वाराणसी: देश, समाज और परिवार को एक सूत्र में बांधने के लिए विशाल भारत संस्थान और श्रीराम आश्रम द्वारा सांस्कृतिक पुनर्जागरण के प्रतीक स्वरूप रामपंथ की स्थापना की गई. रामपंथ सभी धर्मों, जातियों और पंथों के बीच सेतु की तरह काम करके सबको जोड़ने का काम करेगा. इस सांस्कृतिक पुनर्जागरण के जरिये रामपंथी जाति वैमनस्य को खत्म करने, धार्मिक हिंसा से समाज को मुक्त कराने और स्थायी रूप से शांति की स्थापना करने की योजना पर कार्य होगा. रामपंथ के आचार्य अखण्ड भारत की सांस्कृतिक सीमाओं को जोड़ने के लिए सांस्कृतिक आन्दोलन चलाएंगे.
'छुआछूत मुक्त समरस भारत' पुस्तक का हुआ लोकार्पण
रामपंथ की पहली कार्य योजना कार्यक्रम का शुभारम्भ श्रीराम आश्रम के संस्थापक इन्द्रेश कुमार ने भगवान श्रीराम की मूर्ति के सम्मुख दीप प्रज्वलन कर किया. वाराणसी के इन्द्रेश नगर लमही के श्रीराम आश्रम में कार्यक्रम का आयोजन हुआ. इस दौरान समरसता के लिए इन्द्रेश कुमार जी द्वारा लिखी गई पुस्तक 'छुआछूत मुक्त समरस भारत' का लोकार्पण किया गया. इस मौके पर इन्द्रेश कुमार ने कहा कि रामपंथ के सूत्रवाक्य 'सबके राम, सबमें राम' को जन-जन तक व्यवहारिक स्तर पर प्रचारित और प्रसारित किया जाएगा. सांस्कृतिक पुनर्जागरण के जरिये विश्व को सनातन संस्कृति की उदारता और लोक कल्याण की भावना से परिचित कराया जाएगा. विश्व के सांस्कृतिक महानायक भगवान श्रीराम के इतिहास से यदि सब परिचित हो जाएं तो संघर्ष की स्थिति कम होगी, चाहे वह परिवार में हो या देश में.
रामपंथ का होगा अपना विश्वविद्यालय
इन्द्रेश कुमार ने कहा कि भगवान श्रीराम ने अवतार लेकर मनुष्य के रूप में लीला के माध्यम से परिवार से लेकर राष्ट्र तक के सम्बन्धों की व्याख्या की है. विश्वविद्यालय में राम के चरित्र को इतिहास के रूप में पढ़ाया जाए तभी सबको प्रतीत होगा कि हमें भी इन महानायक की तरह अपने चरित्र को बनाना चाहिए. रामपंथ सबको जोड़ने का काम करेगा, ताकि भारत की सांस्कृतिक एकता बनी रहे और विश्व के साथ अच्छे मैत्री संबंध बने रहें. श्रीराम आश्रम सभी धर्मों, जातियों और पंथों के लिए खुला है. भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को राम के चरित्र के जरिये ही समझा जा सकता है, जहां सृष्टि से संबंध की वकालत की गई है. रामपंथ का अपना विश्वविद्यालय स्थापित किया जाएगा, जहां भारतीय विद्याओं को प्रमुखता दी जाएगी.