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सूतक काल में पीएम मोदी से पूजन करवाने का विवादः जानिए क्या होता है सूतक व क्यों माना जाता अशुद्ध...

13 दिसंबर को श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरीडोर के लोकार्पण पर पीएम नरेंद्र मोदी से बाबा विश्वनाथ की पूजन करवाने वाले मंदिर के अध्यक्ष श्रीकांत मिश्र के सूतक काल में होने को लेकर पैदा हुए विवाद थम नहीं रहा है. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने काशी के विद्वानों से सूतक काल को लेकर चर्चा की. चलिए जानते हैं इसके बारे में.

सूतक कला को लेकर काशी के विद्वानों ने यह राय रखी.
सूतक कला को लेकर काशी के विद्वानों ने यह राय रखी.
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Published : Dec 27, 2021, 4:39 PM IST

Updated : Dec 27, 2021, 4:48 PM IST

वाराणसी: श्री काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूजन कराने वाले मंदिर के अध्यक्ष श्रीकांत मिश्र के सूतक काल में होने को लेकर पैदा हुआ विवाद थम नहीं रहा है. ऐसे में आखिर में यह सूतक काल होता क्या है. क्या है हिंदू धर्म में इसका विधान और क्यों इस दौरान चीजें प्रतिबंधित मानी जाती हैं, इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के सदस्य और कर्मकांड से जुड़े पंडित दीपक मालवीय समेत काशी के अलग-अलग कर्मकांडी और विद्वानों से बातचीत की. सभी ने शास्त्र सम्मत राय रखी.


इस बारे में श्री काशी विश्वनाथ न्यास परिषद के सदस्य पंडित दीपक मालवीय का कहना है सूतक काल का निर्णय अलग-अलग वर्ग विशेष के अनुसार किया जाता है. ब्राह्मणों में 10 दिनों का, क्षत्रिय में 12 दिनों का वैश्यों में 15 दिनों का और शूद्रों में 1 माह से 40 दिनों तक का सूतक मान्य होता है, लेकिन अब बदलते वक्त के साथ सभी ने 10 दिनों तक का ही सूतक मानना शुरू कर दिया है. कलयुग में भगवान के निर्णय के अनुरूप चार वर्णों में 10 दिनों का ही सूतक माना जाता है, लेकिन यह सूतक केवल स्पर्श के लिए है वैदिक मंत्रों के पूजन के लिए है. दान एवं शुभ कार्य के लिए बारहवें दिन में सपिंड के बाद ही सूतक की निवृति होती है.

सूतक काल को लेकर काशी के विद्वानों ने यह राय रखी.
पंडित दीपक मालवीय का कहना है कि सूतक काल का हिंदू सनातन धर्म में विशेष महत्व माना जाता है. किसी की मृत्यु के बाद घर परिवार में या खून के रिश्ते से इसका मान्य होता है. 10 दिनों तक पूरी तरह से पूजन पाठ, अनुष्ठान, यज्ञ-हवन या कोई भी शुभ कार्य प्रतिबंधित माना जाता है. इस दौरान न अपना शुभ कार्य कर सकते हैं ना ही किसी भी पूजन पाठ में भाग ले सकते हैं. मंदिरों में प्रवेश पूर्णतया वर्जित होता है. इतना ही नहीं किसी भी मूर्ति को स्पर्श करना भी पूरी तरह से प्रतिबंधित माना जाता है, लेकिन यदि कोई इस दौरान गलती कर देता है तो पंचामृत स्नान और षोडश मातृका पूजन करने के बाद भगवान का अनुष्ठान व हवन करने से क्षमा याचना मांगी जा सकती है.वहीं अन्य विद्वानों का कहना है कि सूतक दो तरह का होता है एक जन्म उपरांत और दूसरा मृत्यु उपरांत. जन्म उपरांत के 10 दिन के सूतक में इतने नियम कानून मान्य नहीं होते हैं. मंदिर इत्यादि में प्रवेश किया जा सकता है, लेकिन यदि किसी अपने की मृत्यु हुई हो तो सूतक का मानना जरूरी होता है. इस दौरान मंदिर में प्रवेश पूजन व अनुष्ठान की तैयारी पूरी तरह से प्रतिबंधित होता है. लोग अक्सर यह कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं कि अमुक व्यक्ति से मेरा कोई संबंध नहीं है फिर कहने मात्र से ही आप सूतक या अन्य किसी धार्मिक चीज से पीछे नहीं हट सकते हैं.

इसे लेकर भी धार्मिक क्रियाकलापों के लिए नियम कानून बने हैं. चार पीढ़ियों तक 10 दिनों तक, पांचवी पीढ़ी तक 6 दिनों तक, छठी पीढ़ी तक 4 दिन होता है और सातवीं पीढ़ी तक 3 दिनों के अलावा 8 वीं पीढ़ी में 1 दिन और नई पीढ़ी में दोपहर यानी स्नान मात्र से ही शुद्धि मानी जाती है.

ये भी पढ़ेंः अब पता चला कि बबुआ क्यों कर रहे थे नोटबंदी का विरोध: सीएम योगी

जानकारों की मानें तो सूतक काल हिंदू धर्म में अशुद्ध काल माना जाता है इस काल में किसी तरह का अनुष्ठान पूजा पाठ तो पूरी तरह से वर्जित होता है. इसके अनुसार सूतक में शामिल व्यक्ति के हाथों का पानी भी अशुद्ध माना जाता है. उसके हाथ का खाना भी अशुद्ध होता है. 10 दिन के बाद 11 दिन स्नान इत्यादि करने के बाद जनेऊ को परिवर्तित करके ही शुद्धीकरण माना जाता है.

यह था पूरा मामला
13 दिसंबर को काशी नगरी के श्री विश्वनाथ धाम में कॉरीडोर के लोकार्पण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाबा विश्वनाथ की पूजा अर्चना की थी. पूजा संपन्न करवाई मंदिर के अध्यक्ष श्रीकांत मिश्र ने. इन्हीं श्रीकांत मिश्र पर सूतक काल में पूजन करवाने का आरोप लगा है. 5 दिसंबर को पंडित मिश्र के भतीजे की मौत हुई थी. वहीं, धर्म शास्त्र के अनुसार सूतक काल में मंदिर के पट बंद कर दिये जाते हैं, मंदिर परिसर में प्रवेश करने पर रोक होती है. ऐसे में पंडित द्वारा पूजा कराने को लेकर सवाल उठ रहे हैं. धर्मार्थ कार्य मंत्री नीलकंठ तिवारी ने पूरे केस की रिपोर्ट जिला प्रशासन से मांगी है. इसी के साथ मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने मामले की जांच की जिम्मेदारी अपर मुख्य कार्यपालक को दी है.

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वाराणसी: श्री काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूजन कराने वाले मंदिर के अध्यक्ष श्रीकांत मिश्र के सूतक काल में होने को लेकर पैदा हुआ विवाद थम नहीं रहा है. ऐसे में आखिर में यह सूतक काल होता क्या है. क्या है हिंदू धर्म में इसका विधान और क्यों इस दौरान चीजें प्रतिबंधित मानी जाती हैं, इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के सदस्य और कर्मकांड से जुड़े पंडित दीपक मालवीय समेत काशी के अलग-अलग कर्मकांडी और विद्वानों से बातचीत की. सभी ने शास्त्र सम्मत राय रखी.


इस बारे में श्री काशी विश्वनाथ न्यास परिषद के सदस्य पंडित दीपक मालवीय का कहना है सूतक काल का निर्णय अलग-अलग वर्ग विशेष के अनुसार किया जाता है. ब्राह्मणों में 10 दिनों का, क्षत्रिय में 12 दिनों का वैश्यों में 15 दिनों का और शूद्रों में 1 माह से 40 दिनों तक का सूतक मान्य होता है, लेकिन अब बदलते वक्त के साथ सभी ने 10 दिनों तक का ही सूतक मानना शुरू कर दिया है. कलयुग में भगवान के निर्णय के अनुरूप चार वर्णों में 10 दिनों का ही सूतक माना जाता है, लेकिन यह सूतक केवल स्पर्श के लिए है वैदिक मंत्रों के पूजन के लिए है. दान एवं शुभ कार्य के लिए बारहवें दिन में सपिंड के बाद ही सूतक की निवृति होती है.

सूतक काल को लेकर काशी के विद्वानों ने यह राय रखी.
पंडित दीपक मालवीय का कहना है कि सूतक काल का हिंदू सनातन धर्म में विशेष महत्व माना जाता है. किसी की मृत्यु के बाद घर परिवार में या खून के रिश्ते से इसका मान्य होता है. 10 दिनों तक पूरी तरह से पूजन पाठ, अनुष्ठान, यज्ञ-हवन या कोई भी शुभ कार्य प्रतिबंधित माना जाता है. इस दौरान न अपना शुभ कार्य कर सकते हैं ना ही किसी भी पूजन पाठ में भाग ले सकते हैं. मंदिरों में प्रवेश पूर्णतया वर्जित होता है. इतना ही नहीं किसी भी मूर्ति को स्पर्श करना भी पूरी तरह से प्रतिबंधित माना जाता है, लेकिन यदि कोई इस दौरान गलती कर देता है तो पंचामृत स्नान और षोडश मातृका पूजन करने के बाद भगवान का अनुष्ठान व हवन करने से क्षमा याचना मांगी जा सकती है.वहीं अन्य विद्वानों का कहना है कि सूतक दो तरह का होता है एक जन्म उपरांत और दूसरा मृत्यु उपरांत. जन्म उपरांत के 10 दिन के सूतक में इतने नियम कानून मान्य नहीं होते हैं. मंदिर इत्यादि में प्रवेश किया जा सकता है, लेकिन यदि किसी अपने की मृत्यु हुई हो तो सूतक का मानना जरूरी होता है. इस दौरान मंदिर में प्रवेश पूजन व अनुष्ठान की तैयारी पूरी तरह से प्रतिबंधित होता है. लोग अक्सर यह कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं कि अमुक व्यक्ति से मेरा कोई संबंध नहीं है फिर कहने मात्र से ही आप सूतक या अन्य किसी धार्मिक चीज से पीछे नहीं हट सकते हैं.

इसे लेकर भी धार्मिक क्रियाकलापों के लिए नियम कानून बने हैं. चार पीढ़ियों तक 10 दिनों तक, पांचवी पीढ़ी तक 6 दिनों तक, छठी पीढ़ी तक 4 दिन होता है और सातवीं पीढ़ी तक 3 दिनों के अलावा 8 वीं पीढ़ी में 1 दिन और नई पीढ़ी में दोपहर यानी स्नान मात्र से ही शुद्धि मानी जाती है.

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जानकारों की मानें तो सूतक काल हिंदू धर्म में अशुद्ध काल माना जाता है इस काल में किसी तरह का अनुष्ठान पूजा पाठ तो पूरी तरह से वर्जित होता है. इसके अनुसार सूतक में शामिल व्यक्ति के हाथों का पानी भी अशुद्ध माना जाता है. उसके हाथ का खाना भी अशुद्ध होता है. 10 दिन के बाद 11 दिन स्नान इत्यादि करने के बाद जनेऊ को परिवर्तित करके ही शुद्धीकरण माना जाता है.

यह था पूरा मामला
13 दिसंबर को काशी नगरी के श्री विश्वनाथ धाम में कॉरीडोर के लोकार्पण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाबा विश्वनाथ की पूजा अर्चना की थी. पूजा संपन्न करवाई मंदिर के अध्यक्ष श्रीकांत मिश्र ने. इन्हीं श्रीकांत मिश्र पर सूतक काल में पूजन करवाने का आरोप लगा है. 5 दिसंबर को पंडित मिश्र के भतीजे की मौत हुई थी. वहीं, धर्म शास्त्र के अनुसार सूतक काल में मंदिर के पट बंद कर दिये जाते हैं, मंदिर परिसर में प्रवेश करने पर रोक होती है. ऐसे में पंडित द्वारा पूजा कराने को लेकर सवाल उठ रहे हैं. धर्मार्थ कार्य मंत्री नीलकंठ तिवारी ने पूरे केस की रिपोर्ट जिला प्रशासन से मांगी है. इसी के साथ मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने मामले की जांच की जिम्मेदारी अपर मुख्य कार्यपालक को दी है.

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Last Updated : Dec 27, 2021, 4:48 PM IST
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