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गांधी जयंती विशेष: काशी में दिया स्वच्छता का पहला संदेश, जानें क्या है वजह.. - special story on 150th birth anniversary of mahatma gandhi

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. वाराणसी में इस कार्यक्रम को लेकर लोग अधिक उत्तेजित इसलिए है, क्योंकि महात्मा गांधी ने स्वच्छता का शुभारंभ यहीं से किया था.

महात्मा गांधी की 150वीं जयंती.
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Published : Oct 1, 2019, 11:33 PM IST

Updated : Oct 2, 2019, 12:34 AM IST

वाराणसी: पूरे देश में स्वच्छ भारत अभियान के तहत विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन किए जा रहे हैं, जिसमें मुख्य रूप से गांधी जी का चश्मा दिखाया जाता है, क्योंकि हम सब जानते हैं कि इसकी शुरुआत महात्मा गांधी ने ही की थी. यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि गांधी जी ने सबसे पहले स्वच्छता की शुरुआत काशी से की थी.

महात्मा गांधी की 150वीं जयंती.

'विश्व में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इतने भूखे हैं कि भगवान उन्हें किसी और रूप में नहीं दिख सकता, सिवाय रोटी देने वाले के रूप में'

महात्मा गांधी

1903 में पहली बार काशी में किए प्रवेश
धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी जो विश्व के सबसे पुराने शहरों में एक है. ऐसे में हम बात करें तो महात्मा गांधी कि तो वह 1903 में पहली बार वाराणसी आए थे. उन्होंने श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन की इच्छा जताई, मगर उन्होंने जो वहां पर देखा उससे वह बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुए. मक्खियों का झुंड, दुकानदारों व तीर्थ यात्रियों का शोर उनके लिए बिल्कुल असहनीय था. विश्वनाथ मंदिर जाते हुए गलियों के गंदगी को देखकर गांधी जी बहुत दुखी हुए थे. मंदिर पहुंचने पर गांधी जी का सामना सड़े हुए फूलों की दुर्गंध से हुआ. उन्होंने देखा कि लोग सिक्कों से अपनी भक्ति को जाहिर करने का जरिया बनाए हुए हैं, जिसकी वजह से न केवल संगमरमर की फर्श पर दरारे थी, बल्कि इन सिक्कों पर धूल के जमने से काफी गंदगी भी हो रही थी. ईश्वर की तलाश में वह मंदिर के पूरे परिसर में भटकते रहे मगर उन्होंने धूल और गंदगी के सिवाय कुछ भी नहीं देखा.


'किसी की मेहरबानी मांगना, अपनी आजादी बेचना'

महात्मा गांधी

पुन: 1916 में आए काशी
काशी के यात्रा के बाद महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका चले गए. वहीं 13 वर्ष बाद एक बार फिर इस पवित्र नगरी में उनका आगमन हुआ. फरवरी 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किए गए थे. महात्मा गांधी पुन: काशी विश्वनाथ मंदिर गए और उन्होंने वहां पहली वाली ही स्थिति देखी.

'सत्य कभी ऐसे कारण को क्षति नहीं पहुंचाता जो उचित हो'

महात्मा गांधी


जानिए क्या कहा प्रोफेसर ने
प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्र ने बताया कि भारत में 'स्वच्छ भारत अभियान' के संदर्भ में भारत के प्रधानमंत्री को बड़े अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिला है. गांधी जी की 150वीं वर्षगांठ पर गांधी जी को एक सच्ची श्रद्धांजलि जरूर देनी चाहिए. उनके गोल चश्मे ने स्वच्छता पहली बार काशी में ही देखी थी. जब उन्होंने विश्वनाथ मंदिर के टूटे हुए संगमरमर, सड़े हुए फूल और गलियों को देखा था तब उन्होंने कहा था इस गंदे जगह पर ईश्वर कैसे रह सकता हैं? ईश्वर तो हमेशा स्वच्छ स्थान पर रहता है और महात्मा गांधी ने काशी से 'स्वच्छता ही ईश्वर है' का संदेश दिया था.

वाराणसी: पूरे देश में स्वच्छ भारत अभियान के तहत विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन किए जा रहे हैं, जिसमें मुख्य रूप से गांधी जी का चश्मा दिखाया जाता है, क्योंकि हम सब जानते हैं कि इसकी शुरुआत महात्मा गांधी ने ही की थी. यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि गांधी जी ने सबसे पहले स्वच्छता की शुरुआत काशी से की थी.

महात्मा गांधी की 150वीं जयंती.

'विश्व में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इतने भूखे हैं कि भगवान उन्हें किसी और रूप में नहीं दिख सकता, सिवाय रोटी देने वाले के रूप में'

महात्मा गांधी

1903 में पहली बार काशी में किए प्रवेश
धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी जो विश्व के सबसे पुराने शहरों में एक है. ऐसे में हम बात करें तो महात्मा गांधी कि तो वह 1903 में पहली बार वाराणसी आए थे. उन्होंने श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन की इच्छा जताई, मगर उन्होंने जो वहां पर देखा उससे वह बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुए. मक्खियों का झुंड, दुकानदारों व तीर्थ यात्रियों का शोर उनके लिए बिल्कुल असहनीय था. विश्वनाथ मंदिर जाते हुए गलियों के गंदगी को देखकर गांधी जी बहुत दुखी हुए थे. मंदिर पहुंचने पर गांधी जी का सामना सड़े हुए फूलों की दुर्गंध से हुआ. उन्होंने देखा कि लोग सिक्कों से अपनी भक्ति को जाहिर करने का जरिया बनाए हुए हैं, जिसकी वजह से न केवल संगमरमर की फर्श पर दरारे थी, बल्कि इन सिक्कों पर धूल के जमने से काफी गंदगी भी हो रही थी. ईश्वर की तलाश में वह मंदिर के पूरे परिसर में भटकते रहे मगर उन्होंने धूल और गंदगी के सिवाय कुछ भी नहीं देखा.


'किसी की मेहरबानी मांगना, अपनी आजादी बेचना'

महात्मा गांधी

पुन: 1916 में आए काशी
काशी के यात्रा के बाद महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका चले गए. वहीं 13 वर्ष बाद एक बार फिर इस पवित्र नगरी में उनका आगमन हुआ. फरवरी 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किए गए थे. महात्मा गांधी पुन: काशी विश्वनाथ मंदिर गए और उन्होंने वहां पहली वाली ही स्थिति देखी.

'सत्य कभी ऐसे कारण को क्षति नहीं पहुंचाता जो उचित हो'

महात्मा गांधी


जानिए क्या कहा प्रोफेसर ने
प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्र ने बताया कि भारत में 'स्वच्छ भारत अभियान' के संदर्भ में भारत के प्रधानमंत्री को बड़े अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिला है. गांधी जी की 150वीं वर्षगांठ पर गांधी जी को एक सच्ची श्रद्धांजलि जरूर देनी चाहिए. उनके गोल चश्मे ने स्वच्छता पहली बार काशी में ही देखी थी. जब उन्होंने विश्वनाथ मंदिर के टूटे हुए संगमरमर, सड़े हुए फूल और गलियों को देखा था तब उन्होंने कहा था इस गंदे जगह पर ईश्वर कैसे रह सकता हैं? ईश्वर तो हमेशा स्वच्छ स्थान पर रहता है और महात्मा गांधी ने काशी से 'स्वच्छता ही ईश्वर है' का संदेश दिया था.

Intro:गांधी जयंती पर विशेष


आज पूरे देश में स्वच्छ भारत अभियान के तहत विभिन्न कार्यक्रम के आयोजन किए जा रहे हैं जिसमें मुख्य रुप से गांधी जी का चश्मा दिखता है क्योंकि हम सब जानते हैं कि इसकी शुरुआत महात्मा गांधी ने ही किया था लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि गांधी ने सबसे पहले इसकी शुरुआत और इसके बारे में कहां सोचा आज गांधीजी के 150 वी जयंती पर हम आपको बताएंगे कि स्वच्छता देवालयों के साथ अन्य स्थानों पर कितनी आवश्यकता है इसकी सोच गांधी को कहां से मिली।


धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी जो विश्व की सबसे पुरानी शहरों में एक है ऐसे में हम बात करें तो महात्मा गांधी 1903 में पहली दफा वाराणसी आए हिंदू होने की वजह से उन्होंने श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन की इच्छा किया। मगर उन्होंने जो वहां पर देखा उसे वह बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुए मक्खियों का झुंड दुकानदारों व तीर्थ यात्रियों का शोर उनके लिए बिल्कुल असहनीय था। विश्वनाथ मंदिर जाते हुए गलियों को गंदगी को देखकर गांधी जी बहुत ही दुखी हुए। जिस जगह पर लोग ध्यान और शांति के माहौल की उम्मीद रखते हैं वहां यह बिल्कुल नदारद है मंदिर पहुंचने पर गांधीजी का सामना सड़े हुए फूलों की दुर्गंध से हुआ उन्होंने देखा कि लोग सिक्कों को अपनी भक्ति को जाहिर करने का जरिया बनाए हुए हैं जिसकी वजह से न केवल संगमरमर की फर्श पर दरारे जी की बल्कि इन सिक्कों पर धूल के जमने से वहां की काफी गंदगी भी हो रही थी ईश्वर की तलाश में वह मंदिर के पूरे परिसर में भटकते हैं मगर उन्होंने धूल और गंदगी के सिवाय कुछ नहीं देखा


Body:उसके बाद महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका चले गए वह एक बार फिर 13 वर्ष बाद इस पवित्र नगरी में आना हुआ गण 1916 फरवरी में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया गया था भारत में गेहूं की पहली बड़ी सार्वजनिक उपस्थिति थी। फिर महात्मा गांधी काशी विश्वनाथ मंदिर गए फिर भी उन्होंने की वह स्थिति वही देखी।


Conclusion:प्रोफ़ेसर कौशल किशोर मिश्र ने बताया भारत में स्वच्छ भारत अभियान के संदर्भ में भारत के प्रधानमंत्री बड़े अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल रहे हैं गांधीजी के डेढ़ सौवीं वर्षगांठ पर गांधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि इससे बढ़कर क्या जिनके स्वच्छता उनके गोल चश्मे की स्वच्छता और स्वच्छता की सबसे पहली बार काशी में ही महात्मा गांधी ने दिया था जब वह विश्वनाथ मंदिर के टूटे हुए संगमरमर के देखा था सड़े हुए फूलों को देखा गंदी गलियों को देखा था तब उन्होंने कहा था उस गंदे जगन पर ईश्वर कैसे रह सकता है ईश्वर तो हमेशा स्वच्छ स्थान पर रहता है स्वच्छता ही ईश्वर है यह संदेश काशी ने महात्मा गांधी से दिया था।

बाईट :-- प्रो कौशल किशोर मिश्रा, काशी हिंदू विश्वविद्यालय

आशुतोष उपाध्याय
9005099684

नोट खबर की एडिटिंग डिक्स द्वारा किया जाएगा गांधी जयंती डेढ़ सौ बीस जयंती पर विशेष, बाढ़ आने के कारण बनारस के कुछ शार्ट इसमें नहीं है घाट का शार्ट सुबह आप ऐड कर सकते हैं।
Last Updated : Oct 2, 2019, 12:34 AM IST
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