वाराणसी: सहतवार और नव त्योहार वाले इस देश में ग्रह, नक्षत्र और तिथियों के हिसाब से विभिन्न पर्व मनाए जाते हैं. मंगलवार को गंगा दशहरा का पर्व मनाया गया, तो वहीं, आज यानी बुधवार को निर्जला एकादशी का पावन पर्व मनाया जा रहा है. गंगा स्नान के साथ ही श्रद्धालु दान पुण्य भी कर रहे हैं. ऐसी मान्यता है कि यदि निर्जला एकादशी का व्रत रहकर गंगा स्नान और दान किया जाए, तो अकेले 25 एकादशी के व्रत का फल इस व्रत से मिलता है.
ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि हर एकादशी का अपना विशेष महत्व होता है. लेकिन, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है. इस एकादशी को निर्जला और भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत और जलदान से जीवन के सारे कष्ट दूर होतें हैं. इस दिन व्रत रखने वाले को पूरे दिन बिना जल ग्रहण के व्रत रखना होता है.
निर्जला एकादशी का व्रत रखने से साल के सभी एकादशी के व्रत का फल प्राप्त होता है. इसलिए सनातन धर्म में इस एकादशी का खासा महत्व है. मान्यता है कि इस दिन जलदान करने से पितृदोष से मुक्ति भी मिलती है. इसके अलावा निर्जला एकादशी के दिन छाता, जूता और अन्न का दान करने की सलाह भी पुरोहितों द्वारा दी जाती हैं. इन चीजों के दान से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आने की मान्यता है.
पांडवों से जुड़ी है कथाः निर्जला एकादशी व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है. धार्मिक पुस्तकों के मुताबिक, महर्षि व्यास के कहने पर पांडवों ने इस व्रत को रखा था. कथाओं के अनुसार, पांडवों का दूसरा भाई भीमसेन खाने-पीने का शौकीन थे, वो चाह कर भी साल में 25 एकादशी का व्रत नहीं रख पाते थे. वह इससे काफी परेशान था. यह बात जब उन्होंने महर्षि व्यास को बतायी, तो उन्होंने ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने की सलाह दी. साथ ही महर्षि व्यास ने उन्हें उसका महत्व भी बताया. इसके बाद ये एकादशी निर्जला एकादशी के साथ भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाने जानी लगी.
दान का विशेष महत्वः पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि 31 तारीख यानी बुधवार को निर्जला एकादशी का व्रत है. इस दिन व्रत करने से निरोगी काया होती है. सर्वार्थ सुख की प्राप्ति होती है. व्यास जी ने अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने की सलाह दी थी. इस एकादशी को निर्जला व्रत रहने की मान्यता मानी जाती है. इस दिन मिट्टी के पात्र का दान विशेष तौर पर किया जाता है. गाय की आकृति सोने और चांदी की बनवा कर उसमें अन्न का दान करना चाहिए.
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