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पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में क्या रोल होगा इन क्षेत्रीय दलों का... - यूपी न्यूज

वाराणसी में लोकसभा चुनाव के दौरान कई राजनीतिक पार्टियां मैदान में हैं. वहीं लोगों का मानना है कि कुछ क्षेत्रीय पार्टियां केवल बड़ी पार्टियों का वोट काटने का काम करती हैं.

लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों की भुमिका.
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Published : Mar 17, 2019, 7:32 PM IST

वाराणसी: लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही छोटी राजनैतिक पार्टियों में एक अलग सी तेजी आ गई है. अपने कार्यकर्ताओं को जुटाने में छोटी पार्टियां लग गई हैं. वहीं लोगों का मानना है कि इस तरह की छोटी पार्टियों की वजह से भारत में होने वाले चुनाव को काफी नुकसान पहुंचता है. यह क्षेत्रीय पार्टियां यूपी और बिहार में जातिगत समीकरण की वजह से राजनीति में बनी होती हैं.

लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों की भुमिका.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने छोटी पार्टियों को भी साथ लिया, जिसकी वजह से छोटी पार्टियों को भी उभरने का मौका मिला. उत्तर प्रदेश और बिहार के चुनावों को अक्सर जातिगत समीकरण के आधार पर जीतने की कोशिश की जाती है. वहीं छोटी पार्टियां जातियों को लुभाने का प्रयास करती हैं और अपने रैलियों में भीड़ भी जुटा लेती हैं, जिसका सीधा असर बड़ी पार्टियों पर पड़ता है. बड़ी पार्टियां, इन छोटी पार्टियों को 'वोट कटवा' की भूमिका में मानती हैं. वहीं चुनाव आते-आते सारी बड़ी पार्टियां इन छोटी पार्टियों के गठजोड़ में लग जाती हैं.

लोगों का कहना है कि क्षेत्रीय पार्टियां शुद्ध रूप से धन उगाही करने के लिए बनाई जाती हैं. इसका बड़ा असर भारत में होने वाले इस बड़े आयोजन पर पड़ता है. यानि 2019 के चुनाव पर क्षेत्रीय छोटी पार्टियां भी गहरा प्रभाव डालती हैं.

वहीं जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबू सिंह कुशवाहा का कहना है कि आज जो बड़ी पार्टियां हैं, वह भी कभी छोटी पार्टियां थी और वह अब बड़ी पार्टियां हैं. हम भी आज नहीं तो कल बड़ी पार्टी जरूर बनेंगे. हालांकि चुनाव अपने चरम पर होता है तो इस तरह की ढेरों पार्टियां सामने आती हैं और इसका सीधा असर भारत में होने वाले इस चुनावी पर्व पर पड़ता है.

वाराणसी: लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही छोटी राजनैतिक पार्टियों में एक अलग सी तेजी आ गई है. अपने कार्यकर्ताओं को जुटाने में छोटी पार्टियां लग गई हैं. वहीं लोगों का मानना है कि इस तरह की छोटी पार्टियों की वजह से भारत में होने वाले चुनाव को काफी नुकसान पहुंचता है. यह क्षेत्रीय पार्टियां यूपी और बिहार में जातिगत समीकरण की वजह से राजनीति में बनी होती हैं.

लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों की भुमिका.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने छोटी पार्टियों को भी साथ लिया, जिसकी वजह से छोटी पार्टियों को भी उभरने का मौका मिला. उत्तर प्रदेश और बिहार के चुनावों को अक्सर जातिगत समीकरण के आधार पर जीतने की कोशिश की जाती है. वहीं छोटी पार्टियां जातियों को लुभाने का प्रयास करती हैं और अपने रैलियों में भीड़ भी जुटा लेती हैं, जिसका सीधा असर बड़ी पार्टियों पर पड़ता है. बड़ी पार्टियां, इन छोटी पार्टियों को 'वोट कटवा' की भूमिका में मानती हैं. वहीं चुनाव आते-आते सारी बड़ी पार्टियां इन छोटी पार्टियों के गठजोड़ में लग जाती हैं.

लोगों का कहना है कि क्षेत्रीय पार्टियां शुद्ध रूप से धन उगाही करने के लिए बनाई जाती हैं. इसका बड़ा असर भारत में होने वाले इस बड़े आयोजन पर पड़ता है. यानि 2019 के चुनाव पर क्षेत्रीय छोटी पार्टियां भी गहरा प्रभाव डालती हैं.

वहीं जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबू सिंह कुशवाहा का कहना है कि आज जो बड़ी पार्टियां हैं, वह भी कभी छोटी पार्टियां थी और वह अब बड़ी पार्टियां हैं. हम भी आज नहीं तो कल बड़ी पार्टी जरूर बनेंगे. हालांकि चुनाव अपने चरम पर होता है तो इस तरह की ढेरों पार्टियां सामने आती हैं और इसका सीधा असर भारत में होने वाले इस चुनावी पर्व पर पड़ता है.

Intro:एंकर: 2019 का चुनाव नजदीक आते ही छोटी राजनैतिक पार्टियों में एक अलग सी तेजी आ गई है और अपने कार्यकर्ताओं को जुटाने में यह छोटी पार्टियां लग गई है वही कुछ छोटी पार्टियां जो है उत्तर प्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रही तो कुछ पार्टियां पूरे भारत में चुनाव लड़ने की बात कर रही है लोगों का मानना है कि इस तरह की छोटी पार्टियों की वजह से भारत को काफी नुकसान पहुंचा रही है यह क्षेत्रीय पार्टियां और उत्तर प्रदेश और बिहार में जातिगत राजनीतिक समीकरण होने की वजह से इन छोटी पार्टियों का बड़ा असर देखने को मिलता है


Body:वीओ: दरअसल 2014 के चुनाव में जब बीजेपी ने अपने पैर जमाए तो विभिन्न छोटी पार्टियों को भी साथ में लिया जिसकी वजह से पूर्ण बहुमत के साथ साथ उन छोटी पार्टियों को भी उभरने का मौका दीया जो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे उत्तर प्रदेश और बिहार में चुनाव पूर्ण तरीके से जातिगत समीकरण के आधार पर जीती जाती है और हार जाती है वहीं क्षेत्रीय छोटी पार्टियां विभिन्न जातियों को लुभाने का प्रयास करती हैं और अपने रैलियों में भीड़ भी जुटा लेती हैं जिसका सीधा असर बड़ी पार्टियों पर पड़ता है हालांकि बड़ी पार्टियां इन क्षेत्रीय छोटी पार्टियों को वोट कटवा की भूमिका में मानती है लेकिन चुनाव आते-आते सारी बड़ी पार्टियां इन छोटी पार्टियों के गठजोड़ में लग जाती हैं कुछ छोटी पार्टियां सीट मिल जाने पर बड़ी पार्टियों में शामिल हो जाती है तो कुछ छोटी पार्टियां अपना स्वार्थ साधने में लगी रहती हैं


Conclusion:वीओ: वहीं लोगों की माने तो लोगों का कहना है कि क्षेत्रीय छोटी पार्टियां जो है वह शुद्ध रूप से धन उगाही करने के लिए बनाई जाती है जिसका बड़ा असर भारत में होने वाले इस बड़े आयोजन पर पड़ता है यानि 2019 के चुनाव पर क्षेत्रीय छोटी पाटिया भी गहरा प्रभाव डालती हैं जहां कोई किसानों को लुभाने की बात करता है तो कोई अपने बिरादरी वाद का ही दुहाई देता नजर आता है वहीं जब जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबू सिंह कुशवाहा से पूछा गया कि क्या आपकी पार्टी छोटी पार्टी है और क्या यह वोट कटवा की भूमिका में है तो बाबू सिंह कुशवाहा का जवाब था कि जो आज बड़ी पार्टियां हैं वह भी कभी छोटी पार्टियां थी और वह अब बड़ी पार्टियां हैं हम भी आज नहीं कल तो बड़ी पार्टी जरूर बनेंगे हालांकि बाबू सिंह कुशवाहा द्वारा कहे गए बात भी सही है लेकिन जब चुनाव अपने चरम पर होता है तो इस तरह की ढेरों पाटिया सामने आती हैं और लोगों का मानना है कि पूरे पैसे लेनदेन से यह पार्टियां अपने पैर को पीछे भी खींच लेती हैं लेकिन इसका सीधा असर भारत में होने वाले इस चुनावी पर्व पर पड़ता है क्योंकि भारत में लोग अपने जातिगत समीकरण के आधार पर भी वोटिंग ज्यादातर करते हैं
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