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Kashi में दुकानें उजड़ने के बाद सिंधी समाज का ये दर्द फूटा, कांग्रेस का बीजेपी पर निशाना

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Published : Mar 11, 2023, 3:35 PM IST

वाराणसी में जी20 के आयोजन के चलते सिंधी समाज की 1950 से बसीं दुकानों को अतिक्रमण के मद्देजनर ढहा दिया गया. इसे लेकर सिंधी समाज का दर्द सामने आया है. व्यापारी समायोजन की मांग उठा रहे हैं. वहीं, कांग्रेस भी बीजेपी पर निशाना साध रही है. चलिए जानते हैं इस बारे में.

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वाराणसी: वाराणसी में होली के पहले 1950 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान शरणार्थी के रूप में आए सिंधी समाज के लोगों को जो दुकाने आवंटित की गई थी, उन्हें जी 20 सम्मेलन से पहले अतिक्रमण के नाम पर हटाए जाने का विवाद अब तूल पकड़ता दिखाई दे रहा है. ईटीवी भारत ने सैकड़ों परिवारों के आगे खड़े हुए रोजी-रोटी के इस संकट के मामले को उठाया तो अब राजनीतिक दलों ने इस पर सियासी दांव खेलना भी शुरू कर दिया है. कांग्रेस ने तो सड़क पर उतरकर आंदोलन की बात भी कह दी है. वहीं समाजवादी पार्टी इस मामले को विधान परिषद में उठा चुकी है और अब सपा पीड़ित व्यापारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने की भी बात कर रही है.

दुकानदार और कांग्रेस नेता अजय राय ने ये कहा.

दरअसल, वाराणसी के दशाश्वमेध क्षेत्र में चितरंजन पार्क के बाहर बताई गई लगभग 140 दुकानें होली के पहले अतिक्रमण के नाम पर गिरवा दी गई थी. इस दौरान विरोध भी हुआ था. व्यापारियों का कहना था कि 1975 में इमरजेंसी के दौरान भी इन दुकानों को गिराए जाने की कोशिश सरकार ने की थी लेकिन उस वक्त हाईकोर्ट से स्टे की वजह से यह दुकाने नहीं गिराई जा सकी थी और तभी से यह मामला चला आ रहा था.

व्यापारियों को कहना है कि 1950 में जब वे शरणार्थी के रूप में यहां आए थे तो खुद सरकार ने उन्हें यहां स्थापित किया था. 35 दुकानें सिंधी और पंजाबी समाज के लोगों को दी गई थी जबकि अन्य दुकानें दूसरे लोगों को आवंटित की गई थी. सबसे बड़ी बात यह है कि इन दुकानों को गिराए जाने के पीछे विभाग अपना ही तर्क दे रहा है.



वहीं, सहायक नगर आयुक्त अमित शुक्ला का कहना है कि दुकानों को गिराए जाने के बाद व्यापारियों को पास में ही बनाए गए दशाश्वमेध प्लाजा में दुकाने दी जाएंगी. इसके लिए उन्हें 6 लाख से 18 लाख रुपए तक का भुगतान करना होगा. उन्हें दुकानों को आवंटित कर दी जाएंगी. इसके लिए पहले आओ पहले पाओ की तर्ज पर दुकानें आवंटित की जाएंगी.

वहीं, दुकानदारों ने मांग उठाई है कि उन्हें समायोजित किया जाए, क्योंकि दुकानदारों के पास इतने पैसे नहीं है कि वह अपनी गृहस्थी उजड़ने के बाद अब पैसा खर्च करके दुकान ले पाए. मांग की गई है कि दुकानदारों को मुफ्त में दुकानें मिले और उसको वह संचालित करते रहे जिसके बदले किराया चाहे तो ले सकते हैं लेकिन दुकान खरीदने की स्थिति में कोई भी दुकानदार नहीं है.


वहीं, इस पूरे मामले में कांग्रेस नेता अजय राय का कहना है कि कांग्रेस ने उन्हें बसाया था और बीजेपी ने उन्हें उजाड़ दिया. 1950 में जब कांग्रेस ने उनको दुकानें देकर वहां पर स्थापित किया था तब वह अपनी रोजी-रोटी चलाने में सक्षम थे और आज जिस बीजेपी को लोग चुनकर लाए हैं वहीं बीजेपी उनके घर को बर्बाद कर रही है. यह सरासर गलत है. हम उस वक्त भी उनके साथ थे और अब भी उनके साथ हैं. जरूरत पड़ेगी तो सड़क पर उतरकर आंदोलन भी करेंगे.

समाजवादी पार्टी के एमएलसी आशुतोष सेना ने इस मुद्दे को उठाया भी है उनका कहना है कि यह गलत हुआ है और इस मामले को हमने सदन में उठाया है और हंगामा हुआ था. व्यापारियों के साथ सही नहीं हुआ है, उन्हें समायोजित किया जाना चाहिए न कि उन्हें दुकानें भारी-भरकम पैसे लेकर दी जानी चाहिए. इस मामले में समाजवादी पार्टी व्यापारियों के साथ खड़ी है.

ये भी पढ़ेंः Muzaffarnagar news : टिकैत परिवार को बम से उड़ाने की धमकी देने वाला दिल्ली में गिरफ्तार

वाराणसी: वाराणसी में होली के पहले 1950 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान शरणार्थी के रूप में आए सिंधी समाज के लोगों को जो दुकाने आवंटित की गई थी, उन्हें जी 20 सम्मेलन से पहले अतिक्रमण के नाम पर हटाए जाने का विवाद अब तूल पकड़ता दिखाई दे रहा है. ईटीवी भारत ने सैकड़ों परिवारों के आगे खड़े हुए रोजी-रोटी के इस संकट के मामले को उठाया तो अब राजनीतिक दलों ने इस पर सियासी दांव खेलना भी शुरू कर दिया है. कांग्रेस ने तो सड़क पर उतरकर आंदोलन की बात भी कह दी है. वहीं समाजवादी पार्टी इस मामले को विधान परिषद में उठा चुकी है और अब सपा पीड़ित व्यापारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने की भी बात कर रही है.

दुकानदार और कांग्रेस नेता अजय राय ने ये कहा.

दरअसल, वाराणसी के दशाश्वमेध क्षेत्र में चितरंजन पार्क के बाहर बताई गई लगभग 140 दुकानें होली के पहले अतिक्रमण के नाम पर गिरवा दी गई थी. इस दौरान विरोध भी हुआ था. व्यापारियों का कहना था कि 1975 में इमरजेंसी के दौरान भी इन दुकानों को गिराए जाने की कोशिश सरकार ने की थी लेकिन उस वक्त हाईकोर्ट से स्टे की वजह से यह दुकाने नहीं गिराई जा सकी थी और तभी से यह मामला चला आ रहा था.

व्यापारियों को कहना है कि 1950 में जब वे शरणार्थी के रूप में यहां आए थे तो खुद सरकार ने उन्हें यहां स्थापित किया था. 35 दुकानें सिंधी और पंजाबी समाज के लोगों को दी गई थी जबकि अन्य दुकानें दूसरे लोगों को आवंटित की गई थी. सबसे बड़ी बात यह है कि इन दुकानों को गिराए जाने के पीछे विभाग अपना ही तर्क दे रहा है.



वहीं, सहायक नगर आयुक्त अमित शुक्ला का कहना है कि दुकानों को गिराए जाने के बाद व्यापारियों को पास में ही बनाए गए दशाश्वमेध प्लाजा में दुकाने दी जाएंगी. इसके लिए उन्हें 6 लाख से 18 लाख रुपए तक का भुगतान करना होगा. उन्हें दुकानों को आवंटित कर दी जाएंगी. इसके लिए पहले आओ पहले पाओ की तर्ज पर दुकानें आवंटित की जाएंगी.

वहीं, दुकानदारों ने मांग उठाई है कि उन्हें समायोजित किया जाए, क्योंकि दुकानदारों के पास इतने पैसे नहीं है कि वह अपनी गृहस्थी उजड़ने के बाद अब पैसा खर्च करके दुकान ले पाए. मांग की गई है कि दुकानदारों को मुफ्त में दुकानें मिले और उसको वह संचालित करते रहे जिसके बदले किराया चाहे तो ले सकते हैं लेकिन दुकान खरीदने की स्थिति में कोई भी दुकानदार नहीं है.


वहीं, इस पूरे मामले में कांग्रेस नेता अजय राय का कहना है कि कांग्रेस ने उन्हें बसाया था और बीजेपी ने उन्हें उजाड़ दिया. 1950 में जब कांग्रेस ने उनको दुकानें देकर वहां पर स्थापित किया था तब वह अपनी रोजी-रोटी चलाने में सक्षम थे और आज जिस बीजेपी को लोग चुनकर लाए हैं वहीं बीजेपी उनके घर को बर्बाद कर रही है. यह सरासर गलत है. हम उस वक्त भी उनके साथ थे और अब भी उनके साथ हैं. जरूरत पड़ेगी तो सड़क पर उतरकर आंदोलन भी करेंगे.

समाजवादी पार्टी के एमएलसी आशुतोष सेना ने इस मुद्दे को उठाया भी है उनका कहना है कि यह गलत हुआ है और इस मामले को हमने सदन में उठाया है और हंगामा हुआ था. व्यापारियों के साथ सही नहीं हुआ है, उन्हें समायोजित किया जाना चाहिए न कि उन्हें दुकानें भारी-भरकम पैसे लेकर दी जानी चाहिए. इस मामले में समाजवादी पार्टी व्यापारियों के साथ खड़ी है.

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