वाराणसी: हाई-फाई टेक्नोलॉजी के युग में डाकिया चाचा का वजूद खतरे में है. तेजी से कम हो रही इनकी संख्या और बढ़ रही शहरों की जनसंख्या पब्लिक और संचार के बीच की इस महत्वपूर्ण कड़ी को कहीं गायब ही कर दिया है. इन सबके बीच डाकघर भी तेजी से बड़ रहे हैं, लेकिन एक डाकिए की जिंदगी आज भी उसी ढर्रे पर चल रही है, जैसे पहले थी. समय का पहिया साइकिल के पैडल के साथ घूम रहा है.
- समय बदलने के साथ अब डाकघर भी एडवांस हो रहे हैं.
- पहले डाक घर का काम सिर्फ पैसे जमा करना, पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय, मनीऑर्डर, तार सेवा के साथ लोगों की चिट्ठियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाना था.
- आज वह डाकघर एडवांस रूप ले चुके हैं.
- पैसे निकालने के लिए एटीएम की व्यवस्था मिल रही है.
- ई-प्रणाली के साथ बहुत सी एडवांस चीजें भी पब्लिक को मुहैया कराई जा रही हैं.
- इसने डाक विभाग का चेहरा तो बदला है, लेकिन नहीं बदल सका तो अपने ही विभाग के डाकियों का हाल.
- आज भी शरीर पर खाकी वर्दी, बगल में एक झोला, झोले में चिट्ठियां और साइकिल पर सवार होकर मोहल्ले-मोहल्ले पहुंच जाते हैं.
- घर से दूर रहने वाले लोगों के सुख-दुख की दास्तान उनके अपने तक पहुंचाते हैं.
- कुछ ऐसी ही छवि थी डाकिया बाबू की, शायद यही वजह है कि हर किसी को एक वक्त डाकिया बाबू का इंतजार होता था.
नए साल का ग्रीटिंग हो या शादी का कार्ड, बॉर्डर पर तैनात सेना के जवान की घर के लिए आई चिट्ठी हो या फिर किसी की नौकरी का अपॉइंटमेंट लेटर. हर कोई बस निर्भर था तो डाकिया बाबू पर, लेकिन तेजी से समय बदला. हाईटेक हो रहे डाकघर के साथ एडवांस टेक्नोलॉजी ने डाकियों के महत्व को कम कर दिया. शायद यही वजह है विभाग ने और सरकार ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया और तेजी से घट रही डाकियों की संख्या ने डाकियों को कहीं गुम ही कर दिया. अगर वर्तमान में बात की जाए तो बनारस में कुल मिलाकर 199 डाकियों की पोस्ट खाली है.
काम करने वाले डाकिए जो परमानेंट डाक विभाग के एम्पलाई उनकी संख्या 90 है, आउटसोर्सिंग के बल पर 67 डाकियों की तैनाती भी की गई है, यानी कुल मिलाकर 157 डाकिए इस वक्त बनारस में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन डाकियों को भी समय के साथ हाईटेक करने की तैयारी है. सभी के हाथों में मोबाइल दिया गया है. ताकि डिजिटल साइन कराने के साथ घर-घर जाकर लोगों का अकाउंट खुलवा कर डाकघर में पैसे जमा करवा सकें, लेकिन आज भी उसी साइकिल से ही बड़े-बड़े पार्सल लेकर चलते हैं. झोले की जगह अब हाथों में बैग और दूसरी व्यवस्था रखते हैं, जिसमें चिट्टियां और पार्सल रखे जाते हैं.
डाकिया कपिल मुनि शुक्ला, रजनीकांत राय और जितेंद्र कुमार पाल का कहना है की पहले से अब बहुत अंतर आ गया है. पहले कुछ घरों में ही जाते थे. अब एक ही बिल्डिंग के 10 घरों में जाना पड़ता है. मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनने की वजह से परेशानियां बढ़ गई हैं. जनसंख्या बढ़ी है, लेकिन डाकियों की संख्या कम हो गई है.
यही नहीं पूरी दुनिया में अब डाकियों की संख्या कम हो रही है, लेकिन एडवांस टेक्नोलॉजी के साथ आज भी डाकघर अपने आप को बचा कर चलने की कोशिश कर रहे हैं. सिस्टम के साथ डाकियों को एडवांस किया जा रहा है.
-प्रणव कुमार, पोस्टमास्टर जनरल