वाराणसी: काशी विश्व की प्राचीनतम और अद्भुत नगरी है. यहां पर त्यौहार और व्रत का सिलसिला लगातार चलता रहता है. काशी का हर त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. एक ऐसा व्रत भी है, जो काशी के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है.
17 दिनों तक चलता है विशेष अनुष्ठान
17 दिनों तक चलने वाले इस व्रत को माता अन्नपूर्णा के विशेष अनुष्ठान के रूप में मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत हो चुकी है. माता अन्नपूर्णा के मंदिर में भक्तों की भीड़ जुटने लगी है. इस अनुष्ठान के लिए 17 गांठो के विशेष धागे को लेने के लिए मंदिर में लंबी कतार देखने को मिल रही है. महन्त रामेश्वपूरी ने सविधि धागे का पूजन कर भक्तों को धागा वितरण किया. इस व्रत में 17 धागे 17 दिन व 17 गाठ का बड़ा ही महत्व है. इसमें व्यक्ति एक समय ही फलाहार करते हैं और वो भी बिना नमक के. महिलाएं बाएं व पुरुष दाएं हाथ मे धागा बांधते हैं.
व्रत का विशेष महत्व
अन्नपूर्णा मंदिर के महंत रामेश्वरपुरी का मानना है कि इस व्रत के करने से कभी कोई कष्ट नहीं आता. माता की कृपा से हमेशा खुशहाली बनी रहती है. व्रत का समापन 2 दिसम्बर को होगा. इस दिन जो व्रत रहते हैं, वह मां के दरबार में अपने मन्नतों के अनुसार कोई 51, तो कोई 501 फेरी लगाता है. इसी दिन पूर्वांचल के किसान भी अपनी पहली फसल की धान मां को अर्पित करते हैं. पूरे मन्दिर प्रांगण को धान की बालियों से सजाया जाता है, फिर दूसरे दिन इन बालियों को प्रसाद रूप मे भक्तों में वितरित करते हैं.
इस व्रत की शुरुआत अनादि काल पहले उस वक्त हुई थी. जब काशी में राज करने वाले राजा देवोदास को काशी में पड़े दुर्भिख की जानकारी हुई. जनता के पास खाने को अन्न का एक भी निवाला नहीं था. जिस पर राजा, उनके मंत्री और पुरोहित धनंजय ने 17 दिनों तक माता अन्नपूर्णा का व्रत रख अनुष्ठान किया और माता ने प्रसन्न होकर काशी का दुर्भिख दूर किया. उसी वक्त से काशी में यह विशेष व्रत और अनुष्ठान किया जा रहा है.
-रामेश्वर पुरी, अन्नपूर्णा मंदिर के महंत