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इस मंदिर में तिल के बराबर हर रोज बढ़ते हैं शिव, अद्भुत है कहानी

शिवनगरी काशी में महादेव के कई रूप है. यहां कालभैरव रूप में महादेव रक्षा करते हैं तो द्वादश ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ तारक मंत्र से तारते हैं. क्या आपको मालूम है कि काशी में बाबा का एक ऐसा रूप है जो हर साल तिल-तिल बढ़ता है.

तिलभांडेश्वर महादेव
तिलभांडेश्वर महादेव
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Published : Mar 11, 2021, 11:44 AM IST

Updated : Mar 11, 2021, 12:30 PM IST

वाराणसी: 11 मार्च को महाशिवरात्रि का पर्व है और काशी का कण-कण शिव बोल रहा है. काशी में एक से बढ़कर एक शिवालय हैं, जिनकी महिमा शिव पुराण और कई अन्य पुराणों में वर्णित है. हर शिवालय में आज लोगों का हुजूम उमड़ा है और ऐसा ही एक शिवा मंदिर है तिलभांडेश्वर महादेव का. वाराणसी का तिलभांडेश्वर महादेव जैसा कि आपको नाम से ही समझ में आ गया होगा कि इस मंदिर का संबंध तिल से है. तिल से संबंध इसलिए है. क्योंकि बाबा भोलेनाथ यहां हर रोज एक तिल के दाने के बराबर बढ़ते हैं. क्या है इस मंदिर की मान्यता और क्यों है यह काशी में इतना महत्वपूर्ण जानिए इस खास खबर में.

भेलूपुर इलाके में स्थित है तिलभांडेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर
यह है बाबा के बड़े स्वरूप का राज
वाराणसी के भेलूपुर इलाके में स्थित तिलभांडेश्वर महादेव का यह प्राचीन मंदिर स्वयंभू है. यहां पर मौजूद शिवलिंग खुद से उत्पन्न हुआ था और अनादि काल से यह इसी स्थिति में मौजूद है. जानकारों की माने तो बाबा भोलेनाथ जब एक तिल के समान बढ़ना शुरू हुए तो उनका आकार धीरे-धीरे बहुत विशाल होता गया, जिससे भयभीत होकर देवताओं और संतों ने बाबा भोलेनाथ से प्रार्थना की कि यदि आप इसी तरह तिल समान बढ़ते रहे तो पृथ्वी कम पड़ जाएगी, जिसके बाद भगवान भोलेनाथ ने उन सभी के अनुरोध को स्वीकार किया और यह आशीर्वाद दिया कि भोलेनाथ अब हर रोज नहीं बल्कि साल में 1 दिन मकर संक्रांति के पर्व पर ही तिल समान बढ़ेंगे.
शिवलिंग पर जल चढ़ाती श्रद्धालु
शिवलिंग पर जल चढ़ाती श्रद्धालु
नारियल की जटा से होता है शिवलिंग पर घिसाव
इसके अलावा एक अन्य कथा प्रचलित है, जिसमें यह बताया गया है कि बाबा के लगातार बढ़ रहे स्वरूप से देवी-देवताओं के भयभीत होने के बाद भगवान भोलेनाथ ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर माह के 15 दिन बढ़ने और मात्र 15 दिन घटने की बात कही. ऋषि मुनियों ने बाबा के इस भव्य स्वरूप को स्थिर रखने के लिए नारियल की जटा से शिवलिंग को घिसने के लिए कहा, जिसका चलन आज भी लगातार जारी है. बाबा भोलेनाथ के स्वरूप को नारियल की जटा से खींचकर विशाल का शिवलिंग को बढ़ने से रोका जाता है.
मंदिर का मुख्य द्वार
मंदिर का मुख्य द्वार
केदारखंड में विद्यमान हैं यह शिवलिंग

बाबा तिलभांडेश्वर महादेव का यह मंदिर केदारखंड में स्थित है काशी दो खंडों में विराजमान मानी जाती है. एक काशी खंड और दूसरा केदारखंड काशी खंड में बाबा विश्वनाथ और महामृत्युंजय समेत अन्य से वाले हैं, जबकि केदारखंड में तिलभांडेश्वर केदारेश्वर और कई अन्य महत्वपूर्ण शिवालय शामिल है. काशी के केदारखंड में स्थितियां शिवालय महाशिवरात्रि के दिन हर-हर महादेव के जयघोष से गूंज रहा है और भक्त बाबा को जलाभिषेक और रुद्राभिषेक कर अपनी हर इच्छा की पूर्ति की कामना कर रहे हैं. जानकारों का कहना है कि बाबा तिलभांडेश्वर को तिल अर्पित करने से सुख और संपन्नता की प्राप्ति होती है, क्योंकि तिल लक्ष्मी को समर्पित किया जाता है और बाबा भोलेनाथ को भी यह अति प्रिय है.

वाराणसी: 11 मार्च को महाशिवरात्रि का पर्व है और काशी का कण-कण शिव बोल रहा है. काशी में एक से बढ़कर एक शिवालय हैं, जिनकी महिमा शिव पुराण और कई अन्य पुराणों में वर्णित है. हर शिवालय में आज लोगों का हुजूम उमड़ा है और ऐसा ही एक शिवा मंदिर है तिलभांडेश्वर महादेव का. वाराणसी का तिलभांडेश्वर महादेव जैसा कि आपको नाम से ही समझ में आ गया होगा कि इस मंदिर का संबंध तिल से है. तिल से संबंध इसलिए है. क्योंकि बाबा भोलेनाथ यहां हर रोज एक तिल के दाने के बराबर बढ़ते हैं. क्या है इस मंदिर की मान्यता और क्यों है यह काशी में इतना महत्वपूर्ण जानिए इस खास खबर में.

भेलूपुर इलाके में स्थित है तिलभांडेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर
यह है बाबा के बड़े स्वरूप का राज
वाराणसी के भेलूपुर इलाके में स्थित तिलभांडेश्वर महादेव का यह प्राचीन मंदिर स्वयंभू है. यहां पर मौजूद शिवलिंग खुद से उत्पन्न हुआ था और अनादि काल से यह इसी स्थिति में मौजूद है. जानकारों की माने तो बाबा भोलेनाथ जब एक तिल के समान बढ़ना शुरू हुए तो उनका आकार धीरे-धीरे बहुत विशाल होता गया, जिससे भयभीत होकर देवताओं और संतों ने बाबा भोलेनाथ से प्रार्थना की कि यदि आप इसी तरह तिल समान बढ़ते रहे तो पृथ्वी कम पड़ जाएगी, जिसके बाद भगवान भोलेनाथ ने उन सभी के अनुरोध को स्वीकार किया और यह आशीर्वाद दिया कि भोलेनाथ अब हर रोज नहीं बल्कि साल में 1 दिन मकर संक्रांति के पर्व पर ही तिल समान बढ़ेंगे.
शिवलिंग पर जल चढ़ाती श्रद्धालु
शिवलिंग पर जल चढ़ाती श्रद्धालु
नारियल की जटा से होता है शिवलिंग पर घिसाव
इसके अलावा एक अन्य कथा प्रचलित है, जिसमें यह बताया गया है कि बाबा के लगातार बढ़ रहे स्वरूप से देवी-देवताओं के भयभीत होने के बाद भगवान भोलेनाथ ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर माह के 15 दिन बढ़ने और मात्र 15 दिन घटने की बात कही. ऋषि मुनियों ने बाबा के इस भव्य स्वरूप को स्थिर रखने के लिए नारियल की जटा से शिवलिंग को घिसने के लिए कहा, जिसका चलन आज भी लगातार जारी है. बाबा भोलेनाथ के स्वरूप को नारियल की जटा से खींचकर विशाल का शिवलिंग को बढ़ने से रोका जाता है.
मंदिर का मुख्य द्वार
मंदिर का मुख्य द्वार
केदारखंड में विद्यमान हैं यह शिवलिंग

बाबा तिलभांडेश्वर महादेव का यह मंदिर केदारखंड में स्थित है काशी दो खंडों में विराजमान मानी जाती है. एक काशी खंड और दूसरा केदारखंड काशी खंड में बाबा विश्वनाथ और महामृत्युंजय समेत अन्य से वाले हैं, जबकि केदारखंड में तिलभांडेश्वर केदारेश्वर और कई अन्य महत्वपूर्ण शिवालय शामिल है. काशी के केदारखंड में स्थितियां शिवालय महाशिवरात्रि के दिन हर-हर महादेव के जयघोष से गूंज रहा है और भक्त बाबा को जलाभिषेक और रुद्राभिषेक कर अपनी हर इच्छा की पूर्ति की कामना कर रहे हैं. जानकारों का कहना है कि बाबा तिलभांडेश्वर को तिल अर्पित करने से सुख और संपन्नता की प्राप्ति होती है, क्योंकि तिल लक्ष्मी को समर्पित किया जाता है और बाबा भोलेनाथ को भी यह अति प्रिय है.
Last Updated : Mar 11, 2021, 12:30 PM IST
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