वाराणसी: 9 दिनों तक माता के अलग-अलग रूपों की पूजा के क्रम में आज नवरात्रि का सातवां दिन है. यह दिन नवरात्रि के अन्य दिनों की अपेक्षा बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि आज देवी काली के पूजन का विधान है. देवी काली सभी तरह की आपदा और विपदा पर विजय हासिल करने वाली देवी हैं. माता काली का यह रूप है तो बहुत भव्य और खतरनाक दिखता है, लेकिन माता का यह रूप बड़ी से बड़ी मुसीबत को दूर करने का काम करता है. ऐसी मान्यता है कि दुष्टों का संहार करने के लिए देवी काली ने इस रूप को धरा था.
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि माता के सप्तम स्वरूप की पूजा करने से काल का नाश होता है. मां के इस स्वरूप को वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है. मां कालरात्रि की कृपा से भक्त हमेशा भयमुक्त रहता है. मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों को अग्नि, जल, शत्रु आदि किसी का भी भय नहीं होता. कालरात्रि का रंग गहरा काला है और बाल खुले हुए हैं. वह गन्धर्व पर सवार रहती हैं. माता की चार भुजाएं हैं. उनके एक बाएं हाथ में कटार और दूसरे बाएं हाथ में लोहे का कांटा है. वहीं, एक दायां हाथ अभय मुद्रा और दूसरा दायां हाथ वर मुद्रा में रहता है.
माता के गले में मुंडों की माला होती है. इन्हें त्रिनेत्री भी कहा जाता है. माता के तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल हैं. माता का यह स्वरूप कान्तिमय और अद्भुत दिखाई देता है. भगवती के इस रूप में संहार की शक्ति है. मृत्यु अर्थात काल का विनाश करने की शक्ति भगवती में होने के कारण इनकी कालरात्रि के रूप में पूजा की जाती है.
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि माता काली का यह रूप संहार का प्रतीक माना जाता है और माता काली की पूजा का विधान भी अलग है. माता को तंत्र की देवी के रूप में पूजा जाता है और उन्हें लाल चीजें अति प्रिय हैं. लाल फूल, अनार अर्पित करने से माता प्रसन्न होती हैं. इसके अतिरिक्त यदि आप कोई मनोकामना लेकर माता के पास जा रहे हैं तो माता को पान अवश्य चढ़ाना चाहिए.
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इस मंत्र का करें जाप:
ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै:
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलता कण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
ध्यान मंत्र:
जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री, स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
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