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खुद के जीवन की पूरी कहानी सुनाएंगे संत कबीर, काशी में तैयार हुई हाईटेक झोपड़ी

संत कबीर की कर्मभूमि कबीर चौरा मूलगादी पर यह हाईटेक झोपड़ी बनकर तैयार हो चुकी है. जिसके लिए लगभग 10 सालों से प्रयास चल रहा था. इस हाईटेक झोपड़ी में ना सिर्फ कबीर के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से को लोगों के सामने प्रस्तुत किया जाएगा, बल्कि लगभग 8 मिनट के अंदर संत कबीर खुद अपनी जीवन गाथा लोगों को सुनाएंगे.

खुद के जीवन की पूरी कहानी सुनाएंगे संत कबीर
खुद के जीवन की पूरी कहानी सुनाएंगे संत कबीर
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Published : Jun 11, 2021, 10:52 AM IST

वाराणसी: 'कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर, ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर...' जी हां संत कबीर जो काशी में प्रकट हुए. कई सौ साल पहले लहरतारा तालाब के किनारे कमल पुष्प पर मिले कबीर साहब ने सैकड़ों साल पहले अपने दोहे और लेखनी के माध्यम से जो बातें कहीं वह आज सही साबित होती दिखाई दे रही है. लगभग 493 वर्ष पूर्व जिन कबीर साहब ने गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले और चौराहों पर खड़े होकर लोगों से साथ चलने की अपील की थी, लेकिन हालात और परिस्थितियों ने शायद इनका साथ उस वक्त नहीं दिया, लेकिन अब हालात बदलते दिखाई दे रहे हैं. काशी में कबीर की यह हाईटेक झोपड़ी उन लोगों को उनके जीवन का ज्ञान देगी जो आज कबीर को जानना चाहते हैं.

कबीर की कर्मभूमि कबीर चौरा मूलगादी पर यह हाईटेक झोपड़ी बनकर तैयार हो चुकी है. जिसके लिए लगभग 10 सालों से प्रयास चल रहा था. इस हाईटेक झोपड़ी में ना सिर्फ कबीर के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से को लोगों के सामने प्रस्तुत किया जाएगा, बल्कि लगभग 8 मिनट के अंदर संत कबीर खुद अपनी जीवन गाथा लोगों को सुनाएंगे.

खुद के जीवन की पूरी कहानी सुनाएंगे संत कबीर
2011 से शुरू हुआ था प्रयास, कोविड काल में मिली रफ्तार
दरअसल, सन् 2011 में लगभग एक करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत का प्लान तैयार कर इस हाईटेक झोपड़ी को तैयार करने की कवायद शुरू की गई है. इसके लिए नीदरलैंड और जर्मनी की तकनीक के सहारे पर्यटन मानचित्र पर कबीर के जीवन को एक नए रूप में प्रस्तुत करने की प्लानिंग थी. लेकिन किन्ही वजहों से यह काम अधर में लटका था. हालांकि पिछले साल कोविड-19 के दौर के शुरू होने के साथ ही फरवरी 2020 में इस झोपड़ी के काम को शुरू करने की तैयारी हुई और साल भर के ही अंदर यह हाईटेक झोपड़ी बनकर तैयार हो चुकी है.

संत कबीर की कर्मभूमि कबीर चौरा मूलगादी
संत कबीर की कर्मभूमि कबीर चौरा मूलगादी
गेट में प्रवेश संग सुनाई देगी यह आवाज
इस हाईटेक झोपड़ी में वह चीजें मौजूद हैं जो यहां आने वाले पर्यटकों को बड़े ही रोचक और अलग तरीके से कबीर के जीवन से रूबरू कराने का प्रयास करेगी. कबीर पंथ प्रमुख और कबीर चौरा मूलगादी के महंत आचार्य विवेक दास बताते हैं कि जैसे ही एंट्री गेट से लोग प्रवेश करेंगे वैसे ही पर्यटकों को करघे की आवाज सुनाई देने लगेगी. हथकरघे की आवाज के साथ संगीत में कबीर के भजन और दोहे भी पूरे परिसर में लगातार सुनाई देंगे. आठ परिक्रमा मार्गों से होते हुए जैसे ही लोग हथकरघा वाले कमरे से आगे बढ़कर कबीरदास के कमरे की तरफ बढ़ेंगे वैसे ही शानदार लाइटिंग और म्यूजिक के साथ लोग एक अलग ही एहसास पा सकेंगे.

काशी स्थित कबीर झोपड़ी
काशी स्थित कबीर झोपड़ी
कबीर के कमरे से निकलेगी उनकी आवाज
इतना ही नहीं सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब अष्ट परिक्रमा पथ पर आगे बढ़ेंगे और परिक्रमा खत्म होने वाली होगी तब 14 साल के बच्चे की आवाज में कबीर लोगों का स्वागत करते हुए उन्हें अपने जीवन की गाथा सुनाएंगे. इसके लिए मुंबई के कलाकारों ने 8 मिनट की रिकॉर्डिंग करके कबीर के जीवन के आधार पर उस वक्त के काल खंड और जीवन परिचय को लेकर वॉइस रिकॉर्डिंग तैयार कर ली है. यह रिकॉर्डिंग सबसे अंतिम में लोगों को सुनाई देगी. जिसमें कबीर खुद अपना जीवन परिचय और अन्य जानकारियां देंगे.

संत कबीर से संबंधित कलाकृतियां
संत कबीर से संबंधित कलाकृतियां

महंत विवेक दास का कहना है की लहरतारा में जब कबीर नीरू और नीमा नामक दंपत्ति को मिले थे तब उन्होंने कबीर को कबीरचौरा स्थित इसी स्थान पर लाकर 20 साल तक पालन पोषण किया था. यह स्थान अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है. जब कबीर यहां रहते थे और लोगों के बीच सत्संग किया करते थे. तब बगल में ही एक कसाई बकरा काटा करता था. इसलिए वह कहावत भी कही गई है '... कबीरा तेरी झोपड़ी गल कट्टो के पास, जो करेगा वह भरेगा काहे होत निराश.' इन्हीं बातों की वजह से कबीर के भक्तों ने उस वक्त 20 वर्ष के बाद कबीर को यहां से कुछ दूरी पर ले जा कर रखा. जहां कबीरचौतरा मौजूद है. यह स्थान लहरतारा के बाद सबसे महत्वपूर्ण हैं. इस वजह से इस पूरे परिसर का कायाकल्प किया जा चुका है.

संत कबीर से संबंधित कलाकृतियां
संत कबीर से संबंधित कलाकृतियां
कोलकत्ता और भागलपुर से आये कलाकार
लगभग 5 बिस्वा क्षेत्र में तैयार हुई इस झोपड़ी के परिसर में हाईटेक झोपड़ी के साथ ही कबीर के पालन पोषण करने वाले माता-पिता नीरू और नीमा की समाधि भी मौजूद है. जिसका दर्शन भी लोग कर सकेंगे. सबसे बड़ी बात यह है कि कोलकाता और भागलपुर के साथ अन्य कई राज्यों के कलाकारों ने मिलकर मुगल शैली पर आधारित इस हाईटेक झोपड़ी को अद्भुत तरीके से तैयार किया है. इस पूरी झोपड़ी में ना कोई गेटमैन होगा ना ही टोकन सिस्टम होगा. संत कबीर की निर्गुण वाणी हर किसी को सुनाई देगी और 2 कमरों में एक कमरा कबीर साहब का होगा. जिसमें खटिया, श्रम साध्य जीवन के इस्तेमाल किए जाने वाली वस्तुओं के साथ 1 ढिबरी रखी होगी. इसी कमरे से निकलने वाली आवाज कबीर के जीवन परिचय को लोगों तक पहुंचाएगी.

संत कबीर की हाइटेक झोपड़ी
संत कबीर की हाइटेक झोपड़ी
अभी बनना है म्यूजियम भी
इसके अतिरिक्त अभी इसी स्थान पर एक म्यूजियम भी प्रस्तावित है. जिसमें कबीर की हस्तलिखित पांडुलिपियों के अलावा उनके दुर्लभ साहित्य को भी संजोकर रखने की तैयारी की जा रही है. फिलहाल यह अद्भुत झोपड़ी बनकर तैयार है और जल्द ही पर्यटकों के लिए इसे खोला भी जाएगा.

वाराणसी: 'कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर, ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर...' जी हां संत कबीर जो काशी में प्रकट हुए. कई सौ साल पहले लहरतारा तालाब के किनारे कमल पुष्प पर मिले कबीर साहब ने सैकड़ों साल पहले अपने दोहे और लेखनी के माध्यम से जो बातें कहीं वह आज सही साबित होती दिखाई दे रही है. लगभग 493 वर्ष पूर्व जिन कबीर साहब ने गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले और चौराहों पर खड़े होकर लोगों से साथ चलने की अपील की थी, लेकिन हालात और परिस्थितियों ने शायद इनका साथ उस वक्त नहीं दिया, लेकिन अब हालात बदलते दिखाई दे रहे हैं. काशी में कबीर की यह हाईटेक झोपड़ी उन लोगों को उनके जीवन का ज्ञान देगी जो आज कबीर को जानना चाहते हैं.

कबीर की कर्मभूमि कबीर चौरा मूलगादी पर यह हाईटेक झोपड़ी बनकर तैयार हो चुकी है. जिसके लिए लगभग 10 सालों से प्रयास चल रहा था. इस हाईटेक झोपड़ी में ना सिर्फ कबीर के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से को लोगों के सामने प्रस्तुत किया जाएगा, बल्कि लगभग 8 मिनट के अंदर संत कबीर खुद अपनी जीवन गाथा लोगों को सुनाएंगे.

खुद के जीवन की पूरी कहानी सुनाएंगे संत कबीर
2011 से शुरू हुआ था प्रयास, कोविड काल में मिली रफ्तार
दरअसल, सन् 2011 में लगभग एक करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत का प्लान तैयार कर इस हाईटेक झोपड़ी को तैयार करने की कवायद शुरू की गई है. इसके लिए नीदरलैंड और जर्मनी की तकनीक के सहारे पर्यटन मानचित्र पर कबीर के जीवन को एक नए रूप में प्रस्तुत करने की प्लानिंग थी. लेकिन किन्ही वजहों से यह काम अधर में लटका था. हालांकि पिछले साल कोविड-19 के दौर के शुरू होने के साथ ही फरवरी 2020 में इस झोपड़ी के काम को शुरू करने की तैयारी हुई और साल भर के ही अंदर यह हाईटेक झोपड़ी बनकर तैयार हो चुकी है.

संत कबीर की कर्मभूमि कबीर चौरा मूलगादी
संत कबीर की कर्मभूमि कबीर चौरा मूलगादी
गेट में प्रवेश संग सुनाई देगी यह आवाज
इस हाईटेक झोपड़ी में वह चीजें मौजूद हैं जो यहां आने वाले पर्यटकों को बड़े ही रोचक और अलग तरीके से कबीर के जीवन से रूबरू कराने का प्रयास करेगी. कबीर पंथ प्रमुख और कबीर चौरा मूलगादी के महंत आचार्य विवेक दास बताते हैं कि जैसे ही एंट्री गेट से लोग प्रवेश करेंगे वैसे ही पर्यटकों को करघे की आवाज सुनाई देने लगेगी. हथकरघे की आवाज के साथ संगीत में कबीर के भजन और दोहे भी पूरे परिसर में लगातार सुनाई देंगे. आठ परिक्रमा मार्गों से होते हुए जैसे ही लोग हथकरघा वाले कमरे से आगे बढ़कर कबीरदास के कमरे की तरफ बढ़ेंगे वैसे ही शानदार लाइटिंग और म्यूजिक के साथ लोग एक अलग ही एहसास पा सकेंगे.

काशी स्थित कबीर झोपड़ी
काशी स्थित कबीर झोपड़ी
कबीर के कमरे से निकलेगी उनकी आवाज
इतना ही नहीं सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब अष्ट परिक्रमा पथ पर आगे बढ़ेंगे और परिक्रमा खत्म होने वाली होगी तब 14 साल के बच्चे की आवाज में कबीर लोगों का स्वागत करते हुए उन्हें अपने जीवन की गाथा सुनाएंगे. इसके लिए मुंबई के कलाकारों ने 8 मिनट की रिकॉर्डिंग करके कबीर के जीवन के आधार पर उस वक्त के काल खंड और जीवन परिचय को लेकर वॉइस रिकॉर्डिंग तैयार कर ली है. यह रिकॉर्डिंग सबसे अंतिम में लोगों को सुनाई देगी. जिसमें कबीर खुद अपना जीवन परिचय और अन्य जानकारियां देंगे.

संत कबीर से संबंधित कलाकृतियां
संत कबीर से संबंधित कलाकृतियां

महंत विवेक दास का कहना है की लहरतारा में जब कबीर नीरू और नीमा नामक दंपत्ति को मिले थे तब उन्होंने कबीर को कबीरचौरा स्थित इसी स्थान पर लाकर 20 साल तक पालन पोषण किया था. यह स्थान अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है. जब कबीर यहां रहते थे और लोगों के बीच सत्संग किया करते थे. तब बगल में ही एक कसाई बकरा काटा करता था. इसलिए वह कहावत भी कही गई है '... कबीरा तेरी झोपड़ी गल कट्टो के पास, जो करेगा वह भरेगा काहे होत निराश.' इन्हीं बातों की वजह से कबीर के भक्तों ने उस वक्त 20 वर्ष के बाद कबीर को यहां से कुछ दूरी पर ले जा कर रखा. जहां कबीरचौतरा मौजूद है. यह स्थान लहरतारा के बाद सबसे महत्वपूर्ण हैं. इस वजह से इस पूरे परिसर का कायाकल्प किया जा चुका है.

संत कबीर से संबंधित कलाकृतियां
संत कबीर से संबंधित कलाकृतियां
कोलकत्ता और भागलपुर से आये कलाकार
लगभग 5 बिस्वा क्षेत्र में तैयार हुई इस झोपड़ी के परिसर में हाईटेक झोपड़ी के साथ ही कबीर के पालन पोषण करने वाले माता-पिता नीरू और नीमा की समाधि भी मौजूद है. जिसका दर्शन भी लोग कर सकेंगे. सबसे बड़ी बात यह है कि कोलकाता और भागलपुर के साथ अन्य कई राज्यों के कलाकारों ने मिलकर मुगल शैली पर आधारित इस हाईटेक झोपड़ी को अद्भुत तरीके से तैयार किया है. इस पूरी झोपड़ी में ना कोई गेटमैन होगा ना ही टोकन सिस्टम होगा. संत कबीर की निर्गुण वाणी हर किसी को सुनाई देगी और 2 कमरों में एक कमरा कबीर साहब का होगा. जिसमें खटिया, श्रम साध्य जीवन के इस्तेमाल किए जाने वाली वस्तुओं के साथ 1 ढिबरी रखी होगी. इसी कमरे से निकलने वाली आवाज कबीर के जीवन परिचय को लोगों तक पहुंचाएगी.

संत कबीर की हाइटेक झोपड़ी
संत कबीर की हाइटेक झोपड़ी
अभी बनना है म्यूजियम भी
इसके अतिरिक्त अभी इसी स्थान पर एक म्यूजियम भी प्रस्तावित है. जिसमें कबीर की हस्तलिखित पांडुलिपियों के अलावा उनके दुर्लभ साहित्य को भी संजोकर रखने की तैयारी की जा रही है. फिलहाल यह अद्भुत झोपड़ी बनकर तैयार है और जल्द ही पर्यटकों के लिए इसे खोला भी जाएगा.
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