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काशी में शुरू हुआ 17 दिनों तक चलने वाला मां अन्नपूर्णा का विशेष अनुष्ठान - annpurna vrat in varanasi

वाराणसी के अन्नपूर्णा मंदिर में अन्नपूर्णा महाव्रत की शुरुआत 17 नवम्बर से हो चुकी है. इस व्रत में 17 धागे, 17 दिन व 17 गांठ का बड़ा ही महत्व है. मान्यता है कि अन्नपूर्णा महाव्रत को करने से सभी दुख और दरिद्र दूर होता है और धन-धान्य की कमी नहीं होती है.

मां अन्नपूर्णा
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Published : Nov 18, 2019, 11:53 AM IST

वाराणसी: काशी विश्व की प्राचीनतम और अद्भुत नगरी है. यहां पर त्यौहार और व्रत का सिलसिला लगातार चलता रहता है. काशी का हर त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. एक ऐसा व्रत भी है, जो काशी के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है.

अन्नपूर्णा महाव्रत शुरू.

17 दिनों तक चलता है विशेष अनुष्ठान
17 दिनों तक चलने वाले इस व्रत को माता अन्नपूर्णा के विशेष अनुष्ठान के रूप में मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत हो चुकी है. माता अन्नपूर्णा के मंदिर में भक्तों की भीड़ जुटने लगी है. इस अनुष्ठान के लिए 17 गांठो के विशेष धागे को लेने के लिए मंदिर में लंबी कतार देखने को मिल रही है. महन्त रामेश्वपूरी ने सविधि धागे का पूजन कर भक्तों को धागा वितरण किया. इस व्रत में 17 धागे 17 दिन व 17 गाठ का बड़ा ही महत्व है. इसमें व्यक्ति एक समय ही फलाहार करते हैं और वो भी बिना नमक के. महिलाएं बाएं व पुरुष दाएं हाथ मे धागा बांधते हैं.

व्रत का विशेष महत्व
अन्नपूर्णा मंदिर के महंत रामेश्वरपुरी का मानना है कि इस व्रत के करने से कभी कोई कष्ट नहीं आता. माता की कृपा से हमेशा खुशहाली बनी रहती है. व्रत का समापन 2 दिसम्बर को होगा. इस दिन जो व्रत रहते हैं, वह मां के दरबार में अपने मन्नतों के अनुसार कोई 51, तो कोई 501 फेरी लगाता है. इसी दिन पूर्वांचल के किसान भी अपनी पहली फसल की धान मां को अर्पित करते हैं. पूरे मन्दिर प्रांगण को धान की बालियों से सजाया जाता है, फिर दूसरे दिन इन बालियों को प्रसाद रूप मे भक्तों में वितरित करते हैं.

इस व्रत की शुरुआत अनादि काल पहले उस वक्त हुई थी. जब काशी में राज करने वाले राजा देवोदास को काशी में पड़े दुर्भिख की जानकारी हुई. जनता के पास खाने को अन्न का एक भी निवाला नहीं था. जिस पर राजा, उनके मंत्री और पुरोहित धनंजय ने 17 दिनों तक माता अन्नपूर्णा का व्रत रख अनुष्ठान किया और माता ने प्रसन्न होकर काशी का दुर्भिख दूर किया. उसी वक्त से काशी में यह विशेष व्रत और अनुष्ठान किया जा रहा है.
-रामेश्वर पुरी, अन्नपूर्णा मंदिर के महंत

वाराणसी: काशी विश्व की प्राचीनतम और अद्भुत नगरी है. यहां पर त्यौहार और व्रत का सिलसिला लगातार चलता रहता है. काशी का हर त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. एक ऐसा व्रत भी है, जो काशी के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है.

अन्नपूर्णा महाव्रत शुरू.

17 दिनों तक चलता है विशेष अनुष्ठान
17 दिनों तक चलने वाले इस व्रत को माता अन्नपूर्णा के विशेष अनुष्ठान के रूप में मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत हो चुकी है. माता अन्नपूर्णा के मंदिर में भक्तों की भीड़ जुटने लगी है. इस अनुष्ठान के लिए 17 गांठो के विशेष धागे को लेने के लिए मंदिर में लंबी कतार देखने को मिल रही है. महन्त रामेश्वपूरी ने सविधि धागे का पूजन कर भक्तों को धागा वितरण किया. इस व्रत में 17 धागे 17 दिन व 17 गाठ का बड़ा ही महत्व है. इसमें व्यक्ति एक समय ही फलाहार करते हैं और वो भी बिना नमक के. महिलाएं बाएं व पुरुष दाएं हाथ मे धागा बांधते हैं.

व्रत का विशेष महत्व
अन्नपूर्णा मंदिर के महंत रामेश्वरपुरी का मानना है कि इस व्रत के करने से कभी कोई कष्ट नहीं आता. माता की कृपा से हमेशा खुशहाली बनी रहती है. व्रत का समापन 2 दिसम्बर को होगा. इस दिन जो व्रत रहते हैं, वह मां के दरबार में अपने मन्नतों के अनुसार कोई 51, तो कोई 501 फेरी लगाता है. इसी दिन पूर्वांचल के किसान भी अपनी पहली फसल की धान मां को अर्पित करते हैं. पूरे मन्दिर प्रांगण को धान की बालियों से सजाया जाता है, फिर दूसरे दिन इन बालियों को प्रसाद रूप मे भक्तों में वितरित करते हैं.

इस व्रत की शुरुआत अनादि काल पहले उस वक्त हुई थी. जब काशी में राज करने वाले राजा देवोदास को काशी में पड़े दुर्भिख की जानकारी हुई. जनता के पास खाने को अन्न का एक भी निवाला नहीं था. जिस पर राजा, उनके मंत्री और पुरोहित धनंजय ने 17 दिनों तक माता अन्नपूर्णा का व्रत रख अनुष्ठान किया और माता ने प्रसन्न होकर काशी का दुर्भिख दूर किया. उसी वक्त से काशी में यह विशेष व्रत और अनुष्ठान किया जा रहा है.
-रामेश्वर पुरी, अन्नपूर्णा मंदिर के महंत

Intro:खबर रैप से भेजी है।

स्पेशल:

वाराणसी: काशी अद्भुत नगरी है और यहां पर त्यौहार और व्रत का सिलसिला लगातार चलता रहता है. हर व्रत और त्यौहार को काशी का हर त्यौहार है बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है लेकिन एक ऐसा व्रत भी है जो काशी के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. 17 दिनों तक चलने वाले इस व्रत को माता अन्नपूर्णा के विशेष अनुष्ठान के रूप में मनाया जाता है. जिसकी शुरुआत हो गई है. इस व्रत के तहत माता अन्नपूर्णा के मंदिर में भक्तों की भीड़ जुटने लगी है और 17 दिनों तक चलने वाली इस अनुष्ठान के लिए 17 गांठो के विशेष धागे को लेने के लिए लंबी कतार मंदिर में देखने को मिल रही है. क्या है इस व्रत का विशेष महत्व और पौराणिकता के आधार पर क्यों बनाया रखा जाता है यह महाव्रत जानिये.
Body:वीओ-01 अन्नपूर्णा महाव्रत की शुरुवात 17 नवम्बर से हुई है. इस व्रत में 17 धागे 17 दिन व 17 गाठ का बड़ा ही महत्व है इसमें एक समय ही फलहार करते हैं और वो भी बिना नमक के, महिलाये बाये व पुरुष दाएं हाथ मे धागा बांधते हैं. महन्त रामेश्वपूरी ने सविधि धागे का पूजन कर इसे अपने हाथों से भक्तो को धागा वितरण किया. अन्नपूर्णा मंदिर के महंत रामेश्वर पुरी का गाना है कि इस व्रत के करने से कभी कोई कष्ट नही आता हमेशा खुशाली बनी रहती है. व्रत समापन 2 दिसम्बर को होगा. इस दिन व्रत जो रहते है वह माँ के दरबार मे अपने मन्नतों के अनुसार कोई 51 तो कोई 501 फेरी लगाता है. इसी दिन पूर्वांचल के किसान भी अपने पहले फसल का धान माँ को अर्पित करते है पूरे मन्दिर प्रांगण को धान की बालियों से सजाया जाता है, फिर दूसरे दिन इन बालियों को प्रसाद रूप मे भक्तो मेब वितरित करते है.Conclusion:वीओ-02 मंदिर के महंत रामेश्वर पुरी ने बताया कि इस व्रत की शुरुआत अनादि काल पहले उस वक्त हुई थी जब काशी में राज करने वाले राजा देवोदास को काशी में पड़े दुर्भिख की जानकारी हुई. जनता के पास खाने को अन्य का एक भी निवाला नहीं था और देवोदास से परेशान थे जिस पर उनके मंत्री और पुरोहित धनंजय ने 17 दिनों तक माता अन्नपूर्णा का व्रत रख अनुष्ठान किया और माता ने प्रसन्न होकर काशी का दुर्भिख दूर किया. उसी वक्त से काशी में यह विशेष व्रत और अनुष्ठान किया जा रहा है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से कभी भी दुख दरिद्र और धन-धान्य की कमी किसी के घर में नहीं रहती है.

बाईट- रामेश्वर पुरी, महंत, अन्नपूर्णा मंदिर

गोपाल मिश्र

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