वाराणसी : भारतवर्ष में कार्तिक महीने में पड़ने वाले छठ को हर कोई जानता है और यह पूरे देश में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इसके साथ ही चैत्र माह में पड़ने वाला छठ भी उसी विधि-विधान से मनाया जाता है. वाराणसी के घाटों पर गुरूवार को गंगा के किनारे मंडप बनाया गया और छठ माता की पूजा की गई. इसके साथ ही व्रतियों ने गीत गाकर मां से मनोकामना पूरी करने के लिए प्रार्थना की.
चैत्र छठ का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह गर्मी के महीने में पड़ता है. इस दौरान 36 घंटे बिना पानी का यह व्रत बहुत ही तपस्या वाला होता है. लोक मान्यता यह भी है कि कार्तिक में पड़ने वाली जो छठ है यह उनकी सास है. नहाय खाय से शुरु हुआ यह अनुष्ठान भगवान भास्कर को संध्याकालीन अर्घ्य आज दिया गया. सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ यह अनुष्ठान संपन्न होगा. बिहार में चैत्र मास में भी छठ पूरी आस्था और धूमधाम से मनाई जाती है.
छठ का महत्व इसलिए ज्यादा है क्योंकि इसमें आरोग्यता, संतान और मनोकामना की पूर्ति के लिए भगवान भास्कर की उपासना की जाती है. छठ महापर्व खासकर शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि का पर्व है. वैदिक मान्यता है कि नहाय खाय से सप्तमी के पारण तक उन भक्तों पर माता की कृपा बरसती है, जो श्रद्धापूर्वक व्रत रखते हैं.
श्रद्धालु शांति देवी ने बताया कि हम लोग चैती छठ मना रहे हैं, यह बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. यह पर्व गर्मी में पड़ता है, इसलिए बहुत से लोग इस छठ को नहीं करते हैं. पूरे विधि-विधान कार्तिक में पड़ने वाली छठ की तरह ही होते हैं. वहीं चंद्रकांत सिंह ने बताया कि यह श्रद्धा का पर्व है. जैसे हम उस कार्तिक छठ को मनाते हैं, वैसे ही इसे भी मनाया जाता है. भगवान भास्कर और मां छठ की आराधना का यह महापर्व है, इसमें मां से जिस भी मनोकामना के साथ यह पूजन किया जाता है, वह पूर्ण होती है.