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हजारों वर्ष पुरानी पांडुलियों पर होगा वैज्ञानिक अध्ययन, चयनित देश के 13 विश्वविद्यालयों में दो वाराणसी के

पुरानी वैदिक ज्ञान और परंपराओं को सहेजने के लिए केंद्र सरकार द्वारा आईकेएस सेंटर बनाया जा रहा है. इसके तहत देश के 13 विश्वविद्यालयों का चयन किया गया है. इसमें दो वाराणसी के हैं.

वाराणसी के दो विश्वविद्यालयों का चयन
वाराणसी के दो विश्वविद्यालयों का चयन
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Published : Jun 16, 2022, 12:46 PM IST

वाराणसी: पुरानी वैदिक ज्ञान और परंपराओं को सहेजने के लिए केंद्र सरकार द्वारा आईकेएस सेंटर बनाया जा रहा है. इसके तहत देश के 13 विश्वविद्यालयों का चयन किया गया है. इसमें वाराणसी के दो विश्वविद्यालय शामिल हैं. इन विश्वविद्यालयों में एक नाम संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का है. यहां पर 37 कलाओं में शोध किया जाएगा. खास बात यह है कि यह शोध विश्वविद्यालय में मौजूद दुर्लभ पांडुलिपियों में मौजूद तथ्यों के आधार पर होगा.

बता दें कि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में हजारों वर्ष पुरानी दुर्लभ पांडुलिपियों मौजूद हैं. इसमें पुराने पारंपरिक वैदिक तथ्यों को शामिल किया गया है. इनमें सबसे पुरानी श्रीमद्भागवत गीता की हस्तलिखित पांडुलिपि भी मौजूद है. शिक्षा मंत्रालय ने आईकेएस योजना के जरिए इन पांडुलिपियों को अन्वेषण में शामिल करने का निर्देश दिया है. इसके तहत इनका वैज्ञानिक अध्ययन कर इसे सहजता से आम जनमानस तक उपलब्ध कराया जा सकेगा. इसके लिए मंत्रालय द्वारा लगभग 18 लाख रुपये की प्रथम किस्त भी जारी कर दी गई है.

जानकारी देते जनसंपर्क अधिकारी डॉ. शशिन्द्र मिश्र

इस बारे में विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. शशिन्द्र मिश्र ने बताया कि प्राचीन काल में ऋषि मुनियों की ज्ञान परंपरा के आधार पर शिक्षण के कार्य का संचालन किया जाता था और लोग परंपरा प्रथाएं इत्यादि का अनुसरण करते थे. हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा काफी समृद्ध रही है. वर्तमान में जो भी वैज्ञानिक अन्वेषण किए जा रहे हैं, उनका वर्णन हमारे वेदों व पुराणों में हजारों वर्ष पहले ही किया जा चुका है.

यह भी पढ़ें: शामली: 300 साल पुरानी मस्जिद को बचाने के लिए आगे आए हिंदू, ऐतिहासिक गौरव गाथा समेटे इस मस्जिद में नहीं होती है नमाज

उन्होंने बताया कि ज्ञान और परंपराओं को वैज्ञानिक रूप देने के लिए उच्चस्तरीय अन्वेषण की जरूरत है. इसके लिए आईकेएस की स्थापना की गई है. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के सरस्वती पुस्तकालय में कई सारी पुरानी दुर्लभ पांडुलिपियां मौजूद हैं. इन पर शोध किया जाएगा. इससे न सिर्फ भारतीय ज्ञान परंपरा को बल मिलेगा, बल्कि इन पांडुलिपियों में मौजूद कलाओं को भी क्रमिक रूप से सजाया जाएगा. उन्होंने बताया कि इस शोध में कुल 37 कलाओं का अध्ययन किया जाएगा, जिसमें ज्योतिष, आयुर्वेद अन्य अलग-अलग व्यवसाय शामिल होंगे.

जानिए क्या है आईकेएस सेंटर
बता दें कि आईकेएस सेंटर को इंडियन नॉलेज सेंटर कहा जाता है. जहां पर भारतीय ज्ञान परंपरा का अध्ययन किया जाएगा. वर्तमान में जो बातें वैज्ञानिकों द्वारा वर्णित की जाती हैं, उनका प्रमाण भारतीय पुरातन ज्ञान परंपरा में निहित है और उसी के तहत वर्तमान आधुनिक संदर्भ व वैज्ञानिकता के साथ उनका अध्ययन किया जाएगा. इससे न सिर्फ भारतीय ज्ञान परंपरा को बल मिलेगा, बल्कि पुरातन संग्रहित ज्ञान का पुनः अवलोकन कर उसे आम लोगों के लिए सुलभ भी बनाया जा सकेगा. बीते दिनों भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र के लिए कुल 120 आवेदन किए गए थे, जिनमें से पूरे देश भर में 13 संस्थानों का चयन किया गया था और इसी के तहत संस्कृत विश्वविद्यालय को भी शामिल किया गया था. जहां संस्कृत शास्त्रों एवं पांडुलिपियों में ज्ञान का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाएगा.

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वाराणसी: पुरानी वैदिक ज्ञान और परंपराओं को सहेजने के लिए केंद्र सरकार द्वारा आईकेएस सेंटर बनाया जा रहा है. इसके तहत देश के 13 विश्वविद्यालयों का चयन किया गया है. इसमें वाराणसी के दो विश्वविद्यालय शामिल हैं. इन विश्वविद्यालयों में एक नाम संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का है. यहां पर 37 कलाओं में शोध किया जाएगा. खास बात यह है कि यह शोध विश्वविद्यालय में मौजूद दुर्लभ पांडुलिपियों में मौजूद तथ्यों के आधार पर होगा.

बता दें कि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में हजारों वर्ष पुरानी दुर्लभ पांडुलिपियों मौजूद हैं. इसमें पुराने पारंपरिक वैदिक तथ्यों को शामिल किया गया है. इनमें सबसे पुरानी श्रीमद्भागवत गीता की हस्तलिखित पांडुलिपि भी मौजूद है. शिक्षा मंत्रालय ने आईकेएस योजना के जरिए इन पांडुलिपियों को अन्वेषण में शामिल करने का निर्देश दिया है. इसके तहत इनका वैज्ञानिक अध्ययन कर इसे सहजता से आम जनमानस तक उपलब्ध कराया जा सकेगा. इसके लिए मंत्रालय द्वारा लगभग 18 लाख रुपये की प्रथम किस्त भी जारी कर दी गई है.

जानकारी देते जनसंपर्क अधिकारी डॉ. शशिन्द्र मिश्र

इस बारे में विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. शशिन्द्र मिश्र ने बताया कि प्राचीन काल में ऋषि मुनियों की ज्ञान परंपरा के आधार पर शिक्षण के कार्य का संचालन किया जाता था और लोग परंपरा प्रथाएं इत्यादि का अनुसरण करते थे. हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा काफी समृद्ध रही है. वर्तमान में जो भी वैज्ञानिक अन्वेषण किए जा रहे हैं, उनका वर्णन हमारे वेदों व पुराणों में हजारों वर्ष पहले ही किया जा चुका है.

यह भी पढ़ें: शामली: 300 साल पुरानी मस्जिद को बचाने के लिए आगे आए हिंदू, ऐतिहासिक गौरव गाथा समेटे इस मस्जिद में नहीं होती है नमाज

उन्होंने बताया कि ज्ञान और परंपराओं को वैज्ञानिक रूप देने के लिए उच्चस्तरीय अन्वेषण की जरूरत है. इसके लिए आईकेएस की स्थापना की गई है. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के सरस्वती पुस्तकालय में कई सारी पुरानी दुर्लभ पांडुलिपियां मौजूद हैं. इन पर शोध किया जाएगा. इससे न सिर्फ भारतीय ज्ञान परंपरा को बल मिलेगा, बल्कि इन पांडुलिपियों में मौजूद कलाओं को भी क्रमिक रूप से सजाया जाएगा. उन्होंने बताया कि इस शोध में कुल 37 कलाओं का अध्ययन किया जाएगा, जिसमें ज्योतिष, आयुर्वेद अन्य अलग-अलग व्यवसाय शामिल होंगे.

जानिए क्या है आईकेएस सेंटर
बता दें कि आईकेएस सेंटर को इंडियन नॉलेज सेंटर कहा जाता है. जहां पर भारतीय ज्ञान परंपरा का अध्ययन किया जाएगा. वर्तमान में जो बातें वैज्ञानिकों द्वारा वर्णित की जाती हैं, उनका प्रमाण भारतीय पुरातन ज्ञान परंपरा में निहित है और उसी के तहत वर्तमान आधुनिक संदर्भ व वैज्ञानिकता के साथ उनका अध्ययन किया जाएगा. इससे न सिर्फ भारतीय ज्ञान परंपरा को बल मिलेगा, बल्कि पुरातन संग्रहित ज्ञान का पुनः अवलोकन कर उसे आम लोगों के लिए सुलभ भी बनाया जा सकेगा. बीते दिनों भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र के लिए कुल 120 आवेदन किए गए थे, जिनमें से पूरे देश भर में 13 संस्थानों का चयन किया गया था और इसी के तहत संस्कृत विश्वविद्यालय को भी शामिल किया गया था. जहां संस्कृत शास्त्रों एवं पांडुलिपियों में ज्ञान का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाएगा.

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