दो इंजनों के लिए 20 किलोमीटर से ज़्यादा वायर तैयार कर लेती है. उन्हें अपने काम पर गर्व है क्योंकि यह महिलाओं के लिए परंपरागत कार्यों से अलग है. यह काम उन्हें आत्मविश्वास के साथ एक नया उत्साह भी देता है.
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बरेका में रेल इंजन बनाती महिला कर्मचारी
इंजन के टॉप रूफ में लाइटिंग और टेस्टिंग का काम करने वाली जयश्री बताती हैं कि जब उनकी मेहनत के बाद उनके द्वारा बनाई गई ट्रेन रेलवे ट्रैक पर चलती है, तो उन्हें बेहद खुशी होती है. एसएससी टीएस टेस्टिंग अधिकारी प्रेमा लिली टप्पो कहती है कि रेल इंजन में सिर्फ महिलाएं कर्मचारी ही नहीं बल्कि अधिकारी के पद पर भी कार्यरत हैं. जिसका बड़ा उदाहरण बरेका की महाप्रबंधक अंजलि गोयल है. उन्होंने बताया कि वह इंजनों का टेस्ट करती है और यह सुनिश्चित करती हैं कि इंजन सही तरह के काम कर रहा है या नहीं. एस एस सी लिली बड़े गर्व से कहती हैं कि बरेका की हम महिलाएं आधुनिक भारत की नई कहानी लिख रही हैं.

पढ़ें : भारत में रेल इंजनों को बनाने में आत्मनिर्भर हुआ बरेका, जानें कैसे

मामले के बारे में जानकारी देते बरेका के पीआरओ राजेश कुमार और महिला कर्मचारी

वाराणसी : बनारस रेल इंजन कारखाना यानी बरेका (Banaras Rail Engine Factory) ने 2022 में एक बड़ा रिकॉर्ड बनाया. बरेका (bereka electric locomotive) के इतिहास में पहली बार हुआ है कि जब 365 दिनों में कारखाने में 367 रेल इंजनों को तैयार किया गया. इस रेकॉर्ड को बनाने में यहां के 5700 कर्मचारियों ने दिन रात मेहनत की. खास यह है कि इनमें बरेका की 350 महिलाएं भी शामिल रहीं, जिन्होंने भारी भरकम मशीनों और पेचीदे टूल के साथ टेक्निकल काम भी किए. इनके बनाए इंजन दुनिया के 11 देशों में पटरियों पर दौड़ रहे हैं.

बनारस रेल इंजन कारखाने में सबसे पहले 1964 में डीजल लोकोमोटिव (diesel locomotive) बनकर तैयार हुआ था. तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसे देश को समर्पित किया था. 2017 के बाद डीजल रेल इंजन के साथ यहां विद्युत रेल इंजन (bereka electric locomotive) का भी निर्माण शुरू किया. अब तक 1,276 विद्युत रेल इंजनों का निर्माण भी किया जा चुका है.

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बनारस रेल इंजन कारखाना

बनारस के रेल इंजन कारखाने में कभी पुरुषों का वर्चस्व था. मगर वक्त के साथ यहां महिलाओं की एंट्री हुई. तकनीकी कार्यों के अलावा वह सारे काम करती हैं, जो वहां मौजूद पुरुष कर्मचारी करते हैं. बरेका (bereka electric locomotive) के जनसंपर्क अधिकारी राजेश कुमार ने बताया कि रेल इंजन बनाने के दौरान प्रोडक्शन वर्क में महिलाएं अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. रेल इंजनों को बनाने में सबसे ज्यादा महिलाएं हार्वेस प्रोडक्टिविटी में मौजूद हैं. इस विभाग में 45 लोग कार्यरत हैं, जिसमें 30 फ़ीसदी महिलाएं हैं. उन्होंने बताया कि ये महिलाएं हारवेस, रूफटॉप, सेल और इंजन बना रही हैं.

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बनारस रेल इंजन कारखाने में काम करने वाली महिला कर्मचारी
तीन दिन में तैयार कर लेती है 2 ट्रेनों का वायर : बरेका मेंरेल इंजन को बनाने वाली गायत्री बताती हैं कि वह बीते कई सालों से बरेका में काम कर रही हैं. रेल इंजन में में लगने वाली वायर तैयार करती हैं. तीन दिन में उनकी पूरी टीम दो इंजनों के लिए 20 किलोमीटर से ज़्यादा वायर तैयार कर लेती है. उन्हें अपने काम पर गर्व है क्योंकि यह महिलाओं के लिए परंपरागत कार्यों से अलग है. यह काम उन्हें आत्मविश्वास के साथ एक नया उत्साह भी देता है.
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बरेका में रेल इंजन बनाती महिला कर्मचारी
इंजन के टॉप रूफ में लाइटिंग और टेस्टिंग का काम करने वाली जयश्री बताती हैं कि जब उनकी मेहनत के बाद उनके द्वारा बनाई गई ट्रेन रेलवे ट्रैक पर चलती है, तो उन्हें बेहद खुशी होती है. एसएससी टीएस टेस्टिंग अधिकारी प्रेमा लिली टप्पो कहती है कि रेल इंजन में सिर्फ महिलाएं कर्मचारी ही नहीं बल्कि अधिकारी के पद पर भी कार्यरत हैं. जिसका बड़ा उदाहरण बरेका की महाप्रबंधक अंजलि गोयल है. उन्होंने बताया कि वह इंजनों का टेस्ट करती है और यह सुनिश्चित करती हैं कि इंजन सही तरह के काम कर रहा है या नहीं. एस एस सी लिली बड़े गर्व से कहती हैं कि बरेका की हम महिलाएं आधुनिक भारत की नई कहानी लिख रही हैं.

पढ़ें : भारत में रेल इंजनों को बनाने में आत्मनिर्भर हुआ बरेका, जानें कैसे

Last Updated : Dec 27, 2022, 10:56 PM IST
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