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वाराणसी: बदली टेक्नोलॉजी में गुम हो रहे डाकिया चाचा

कभी लोग चिट्ठी के लिए बड़ी बेसब्री से डाकिए का इंतजार करते थे, लेकिन आज डाकिया चाचा चिट्ठियां छोड़ बाकी दूसरी चीजें लोगों तक पहुंचाने में जुटे रहते हैं. अब क्या सच में होता है डाकिया चाचा का इंतजार इन्हीं सवालों का जवाब ईटीवी भारत ने तलाशा.

बदली टेक्नोलॉजी ने मिटा दिया डाकिया चाचा का अस्तित्व.
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Published : Jul 24, 2019, 5:28 PM IST

वाराणसी: हाई-फाई टेक्नोलॉजी के युग में डाकिया चाचा का वजूद खतरे में है. तेजी से कम हो रही इनकी संख्या और बढ़ रही शहरों की जनसंख्या पब्लिक और संचार के बीच की इस महत्वपूर्ण कड़ी को कहीं गायब ही कर दिया है. इन सबके बीच डाकघर भी तेजी से बड़ रहे हैं, लेकिन एक डाकिए की जिंदगी आज भी उसी ढर्रे पर चल रही है, जैसे पहले थी. समय का पहिया साइकिल के पैडल के साथ घूम रहा है.

हाई-फाई टेक्नोलॉजी के युग में डाकिया चाचा का वजूद खतरे में है.
क्या सच में होता है डाकिया चाचा का इंतजार
  • समय बदलने के साथ अब डाकघर भी एडवांस हो रहे हैं.
  • पहले डाक घर का काम सिर्फ पैसे जमा करना, पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय, मनीऑर्डर, तार सेवा के साथ लोगों की चिट्ठियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाना था.
  • आज वह डाकघर एडवांस रूप ले चुके हैं.
  • पैसे निकालने के लिए एटीएम की व्यवस्था मिल रही है.
  • ई-प्रणाली के साथ बहुत सी एडवांस चीजें भी पब्लिक को मुहैया कराई जा रही हैं.
  • इसने डाक विभाग का चेहरा तो बदला है, लेकिन नहीं बदल सका तो अपने ही विभाग के डाकियों का हाल.
  • आज भी शरीर पर खाकी वर्दी, बगल में एक झोला, झोले में चिट्ठियां और साइकिल पर सवार होकर मोहल्ले-मोहल्ले पहुंच जाते हैं.
  • घर से दूर रहने वाले लोगों के सुख-दुख की दास्तान उनके अपने तक पहुंचाते हैं.
  • कुछ ऐसी ही छवि थी डाकिया बाबू की, शायद यही वजह है कि हर किसी को एक वक्त डाकिया बाबू का इंतजार होता था.

नए साल का ग्रीटिंग हो या शादी का कार्ड, बॉर्डर पर तैनात सेना के जवान की घर के लिए आई चिट्ठी हो या फिर किसी की नौकरी का अपॉइंटमेंट लेटर. हर कोई बस निर्भर था तो डाकिया बाबू पर, लेकिन तेजी से समय बदला. हाईटेक हो रहे डाकघर के साथ एडवांस टेक्नोलॉजी ने डाकियों के महत्व को कम कर दिया. शायद यही वजह है विभाग ने और सरकार ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया और तेजी से घट रही डाकियों की संख्या ने डाकियों को कहीं गुम ही कर दिया. अगर वर्तमान में बात की जाए तो बनारस में कुल मिलाकर 199 डाकियों की पोस्ट खाली है.

काम करने वाले डाकिए जो परमानेंट डाक विभाग के एम्पलाई उनकी संख्या 90 है, आउटसोर्सिंग के बल पर 67 डाकियों की तैनाती भी की गई है, यानी कुल मिलाकर 157 डाकिए इस वक्त बनारस में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन डाकियों को भी समय के साथ हाईटेक करने की तैयारी है. सभी के हाथों में मोबाइल दिया गया है. ताकि डिजिटल साइन कराने के साथ घर-घर जाकर लोगों का अकाउंट खुलवा कर डाकघर में पैसे जमा करवा सकें, लेकिन आज भी उसी साइकिल से ही बड़े-बड़े पार्सल लेकर चलते हैं. झोले की जगह अब हाथों में बैग और दूसरी व्यवस्था रखते हैं, जिसमें चिट्टियां और पार्सल रखे जाते हैं.

डाकिया कपिल मुनि शुक्ला, रजनीकांत राय और जितेंद्र कुमार पाल का कहना है की पहले से अब बहुत अंतर आ गया है. पहले कुछ घरों में ही जाते थे. अब एक ही बिल्डिंग के 10 घरों में जाना पड़ता है. मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनने की वजह से परेशानियां बढ़ गई हैं. जनसंख्या बढ़ी है, लेकिन डाकियों की संख्या कम हो गई है.

यही नहीं पूरी दुनिया में अब डाकियों की संख्या कम हो रही है, लेकिन एडवांस टेक्नोलॉजी के साथ आज भी डाकघर अपने आप को बचा कर चलने की कोशिश कर रहे हैं. सिस्टम के साथ डाकियों को एडवांस किया जा रहा है.
-प्रणव कुमार, पोस्टमास्टर जनरल

वाराणसी: हाई-फाई टेक्नोलॉजी के युग में डाकिया चाचा का वजूद खतरे में है. तेजी से कम हो रही इनकी संख्या और बढ़ रही शहरों की जनसंख्या पब्लिक और संचार के बीच की इस महत्वपूर्ण कड़ी को कहीं गायब ही कर दिया है. इन सबके बीच डाकघर भी तेजी से बड़ रहे हैं, लेकिन एक डाकिए की जिंदगी आज भी उसी ढर्रे पर चल रही है, जैसे पहले थी. समय का पहिया साइकिल के पैडल के साथ घूम रहा है.

हाई-फाई टेक्नोलॉजी के युग में डाकिया चाचा का वजूद खतरे में है.
क्या सच में होता है डाकिया चाचा का इंतजार
  • समय बदलने के साथ अब डाकघर भी एडवांस हो रहे हैं.
  • पहले डाक घर का काम सिर्फ पैसे जमा करना, पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय, मनीऑर्डर, तार सेवा के साथ लोगों की चिट्ठियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाना था.
  • आज वह डाकघर एडवांस रूप ले चुके हैं.
  • पैसे निकालने के लिए एटीएम की व्यवस्था मिल रही है.
  • ई-प्रणाली के साथ बहुत सी एडवांस चीजें भी पब्लिक को मुहैया कराई जा रही हैं.
  • इसने डाक विभाग का चेहरा तो बदला है, लेकिन नहीं बदल सका तो अपने ही विभाग के डाकियों का हाल.
  • आज भी शरीर पर खाकी वर्दी, बगल में एक झोला, झोले में चिट्ठियां और साइकिल पर सवार होकर मोहल्ले-मोहल्ले पहुंच जाते हैं.
  • घर से दूर रहने वाले लोगों के सुख-दुख की दास्तान उनके अपने तक पहुंचाते हैं.
  • कुछ ऐसी ही छवि थी डाकिया बाबू की, शायद यही वजह है कि हर किसी को एक वक्त डाकिया बाबू का इंतजार होता था.

नए साल का ग्रीटिंग हो या शादी का कार्ड, बॉर्डर पर तैनात सेना के जवान की घर के लिए आई चिट्ठी हो या फिर किसी की नौकरी का अपॉइंटमेंट लेटर. हर कोई बस निर्भर था तो डाकिया बाबू पर, लेकिन तेजी से समय बदला. हाईटेक हो रहे डाकघर के साथ एडवांस टेक्नोलॉजी ने डाकियों के महत्व को कम कर दिया. शायद यही वजह है विभाग ने और सरकार ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया और तेजी से घट रही डाकियों की संख्या ने डाकियों को कहीं गुम ही कर दिया. अगर वर्तमान में बात की जाए तो बनारस में कुल मिलाकर 199 डाकियों की पोस्ट खाली है.

काम करने वाले डाकिए जो परमानेंट डाक विभाग के एम्पलाई उनकी संख्या 90 है, आउटसोर्सिंग के बल पर 67 डाकियों की तैनाती भी की गई है, यानी कुल मिलाकर 157 डाकिए इस वक्त बनारस में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन डाकियों को भी समय के साथ हाईटेक करने की तैयारी है. सभी के हाथों में मोबाइल दिया गया है. ताकि डिजिटल साइन कराने के साथ घर-घर जाकर लोगों का अकाउंट खुलवा कर डाकघर में पैसे जमा करवा सकें, लेकिन आज भी उसी साइकिल से ही बड़े-बड़े पार्सल लेकर चलते हैं. झोले की जगह अब हाथों में बैग और दूसरी व्यवस्था रखते हैं, जिसमें चिट्टियां और पार्सल रखे जाते हैं.

डाकिया कपिल मुनि शुक्ला, रजनीकांत राय और जितेंद्र कुमार पाल का कहना है की पहले से अब बहुत अंतर आ गया है. पहले कुछ घरों में ही जाते थे. अब एक ही बिल्डिंग के 10 घरों में जाना पड़ता है. मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनने की वजह से परेशानियां बढ़ गई हैं. जनसंख्या बढ़ी है, लेकिन डाकियों की संख्या कम हो गई है.

यही नहीं पूरी दुनिया में अब डाकियों की संख्या कम हो रही है, लेकिन एडवांस टेक्नोलॉजी के साथ आज भी डाकघर अपने आप को बचा कर चलने की कोशिश कर रहे हैं. सिस्टम के साथ डाकियों को एडवांस किया जा रहा है.
-प्रणव कुमार, पोस्टमास्टर जनरल

Intro:स्पेशल स्टोरी:

नोट: यह खबर श्री आशुतोष सहाय सर के निर्देशानुसार भेजी जा रही है, इस वजह से इस खबर में पर्याप्त मात्रा में विजुअल और बाइट लगा कर भेज रहा हूं, कंपलीट पैकेज तैयार नहीं किया हूं ताकि पर्याप्त विजुअल और बाइट भेजी जा सके।


वाराणसी: बदलता समय तेजी से संचार के साथ संदेशों के बदलते माध्यम कभी चिट्ठी पर निर्भर रहना तो कभी डाकिए का इंतजार करना अब यह चीजें गुम होती जा रही है. आज हाई फाई टेक्नोलॉजी के युग में डाकिया चाचा का वजूद खतरे में है. तेजी से कम हो रही इनकी संख्या और बढ़ रही शहरों की जनसंख्या पब्लिक और संचार के बीच कि इस महत्वपूर्ण कड़ी को कहीं गायब ही कर दिया है. इन सबके बीच डाकघर भी तेजी से हो रहे हैं लेकिन एक डाकिए की जिंदगी आज भी उसी ढर्रे पर चल रही है जैसे पहले थी. समय का पहिया साइकिल के पैडल के साथ घूम रहा है हां अंतर इतना जरूर है पहले डाकिया चाचा का इंतजार होता था अब डाकिया चाचा चिट्ठियां छोड़ बाकी दूसरी महत्वपूर्ण चीजें लोगों तक पहुंचाने में जुटा है, तो कैसे बदले हैं समय के साथ डाक विभाग के हालात और अब क्या सच में होता है डाकिया चाचा का इंतजार इन्हीं सवालों का जवाब तलाशा ईटीवी भारत ने.


Body:वीओ-01 समय बदलने के साथ अब डाकघर भी एडवांस हो रहे हैं जहां पहले डाक घर का काम सिर्फ पैसे जमा करना पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय, मनीऑर्डर, तार सेवा के साथ लोगों की चिट्ठियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाना था. आज वह डाकघर एडवांस रूप ले चुके हैं पैसे निकालने के लिए एटीएम की व्यवस्था मिल रही है और ई प्रणाली के साथ बहुत सी एडवांस चीजें भी पब्लिक को मुहैया कराई जा रही है. जिसने डाक विभाग का चेहरा तो बदला है लेकिन नहीं बदल सका तो अपने ही विभाग के डाकियों का हाल, शरीर पर खाकी वर्दी, बगल में एक झोला, झूले के अंदर चिट्ठियों का अंबार और साइकिल पर सवार होकर मोहल्ले मोहल्ले पहुंच घर से दूर रहने वाले लोगों के सुख-दुख की दास्तान उनके अपने तक पहुंचाने की कोशिश, कुछ ऐसी ही छवि थी डाकिया बाबू कि, शायद यही वजह है कि हर किसी को एक वक्त डाकिया बाबू का इंतजार होता था. नए साल का ग्रीटिंग हो या शादी का कार्ड, बॉर्डर पर तैनात सेना के जवान की घर के लिए आई चिट्ठी हो या फिर किसी की नौकरी का अपॉइंटमेंट लेटर हर कोई बस निर्भर था तो डाकिया बाबू पर, लेकिन तेजी से समय बदला हाईटेक हो रहे डाकघर के साथ एडवांस टेक्नोलॉजी ने डाकियों के महत्व को कम कर दिया. शायद यही वजह है विभाग ने और सरकार ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया और तेजी से घट रही डाकियों की संख्या ने डाकियों को कहीं गुम ही कर दिया.


Conclusion:वीओ-02 अगर वर्तमान में बात की जाए तो बनारस में कुल मिलाकर 199 डाकियों की पोस्ट उपलब्ध है, लेकिन काम करने वाले डाकिए जो परमानेंट डाक विभाग के एम्पलाई उनकी संख्या 90 है, आउटसोर्सिंग के बल पर 67 डाकिये की तैनाती भी की गई है, यानी कुल मिलाकर 157 डाकिए इस वक्त बनारस अपनी सेवाएं दे रहे. इन डाकियो को भी समय के साथ हाईटेक करने की तैयारी हुई है सभी को हाथों में मोबाइल दिया गया है ताकि डिजिटल साइन कराने के साथ घर-घर जाकर लोगों का अकाउंट खुलवा कर डाकघर में पैसे जमा करवा सके लेकिन आज भी उसी साइकिल से ही हटा के बड़े-बड़े पार्सल लेकर चलते हैं. झोले की जगह अब हाथों में बैग और दूसरी व्यवस्था रखते हैं, जिसमें चिट्टियां और पार्सल रखे जाते हैं. डाकियो का कहना है पहले से अब मैं बहुत अंतर आया है, पहले कुछ घरों में ही जाते थे अब एक ही बिल्डिंग के 10 घरों में जाना पड़ता है. मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनने की वजह से परेशानियां बढ़ गई हैं. जनसंख्या बढ़ी है लेकिन डाकियों की संख्या कम हो गई है, वही पोस्ट मास्टर जनरल का कहना है सिर्फ यही नहीं पूरे देश पूरी दुनिया में अब डाकुओं की संख्या कम हो रही है लेकिन एडवांस टेक्नोलॉजी के साथ आज भी डाकघर अपने आप को बचा कर चलने की कोशिश कर रहे हैं सिस्टम के साथ डाकुओं को एडवांस किया जा रहा है लेकिन इन सबके बाद भी सवाल यह उठता है कि क्या अब भी लोग अपने इस डाकिया चाचा का इंतजार करते हैं. इसका जवाब शायद नहीं मिलेगा क्योंकि अप्वाइंटमेंट लेटर से लेकर शादी के कार्ड, चिट्ठी पत्री सब कुछ तो अब डिजिटल में आपके मोबाइल फोन पर पहुंच चुका है. जिसने समय के साथ सबसे महत्वपूर्ण इस घड़ी यानी डाकिए को हमसे दूर कर दिया है.

बाईट- कपिल मुनि शुक्ला, डाकिया
बाईट- रजनीकांत राय, डाकिया
बाईट- जितेंद्र कुमार पाल, डाकिया
बाईट- प्रणव कुमार, पोस्टमास्टर जनरल

गोपाल मिश्र

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