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Sharad Purnima 2021: 20 अक्टूबर की रात्रि को आसमान से होगी अमृत वर्षा, जानें क्यों इस दिन बनाई जाती है खीर

यूं तो हर पूर्णिमा का हिदू धर्म में महत्व होता है, लेकिन आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानि शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है. इस साल शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर (मंगलवार) को है. हालांकि पंचांग भेद होने के कारण कुछ जगहों पर यह पर्व 20 अक्टूबर को भी मनाया जाएगा. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है. इसे अमृत काल भी कहा जाता है....

Sharad Purnima 2021
20 अक्टूबर की रात्रि को आसमान से होगी अमृत वर्षा
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Published : Oct 19, 2021, 7:38 AM IST

वाराणसी: सनातन धर्म पर्व और त्योहारों का अद्भुत समागम कहा जाता है. सनातन धर्म में हर तिथि अपने आप में विशेष महत्व रखती है और बात जब शरद पूर्णिमा की हो तो फिर आपके स्वास्थ्य से जुड़ा यह व्रत जीवन में अति महत्वपूर्ण हो जाता है. इसकी बड़ी वजह यह है कि शरद पूर्णिमा के दिन आसमान से आने वाली चंद्रमा की किरणें औषधीय गुणों के साथ धरती पर पड़ती हैं, जो एक तरफ आपको सुख शांति समृद्धि देती है तो वहीं औषधीय गुणों से युक्त किरणों से आपका जीवन स्वास्थ्य और संपन्नता से सुखमय होता है, तो आइए ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक 20 अक्टूबर को पड़ने वाली शरद पूर्णिमा को लेकर आपको बताते हैं कुछ विशेष बातें...

19 नहीं 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी शरद पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा अश्विन महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि इस बार पूर्णिमा तिथि 19 अक्टूबर की शाम लगभग 7:00 बजे लगेगी, जिसका मान 20 अक्टूबर की रात्रि 8:20 तक होगा. सनातन धर्म में उदया तिथि के मांग के अनुसार किसी भी पर्व को मनाने का विधान है. यानी सूर्य उदय से लेकर सूर्य अस्त होने तक यदि कोई तिथि उपलब्ध होती है, तो उसका विधान उसी दिन माना जाता है और पूर्णिमा तिथि 20 अक्टूबर को पूरा दिन मिलने की वजह से शरद पूर्णिमा का पर्व 20 तारीख को ही मनाया जाएगा.

जानें शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व.

वर्षा ऋतु का समापन शरद का आगमन
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि शरद पूर्णिमा का पर्व सर्वार्थसिद्धि योग के लिए जाना जाता है. इसकी बड़ी वजह यह है कि शरद पूर्णिमा वर्षा ऋतु के अंत के साथ शरद ऋतु के आगमन का पर्व है. बारिश होने की वजह से आसमान पूरी तरह से साफ सुथरा और स्पष्ट होता है. इस वजह से चंद्रमा से निकलने वाला प्रकाश और उसकी रश्मिया जब धरती पर आती हैं, तो वह औषधीय गुणों से परिपूर्ण होती हैं. औषधीय गुणों का तात्पर्य चंद्रमा से निकलने वाली रश्मियों से मिलने वाले स्वास्थ्यवर्धक रोशनी से होता है. यही वजह है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की रोशनी के नीचे रात्रि जागरण का विधान बताया गया है.

आसमान से होगी अमृत वर्षा
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि इस दिन विशेष तौर पर गाय के दूध से खीर तैयार करने के बाद उसे चंद्रमा की रोशनी में छत पर रखना चाहिए और अगले दिन सुबह स्नान आदि करके खाली पेट इस खीर का सेवन परिवार के सभी सदस्यों को करना चाहिए. इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी रोशनी से औषधीय गुणों के साथ खीर को परिपूर्ण कर देता है और इसके सेवन मात्र से आपको स्वास्थ्य लाभ होता है.

इसे भी पढ़ें-लखीमपुर खीरी हिंसा मामला: प्रमुख आरोपी सुमित जायसवाल समेत चार लोग गिरफ्तार

सफेद खाद्य सामग्री का लगाएं भोग
पंडित पवन त्रिपाठी के मुताबिक पूर्णिमा तिथि पर वैसे तो सत्यनारायण भगवान की कथा करने की मान्यता है और शरद पूर्णिमा पर भी भगवान सत्यनारायण की कथा करने के बाद अपने घर में मौजूद देव विग्रह को चंद्रमा की रोशनी में स्थापित करना चाहिए और भगवान को सफेद चीजों से बनाई गई सामग्री का भोग लगाया जाना चाहिए. जैसे कच्चा चूड़ा, रेवड़ी, खीर रसगुल्ला इत्यादि सफेद चीजों का भोग लगाए जाने का तात्पर्य इसलिए माना जाता है कि औषधीय गुण सफेद चीजों में तेजी से आते हैं.

चंद्रमा की रोशनी के नीचे करे रात्रि जागरण
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है इस दिन रात्रि जागरण का भी विधान है, लेकिन यदि आप रात्रि जागरण नहीं कर रहे हैं. तो रात्रि 10:00 बजे से लेकर 2:00 बजे तक हल के वस्त्र या फिर सफेद रंग के हल के वस्त्र पहनकर चंद्रमा की रोशनी के नीचे बैठना चाहिए. इससे आपकी काया स्वास्थ्य और सुंदरता को प्राप्त करती है, शरद पूर्णिमा का पर्व सभी के लिए विशेष फलदाई है, जो धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है.

वाराणसी: सनातन धर्म पर्व और त्योहारों का अद्भुत समागम कहा जाता है. सनातन धर्म में हर तिथि अपने आप में विशेष महत्व रखती है और बात जब शरद पूर्णिमा की हो तो फिर आपके स्वास्थ्य से जुड़ा यह व्रत जीवन में अति महत्वपूर्ण हो जाता है. इसकी बड़ी वजह यह है कि शरद पूर्णिमा के दिन आसमान से आने वाली चंद्रमा की किरणें औषधीय गुणों के साथ धरती पर पड़ती हैं, जो एक तरफ आपको सुख शांति समृद्धि देती है तो वहीं औषधीय गुणों से युक्त किरणों से आपका जीवन स्वास्थ्य और संपन्नता से सुखमय होता है, तो आइए ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक 20 अक्टूबर को पड़ने वाली शरद पूर्णिमा को लेकर आपको बताते हैं कुछ विशेष बातें...

19 नहीं 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी शरद पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा अश्विन महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि इस बार पूर्णिमा तिथि 19 अक्टूबर की शाम लगभग 7:00 बजे लगेगी, जिसका मान 20 अक्टूबर की रात्रि 8:20 तक होगा. सनातन धर्म में उदया तिथि के मांग के अनुसार किसी भी पर्व को मनाने का विधान है. यानी सूर्य उदय से लेकर सूर्य अस्त होने तक यदि कोई तिथि उपलब्ध होती है, तो उसका विधान उसी दिन माना जाता है और पूर्णिमा तिथि 20 अक्टूबर को पूरा दिन मिलने की वजह से शरद पूर्णिमा का पर्व 20 तारीख को ही मनाया जाएगा.

जानें शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व.

वर्षा ऋतु का समापन शरद का आगमन
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि शरद पूर्णिमा का पर्व सर्वार्थसिद्धि योग के लिए जाना जाता है. इसकी बड़ी वजह यह है कि शरद पूर्णिमा वर्षा ऋतु के अंत के साथ शरद ऋतु के आगमन का पर्व है. बारिश होने की वजह से आसमान पूरी तरह से साफ सुथरा और स्पष्ट होता है. इस वजह से चंद्रमा से निकलने वाला प्रकाश और उसकी रश्मिया जब धरती पर आती हैं, तो वह औषधीय गुणों से परिपूर्ण होती हैं. औषधीय गुणों का तात्पर्य चंद्रमा से निकलने वाली रश्मियों से मिलने वाले स्वास्थ्यवर्धक रोशनी से होता है. यही वजह है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की रोशनी के नीचे रात्रि जागरण का विधान बताया गया है.

आसमान से होगी अमृत वर्षा
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि इस दिन विशेष तौर पर गाय के दूध से खीर तैयार करने के बाद उसे चंद्रमा की रोशनी में छत पर रखना चाहिए और अगले दिन सुबह स्नान आदि करके खाली पेट इस खीर का सेवन परिवार के सभी सदस्यों को करना चाहिए. इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी रोशनी से औषधीय गुणों के साथ खीर को परिपूर्ण कर देता है और इसके सेवन मात्र से आपको स्वास्थ्य लाभ होता है.

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सफेद खाद्य सामग्री का लगाएं भोग
पंडित पवन त्रिपाठी के मुताबिक पूर्णिमा तिथि पर वैसे तो सत्यनारायण भगवान की कथा करने की मान्यता है और शरद पूर्णिमा पर भी भगवान सत्यनारायण की कथा करने के बाद अपने घर में मौजूद देव विग्रह को चंद्रमा की रोशनी में स्थापित करना चाहिए और भगवान को सफेद चीजों से बनाई गई सामग्री का भोग लगाया जाना चाहिए. जैसे कच्चा चूड़ा, रेवड़ी, खीर रसगुल्ला इत्यादि सफेद चीजों का भोग लगाए जाने का तात्पर्य इसलिए माना जाता है कि औषधीय गुण सफेद चीजों में तेजी से आते हैं.

चंद्रमा की रोशनी के नीचे करे रात्रि जागरण
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है इस दिन रात्रि जागरण का भी विधान है, लेकिन यदि आप रात्रि जागरण नहीं कर रहे हैं. तो रात्रि 10:00 बजे से लेकर 2:00 बजे तक हल के वस्त्र या फिर सफेद रंग के हल के वस्त्र पहनकर चंद्रमा की रोशनी के नीचे बैठना चाहिए. इससे आपकी काया स्वास्थ्य और सुंदरता को प्राप्त करती है, शरद पूर्णिमा का पर्व सभी के लिए विशेष फलदाई है, जो धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है.

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