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पूर्वांचल में छोटे दलों ने दिखाया दमखम, नौ सीटों पर सूरमाओं को दी पटखनी

क्षेत्रीय दल कहने में बहुत छोटे लगते हैं, लेकिन इनका संघर्ष इनको पहचान दिलाने में सक्षम होता है. 2022 के विधानसभा चुनाव में यह तस्वीर और स्पष्ट हो जाती है. इस चुनाव में कुछ हिस्सों में छोटे दलों का संघर्ष दिखाई दिया, जो काबिल-ए-तारीफ रहा. अपनी मेहनत से कई सीटों पर इन्हें जीत मिली है. देखिए यह रिपोर्ट..

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पूर्वांचल में छोटे दलों ने दिखाया दमखम
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Published : Mar 12, 2022, 3:03 PM IST

वाराणसी. क्षेत्रीय दल कहने में बहुत छोटे लगते हैं लेकिन इनका संघर्ष इनको पहचान दिलाने में सक्षम होता है. 2022 के विधानसभा चुनाव में यह तस्वीर और स्पष्ट हो जाती है. इस चुनाव में कुछ हिस्सों में छोटे दलों का संघर्ष दिखाई दिया जो काबिल-ए-तारीफ रहा. ऐसे में बात अगर पूर्वांचल की करें तो पूर्वांचल में क्षेत्रीय दलों ने कड़ी मेहनत भी की और पूर्वांचल की कई सीटों पर सूरमाओं को भी पटखनी दी है.

विधानसभा चुनाव के नितीजे आने के बाद भाजपा के साथ गठबंधन में अपना दल सोनेलाल, निषाद पार्टी और सपा गठबंधन में सुभासपा व अन्य छोटे दलों के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है. 2017 के विधानसभा चुनाव की तुलना में यह थोड़े कम जरूर हैं लेकिन पार्टियों ने अपने इतिहास को दोहराने का काम किया है. अपना दल (एस) को 3, निषाद पार्टी को 3 और सुभासपा को भी 3 सीटों पर जीत हासिल हुई है जबकि 2017 के चुनाव में अपना दल एस को 4 सीटों का फायदा हुआ था.

इस बाबत राजनीतिक विश्लेषक प्रो. रवि प्रकाश पांडेय ने बताया कि 2017 के विधानसभा चुनाव के परिणाम से तुलना करें तो इस बार क्षेत्रीय दलों को थोड़ा नुकसान हुआ है. हालांकि पार्टी ने अंत तक हार नहीं मानी. उन्होंने कहा कि कुछ छोटे दलों को सीटों पर लाभ भी हुआ है. वहीं, सुभासपा की बात करें तो पार्टी को कोई नुकसान नहीं हुआ तो फायदा भी नहीं हुआ. समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में उसके पास सीटें ज्यादा थी. इसलिए उनकी जीत के आसार अधिक थे. कई जगहों पर सुभासपा ने निराश किया है.

यह भी पढ़ें- बदायूं में भाजपा ने हरवाया 4 बीघा खेत, जानें पूरा मामला

प्रो. रवि प्रकाश पांडेय ने कहा कि उदाहरण के तौर पर देखें तो सुभासपा प्रमुख भले ही जहूराबाद सीट जीत लिए हों लेकिन उनके बेटे अरविंद राजभर को हार का सामना करना पड़ा. इसके साथ ही सुभासपा अपनी अजगरा सीट भी हार गई जो 2017 में उसके पास थी.

कुल मिलाकर संघर्षों को देखें तो क्षेत्रीय दलों ने अपने अस्तित्व को बचाए रखा और पूरे संघर्ष के साथ चुनाव लड़ा. जीत के इतर भी इन दलों ने एक अच्छा वोट प्रतिशत बनाया. बनारस से लगी पूर्वांचल के कई सीटें इसका उदाहरण हैं जहां क्षेत्रीय पार्टियां भले न जीत सकी हो लेकिन टक्कर जरूर दी है.

इनके खाते में अधिक वोट भी आए, भले ही वह वोट इनकी जीत में तब्दील नहीं हो सके. अगर क्षेत्रीय दलों की जीत की बात करें तो जौनपुर के जफराबाद सीट से बसपा के जगदीश नारायण, मिर्जापुर के मड़ियाहूं सीट से अपना दल (एस) के डॉ. आरके पटेल, जौनपुर के शाहगंज सीट से निषाद पार्टी के रमेश बिंद, मिर्जापुर के मांजा सीट से निषाद पार्टी के डॉ. विनोद कुमार बिंद, मिर्जापुर के छानबे सीट से अपना दल (एस) के राहुल कोल, मऊ सदर से सुभासपा के अब्बास अंसारी और वाराणसी रोहनिया से अपना दल (एस) के डॉ. सुनील कुमार पटेल ने जीत हासिल की है.

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वाराणसी. क्षेत्रीय दल कहने में बहुत छोटे लगते हैं लेकिन इनका संघर्ष इनको पहचान दिलाने में सक्षम होता है. 2022 के विधानसभा चुनाव में यह तस्वीर और स्पष्ट हो जाती है. इस चुनाव में कुछ हिस्सों में छोटे दलों का संघर्ष दिखाई दिया जो काबिल-ए-तारीफ रहा. ऐसे में बात अगर पूर्वांचल की करें तो पूर्वांचल में क्षेत्रीय दलों ने कड़ी मेहनत भी की और पूर्वांचल की कई सीटों पर सूरमाओं को भी पटखनी दी है.

विधानसभा चुनाव के नितीजे आने के बाद भाजपा के साथ गठबंधन में अपना दल सोनेलाल, निषाद पार्टी और सपा गठबंधन में सुभासपा व अन्य छोटे दलों के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है. 2017 के विधानसभा चुनाव की तुलना में यह थोड़े कम जरूर हैं लेकिन पार्टियों ने अपने इतिहास को दोहराने का काम किया है. अपना दल (एस) को 3, निषाद पार्टी को 3 और सुभासपा को भी 3 सीटों पर जीत हासिल हुई है जबकि 2017 के चुनाव में अपना दल एस को 4 सीटों का फायदा हुआ था.

इस बाबत राजनीतिक विश्लेषक प्रो. रवि प्रकाश पांडेय ने बताया कि 2017 के विधानसभा चुनाव के परिणाम से तुलना करें तो इस बार क्षेत्रीय दलों को थोड़ा नुकसान हुआ है. हालांकि पार्टी ने अंत तक हार नहीं मानी. उन्होंने कहा कि कुछ छोटे दलों को सीटों पर लाभ भी हुआ है. वहीं, सुभासपा की बात करें तो पार्टी को कोई नुकसान नहीं हुआ तो फायदा भी नहीं हुआ. समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में उसके पास सीटें ज्यादा थी. इसलिए उनकी जीत के आसार अधिक थे. कई जगहों पर सुभासपा ने निराश किया है.

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प्रो. रवि प्रकाश पांडेय ने कहा कि उदाहरण के तौर पर देखें तो सुभासपा प्रमुख भले ही जहूराबाद सीट जीत लिए हों लेकिन उनके बेटे अरविंद राजभर को हार का सामना करना पड़ा. इसके साथ ही सुभासपा अपनी अजगरा सीट भी हार गई जो 2017 में उसके पास थी.

कुल मिलाकर संघर्षों को देखें तो क्षेत्रीय दलों ने अपने अस्तित्व को बचाए रखा और पूरे संघर्ष के साथ चुनाव लड़ा. जीत के इतर भी इन दलों ने एक अच्छा वोट प्रतिशत बनाया. बनारस से लगी पूर्वांचल के कई सीटें इसका उदाहरण हैं जहां क्षेत्रीय पार्टियां भले न जीत सकी हो लेकिन टक्कर जरूर दी है.

इनके खाते में अधिक वोट भी आए, भले ही वह वोट इनकी जीत में तब्दील नहीं हो सके. अगर क्षेत्रीय दलों की जीत की बात करें तो जौनपुर के जफराबाद सीट से बसपा के जगदीश नारायण, मिर्जापुर के मड़ियाहूं सीट से अपना दल (एस) के डॉ. आरके पटेल, जौनपुर के शाहगंज सीट से निषाद पार्टी के रमेश बिंद, मिर्जापुर के मांजा सीट से निषाद पार्टी के डॉ. विनोद कुमार बिंद, मिर्जापुर के छानबे सीट से अपना दल (एस) के राहुल कोल, मऊ सदर से सुभासपा के अब्बास अंसारी और वाराणसी रोहनिया से अपना दल (एस) के डॉ. सुनील कुमार पटेल ने जीत हासिल की है.

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