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BHU RESEARCH: जेनेटिक टेस्ट के बाद रोका जा सकता है ब्लड कैंसर का खतरा

काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के सेंटर फॉर जेनेटिक डिसऑर्डर में ब्लड कैंसर व ल्यूकेमिया बीमारी को लेकर शोध हुआ है. शोध (RESEARCH) में कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं. आप भी जानें...

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 9, 2023, 3:22 PM IST

वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर जेनेटिक डिसऑर्डर में कैंसर पर रिसर्च के बाद कई बड़े तथ्य सामने आए हैं. सेंटर फॉर जेनेटिक डिसऑर्डर (CGD) में हुए एक रिसर्च यह पचा चला है कि कैंसर के इलाज में काम आने वाली दवा से ही कैंसर को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है. जेनेटिक टेस्ट करके ब्लड कैंसर या ल्यूकेमिया जैसी जानलेवा बीमारी को किसी भी स्टेज में रोका जा सकता है. रिसर्च के दौरान यह भी देखा गया कि जो दवाएं बाकी के ल्यूकेमिया को ठीक करने के लिए दी जा रही हैं, वही दवा MDS सिंड्रोम पर भी काम कर रही है.

रिसर्च कैंसर जेनेटिक्स जर्नल में प्रकाशित
सेंटर फॉर जेनेटिक डिसऑर्डर के को-आर्डिनेटर वैज्ञानिक डॉ. अख्तर अली और उनके रिसर्चर अजीत कुमार, IMS-BHU के प्रो. विजय तिलक के साथ ही कई डॉक्टरों की टीम ने मिलकर ब्लड कैंसर रोगियों पर एक रिसर्च किया है. यह रिसर्च कैंसर जेनेटिक्स जर्नल में प्रकाशित भी हुआ है. इस रिसर्च में ब्लड कैंसर को लेकर कई तथ्य समाने आए हैं. इसमें यह भी पता लगाया गया है कि ब्लड कैंसर या ल्यूकेमिया जैसी जानलेवा बीमारी को किसी भी स्टेज में रोका जा सकता है.

ब्लड कैंसर के 2500 रोगियों पर किया गया शोध
दरअसल, ब्लड कैंसर के करीब 2500 रोगियों पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में रिसर्च किया गया है. रिसर्च में यह पता चला है कि कैंसर के इलाज में प्रयोग की जाने वाली दवाओं से ही कैंसर को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है. रिसर्च के दौरान यह भी तथ्य सामने आया कि शोध में शामिल उन 2500 लोगों में जिसने भी दवा का इस्तेमाल किया था, उनमें से किसी की भी मौत नहीं हुई थी. शोध में शामिल वैज्ञानिकों का कहना है कि जेनेटिक टेस्ट करके ब्लड कैंसर या ल्यूकेमिया जैसी जानलेवा बीमारी को पहले या अंतिम किसी भी स्टेज में रोका जा सकता है.

इसे भी पढ़ें-BHU के वैज्ञानिक की ब्रिटेन से मांग, बताएं 1857 क्रांति के 282 अज्ञात शहीदों के नाम व गांव, PM MODI को भी लिखा पत्र


ल्यूकेमिया की दवाओं का असर माइलोइड सिंड्रोम पर
वैज्ञानिक डॉ. अख्तर अली ने बताया कि ब्लड कैंसर पता चलने के बाद रोगियों का साइटोजेनेटिक फॉर फिलाडेल्फिया क्रोमोसोम टेस्ट (जेनेटिक टेस्ट) करा दिया जाए तो उसे बचाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि रिसर्च के दौरान देखा गया कि जो दवाएं बाकी के ल्यूकेमिया को ठीक करने के लिए दी जा रही हैं, वही दवा माइलोइड सिंड्रोम पर भी काम कर रही है. माइलोइड सिंड्रोम रेयर ब्लड कैंसर टाइप है. भारत के 2 मरीज ऐसे मिले हैं, जिनमें माइलोइड सिंड्रोम केस मिले हैं. क्रॉनिक म्यूकोइड ल्यूकेमिया और माइलोइड सिंड्रोम में जेनेटिक टेस्ट कराना बहुत जरूरी है.

बीएचयू में 6 हजार की जांच 750 रुपये में हो रही
बता दें कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ब्लड कैंसर (ल्यूकेमिया) के लिए जेनेटिक टेस्ट किया जाता है. यहां पर बाकी के निजी पैथॉलॉजी से करीब 10 गुना रेट कम हैं. जहां फिलाडेल्फिया क्रोमोसोम का जेनेटिक टेस्ट निजी लैब में लगभग 6000 रुपये में होता है. वहीं BHU यह टेस्ट 750 रुपये में हो जाता है. वहीं कैंसर के लिए होल जीनोम पैनल जांच निजी लैब में 55,000 रुपये तक जाती है, जबकि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में 15,000 रुपये में होती है. इसके साथ ही रियल टाइम पीसीआर टेस्ट 2,000 रुपये में होता है. विभाग के चिकित्सकों का कहना है कि जांच प्रक्रिया के बाद रिपोर्ट एक महीने के अंदर आ जाती है. यह टेस्ट पर निर्भर करता है. रिपोर्ट एक दिन में आ सकती है.

इसे भी पढ़ें-BHU के रिसर्च में खुलासा: श्रीलंका के सिंहली और तमिल लोगों का DNA एक, 2100 साल पहले आई जाति

वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर जेनेटिक डिसऑर्डर में कैंसर पर रिसर्च के बाद कई बड़े तथ्य सामने आए हैं. सेंटर फॉर जेनेटिक डिसऑर्डर (CGD) में हुए एक रिसर्च यह पचा चला है कि कैंसर के इलाज में काम आने वाली दवा से ही कैंसर को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है. जेनेटिक टेस्ट करके ब्लड कैंसर या ल्यूकेमिया जैसी जानलेवा बीमारी को किसी भी स्टेज में रोका जा सकता है. रिसर्च के दौरान यह भी देखा गया कि जो दवाएं बाकी के ल्यूकेमिया को ठीक करने के लिए दी जा रही हैं, वही दवा MDS सिंड्रोम पर भी काम कर रही है.

रिसर्च कैंसर जेनेटिक्स जर्नल में प्रकाशित
सेंटर फॉर जेनेटिक डिसऑर्डर के को-आर्डिनेटर वैज्ञानिक डॉ. अख्तर अली और उनके रिसर्चर अजीत कुमार, IMS-BHU के प्रो. विजय तिलक के साथ ही कई डॉक्टरों की टीम ने मिलकर ब्लड कैंसर रोगियों पर एक रिसर्च किया है. यह रिसर्च कैंसर जेनेटिक्स जर्नल में प्रकाशित भी हुआ है. इस रिसर्च में ब्लड कैंसर को लेकर कई तथ्य समाने आए हैं. इसमें यह भी पता लगाया गया है कि ब्लड कैंसर या ल्यूकेमिया जैसी जानलेवा बीमारी को किसी भी स्टेज में रोका जा सकता है.

ब्लड कैंसर के 2500 रोगियों पर किया गया शोध
दरअसल, ब्लड कैंसर के करीब 2500 रोगियों पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में रिसर्च किया गया है. रिसर्च में यह पता चला है कि कैंसर के इलाज में प्रयोग की जाने वाली दवाओं से ही कैंसर को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है. रिसर्च के दौरान यह भी तथ्य सामने आया कि शोध में शामिल उन 2500 लोगों में जिसने भी दवा का इस्तेमाल किया था, उनमें से किसी की भी मौत नहीं हुई थी. शोध में शामिल वैज्ञानिकों का कहना है कि जेनेटिक टेस्ट करके ब्लड कैंसर या ल्यूकेमिया जैसी जानलेवा बीमारी को पहले या अंतिम किसी भी स्टेज में रोका जा सकता है.

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ल्यूकेमिया की दवाओं का असर माइलोइड सिंड्रोम पर
वैज्ञानिक डॉ. अख्तर अली ने बताया कि ब्लड कैंसर पता चलने के बाद रोगियों का साइटोजेनेटिक फॉर फिलाडेल्फिया क्रोमोसोम टेस्ट (जेनेटिक टेस्ट) करा दिया जाए तो उसे बचाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि रिसर्च के दौरान देखा गया कि जो दवाएं बाकी के ल्यूकेमिया को ठीक करने के लिए दी जा रही हैं, वही दवा माइलोइड सिंड्रोम पर भी काम कर रही है. माइलोइड सिंड्रोम रेयर ब्लड कैंसर टाइप है. भारत के 2 मरीज ऐसे मिले हैं, जिनमें माइलोइड सिंड्रोम केस मिले हैं. क्रॉनिक म्यूकोइड ल्यूकेमिया और माइलोइड सिंड्रोम में जेनेटिक टेस्ट कराना बहुत जरूरी है.

बीएचयू में 6 हजार की जांच 750 रुपये में हो रही
बता दें कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ब्लड कैंसर (ल्यूकेमिया) के लिए जेनेटिक टेस्ट किया जाता है. यहां पर बाकी के निजी पैथॉलॉजी से करीब 10 गुना रेट कम हैं. जहां फिलाडेल्फिया क्रोमोसोम का जेनेटिक टेस्ट निजी लैब में लगभग 6000 रुपये में होता है. वहीं BHU यह टेस्ट 750 रुपये में हो जाता है. वहीं कैंसर के लिए होल जीनोम पैनल जांच निजी लैब में 55,000 रुपये तक जाती है, जबकि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में 15,000 रुपये में होती है. इसके साथ ही रियल टाइम पीसीआर टेस्ट 2,000 रुपये में होता है. विभाग के चिकित्सकों का कहना है कि जांच प्रक्रिया के बाद रिपोर्ट एक महीने के अंदर आ जाती है. यह टेस्ट पर निर्भर करता है. रिपोर्ट एक दिन में आ सकती है.

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