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वाराणसी: 'उमरावजान' को अमर करने वाले खय्याम साहब को सलाम

एक बेहतरीन संगीतकार जिनके गानों से उमरावजान जैसी कई फिल्में आज भी सभी के दिलों में अपनी जगह बना रखी है. भारतीय सिनेमा के दिग्गज संगीतकार मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी 93 वर्ष की आयु में हम सब के दिलों में संगीत की ऐसी छाप छोड़ गए, जिसे कोई नहीं भुला सकता.

उमरावजान को अमर करने वाले संगीतकार खय्याम साहब को अलविदा.
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Published : Aug 20, 2019, 11:44 PM IST

वाराणसी: हिंदी फिल्म जगत में अपने संगीत के दम पर अलग पहचान बनाने वाले खय्याम साहब 93 वर्ष की आयु में हम सब को छोड़ कर चले गए. उनके इंतकाल के बाद आज हर कोई उन्हें अपने तरीके से याद कर रहा है. अपने समय की मशहूर फिल्म उमराव जान को अपने अमर संगीत से रुपहले पर्दे पर जीवंत कर दिया साथ ही खय्याम साहब की बनाई हुई धुनें आज भी लोगों के जहन में बसी हुई हैं.

उमरावजान को अमर करने वाले संगीतकार खय्याम साहब को अलविदा.

उन्हीं के संगीत में सजी फिल्म उमराव जान एक कल्ट क्लॉसिक है. इनके संगीत ने उमराव जान को अमर कर दिया. आपको बता दें कि उमराव जान अपने समय की मशहूर नृत्यांगना हुआ करती थी.

उमराव जान बनारस से गहरा रिश्ता रखती थी. किताबों और उपन्यासों से बाहर निकालकर खय्याम साहब ने संगीत के जरिए इस मशहूर नृत्यांगना को हमेशा के लिए लोगों की यादों में जिंदा कर दिया. आज जब खय्याम साहब हम सबके बीच नहीं हैं तो यह जानना जरूरी है कि जिस उमराव जान को खय्याम साहब ने संगीत के बल पर एक नई पहचान दी. उमराव जान की कहानी क्या थी और उमराव जान का धर्म नगरी बनारस से क्या रिश्ता था.

'इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं' खय्याम साहब के संगीत से सजी इस गाने की लाइन है. आज भी लोगों की जुबान पर है. संगीत ऐसा जिसने किताबों में जिंदा रहने वाली उमराव जान को फिल्म के रुपहले पर्दे के सहारे हमेशा के लिए अमर कर दिया. सबसे बड़ी बात यह है कि उमराव जान ने अपने जीवन का अंतिम वक्त बनारस में ही बिताया. दुनिया से रुखसत होने के बाद उन्हें बनारस के फातमान कब्रिस्तान में ही दफनाया गया. आज भी उमराव जान की यह कब्र बनारस के इस कब्रिस्तान में मौजूद है. किसी जमाने में उमराव जान के पिता नवाबों के कपड़ों पर रोशनी किया करते थे. वह दौर था जब उमराव जान की अदाओं और उनके जलवे के बड़े-बड़े नवाब महाराजा दीवाने होते थे.

फैजाबाद में जन्मी उमराव जान को लखनऊ में जब एक कोठे पर बेचा गया तो उन्होंने संगीत के जरिए अपनी इस व्यथा को कम करने की कोशिश की लेकिन कुछ राजाओं और अंग्रेजी हुकूमत में कैद होने के बाद आजाद हुई उमराव जान ने बनारस का रुख किया. दालमंडी मोहल्ले में रहकर अपना बाकी जीवन काट कर यहीं पर अंतिम सांस ली.

वाराणसी: हिंदी फिल्म जगत में अपने संगीत के दम पर अलग पहचान बनाने वाले खय्याम साहब 93 वर्ष की आयु में हम सब को छोड़ कर चले गए. उनके इंतकाल के बाद आज हर कोई उन्हें अपने तरीके से याद कर रहा है. अपने समय की मशहूर फिल्म उमराव जान को अपने अमर संगीत से रुपहले पर्दे पर जीवंत कर दिया साथ ही खय्याम साहब की बनाई हुई धुनें आज भी लोगों के जहन में बसी हुई हैं.

उमरावजान को अमर करने वाले संगीतकार खय्याम साहब को अलविदा.

उन्हीं के संगीत में सजी फिल्म उमराव जान एक कल्ट क्लॉसिक है. इनके संगीत ने उमराव जान को अमर कर दिया. आपको बता दें कि उमराव जान अपने समय की मशहूर नृत्यांगना हुआ करती थी.

उमराव जान बनारस से गहरा रिश्ता रखती थी. किताबों और उपन्यासों से बाहर निकालकर खय्याम साहब ने संगीत के जरिए इस मशहूर नृत्यांगना को हमेशा के लिए लोगों की यादों में जिंदा कर दिया. आज जब खय्याम साहब हम सबके बीच नहीं हैं तो यह जानना जरूरी है कि जिस उमराव जान को खय्याम साहब ने संगीत के बल पर एक नई पहचान दी. उमराव जान की कहानी क्या थी और उमराव जान का धर्म नगरी बनारस से क्या रिश्ता था.

'इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं' खय्याम साहब के संगीत से सजी इस गाने की लाइन है. आज भी लोगों की जुबान पर है. संगीत ऐसा जिसने किताबों में जिंदा रहने वाली उमराव जान को फिल्म के रुपहले पर्दे के सहारे हमेशा के लिए अमर कर दिया. सबसे बड़ी बात यह है कि उमराव जान ने अपने जीवन का अंतिम वक्त बनारस में ही बिताया. दुनिया से रुखसत होने के बाद उन्हें बनारस के फातमान कब्रिस्तान में ही दफनाया गया. आज भी उमराव जान की यह कब्र बनारस के इस कब्रिस्तान में मौजूद है. किसी जमाने में उमराव जान के पिता नवाबों के कपड़ों पर रोशनी किया करते थे. वह दौर था जब उमराव जान की अदाओं और उनके जलवे के बड़े-बड़े नवाब महाराजा दीवाने होते थे.

फैजाबाद में जन्मी उमराव जान को लखनऊ में जब एक कोठे पर बेचा गया तो उन्होंने संगीत के जरिए अपनी इस व्यथा को कम करने की कोशिश की लेकिन कुछ राजाओं और अंग्रेजी हुकूमत में कैद होने के बाद आजाद हुई उमराव जान ने बनारस का रुख किया. दालमंडी मोहल्ले में रहकर अपना बाकी जीवन काट कर यहीं पर अंतिम सांस ली.

Intro:स्पेशल स्टोरी:

वाराणसी: हिंदी फिल्म जगत में अपने संगीत के दम पर अलग पहचान बनाने वाले खय्याम साहब 93 वर्ष की अवस्था में हम सब को छोड़ कर चले गए उनके इंतकाल के बाद आज हर कोई उन्हें अपने तरीके से याद कर रहा है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि अपने समय की मशहूर फिल्म उमराव जान के जरिए जिस शख्सियत को खय्याम साहब ने रुपहले पर्दे के जरिए लोगों के जेहन में बसाया उमराव जान बनारस से गहरा रिश्ता रखती थी किताबों और उपन्यासों से बाहर निकालकर खय्याम साहब ने संगीत के जरिए इस मशहूर नृत्यांगना को हमेशा के लिए लोगों की यादों में जिंदा कर दिया आज जब खय्याम साहब हम सबके बीच नहीं हैं तो यह जानना जरूरी है कि जिस उमराव जान को खय्याम साहब ने संगीत के बल पर एक नई पहचान दी उमराव जान की कहानी क्या थी और उमराव जान का धर्म नगरी बनारस से क्या रिश्ता था.


Body:वीओ-01 इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं खय्याम साहब के संगीत से सजी इस गाने की लाइन है आज भी लोगों की जुबान पर है संगीत ऐसा जिसने किताबों में जिंदा रहने वाली उमराव जान को फिल्म के रुपहले पर्दे के सहारे हमेशा के लिए अमर कर दिया सबसे बड़ी बात यह है कि उमराव जान ने अपने जीवन का अंतिम वक्त बनारस में ही बिताया और दुनिया से रुखसत होने के बाद उन्हें बनारस के फातमान कब्रिस्तान में ही दफनाया गया आज भी उमराव जान की यह कब्र बनारस के इस कब्रिस्तान में मौजूद है किसी जमाने में उमराव जान के पिता नवाबों के कपड़ों पर रोशनी किया करते थे वह दौर था जब उमराव जान की अदाओं और उनके जलवे के बड़े बड़े नवाब महाराजा महाराजा दीवाने होते थे फैजाबाद में जन्मी उमराव जान को लखनऊ में जब एक कोठे पर बेचा गया तो उन्होंने संगीत के जरिए अपनी इस व्यथा को कम करने की कोशिश की लेकिन कुछ राजाओं और अंग्रेजी हुकूमत में कैद होने के बाद आजाद हुई उमराव जान ने बनारस का रुख किया और दालमंडी मोहल्ले में रहकर अपना बाकी जीवन काट कर यहीं पर अंतिम सांस ली.


Conclusion:वीओ-02 आज जब मशहूर संगीतकार खय्याम साहब दुनिया से रुखसत हो चुके हैं तो उमराव जान का जिक्र ना किया जाए यह शायद गलत होगा इसलिए आज हमने आपको बनारस से उमराव जान की कब्र के जरिए इस महान संगीतकार को याद कर अपनी श्रद्धांजलि देने की कोशिश की है और यह बताने का प्रयास किया है कि जिस उमराव जान को किताबों से निकाल कर संगीत की दुनिया के जरिए खय्याम साहब ने हमेशा के लिए लोगों की यादों और जुबान पर जिंदा किया आज भी उमराव जान बनारस के इस्पात मान कब्रिस्तान में अकेले अंधेरे में कब्र में सिसक रही है.
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