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Flour Mills Recession : पूर्वांचल की आटा मिलें क्यों पहुंच गईं बंदी के कगार पर, क्या हैं इसके प्रमुख कारण

पूर्वांचल की आटा मिलों पर मंदी का संकट आ गया है. मिलों को गेहूं नहीं मिल पा रहा है. मिलें बंदी के कगार पर पहुंचने से उनमें छंटनी की नौबत तक आ गई है.

पूर्वांचल की आटा मिलों पर ईटीवी संवाददाता प्रतीमा तिवारी की रिपोर्ट.
पूर्वांचल की आटा मिलों पर ईटीवी संवाददाता प्रतीमा तिवारी की रिपोर्ट.
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Published : Feb 5, 2023, 6:07 PM IST

पूर्वांचल की आटा मिलों पर ईटीवी संवाददाता प्रतीमा तिवारी की रिपोर्ट.

वाराणसी: पूर्वांचल की आटा मिलों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. गेहूं की किल्लत के कारण पूर्वांचल की मिलें बन्दी के कगार पर हैं. बड़ी बात यह है कि इस संकट ने न सिर्फ मिलों को बंदी के कगार पर ला दिया है, बल्कि कर्मचारियों की छंटनी की नौबत तक आ गई है. यह कहना है फ्लोर मिल एसोसिएशन से जुड़े पदाधिकारी व मिल मालिकों का. उन्होंने बताया कि यह हाल एक या दो नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की लगभग 70 फीसदी आटा मिलों का है.

उत्तर प्रदेश में लगभग 350 फ्लोर मिलें हैं. जिसमें 70 फीसदी से ज्यादा मिलें इस मंदी से जूझ रही हैं. बहुत कम ही मिल हैं, जो आवश्यकता से ज्यादा स्टॉक रख कर चलती हैं. यदि उत्पादन की बात करें तो अकेले वाराणसी और चंदौली जिले से ही 35 हजार टन प्रतिदिन आटे का उत्पादन होता है. लेकिन वर्तमान में इन दोनों जिलों से महज 15 से 17 सौ टन ही आटे का उत्पादन हो रहा है.

इस बारे में उत्तर प्रदेश फ्लोर मिल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष दीपक बजाज ने बताया कि उत्तर प्रदेश सर्वाधिक गेहूं उत्पादक राज्य है. 34 फीसदी गेहूं उत्पादन के साथ पूरे भारतवर्ष में इसका पहला स्थान है. लेकिन, इस बार ज्यादा माल का निर्यात उत्तर प्रदेश से हो गया, जिसके बाद मार्केट में गेहूं की शॉर्टेज हो गई है. उन्होंने बताया कि अब ऐसी स्थिति हो गई है कि लगभग सभी फ्लोर मिल माल
खत्म हो गया है.

सरकार के नए टेंडर से भी राहत नहीं
एसोसिएशन के उपाध्यक्ष ने बताया कि अभी कुछ दिन पहले सरकार ने गेहूं की किल्लत को देखते हुए ओपन मार्केट में 25 लाख टन गेहूं देने की बात कही. इस टेंडर के आने से त्वरित कुछ दबाव पड़ा है. लेकिन यह स्थाई नहीं है. क्योंकि,अभी मार्केट में गेहूं की कमी है. टेंडर से गेहूं के घर तक पहुंचने की प्रक्रिया में भी लगभग 15 दिन लग जाता है. जब तक नया गेहू नहीं आ जाता. वास्तव में इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता है.

गुजरात राजस्थान से मंगाया जा रहा गेंहू
एसोसिएशन के उपाध्यक्ष दीपक बजाज ने बताया कि उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि हम लोग कांडला- गुजरात, राजस्थान से गेहूं लेकर यहां आए हैं. निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश की मिलों के सामने एक बड़ा संकट है. पिछले 2 महीने की तस्वीर देख ली जाए तो इस संकट से इंडस्ट्रीज बंद होने के कगार पर है, जिससे कर्मचारियों की छंटनी लाजमी है. उन्होंने बताया कि यूपी में लगभग 87 हजार कर्मचारी इन मिलों में कार्य कर रहे हैं.

संकट के क्या हैं कारण
उन्होंने बताया कि संकट काल की स्थिति उत्पन्न होने के कुछ प्रमुख कारण हैं, जिसमें सरकार के पास न्यूनतम स्टॉक का होना और उसके बाद सरकार की ओर से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अलावा कोरोना काल के बाद भी लगातार एक्स्ट्रा अनाज आमजन तक उपलब्ध कराना प्रमुख कारण है. इसके अलावा निर्यात का भी एक बड़ा असर पड़ा है. क्योंकि, शुरू के महीनों में बड़ी मात्रा में निर्यात में गेहूं प्रदेश का चला गया. यदि सरकार उस समय त्वरित गेहूं के निर्यात को रोकने का निर्णय ले लेती, तो शायद स्थिति और भी ज्यादा बुरी हो जाती.

ये भी पढ़ेंः Akhilesh Yadav के शूद्र वाले बयान पर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव बोले, ये लोग विद्वेष की राजनीति फैला रहे

पूर्वांचल की आटा मिलों पर ईटीवी संवाददाता प्रतीमा तिवारी की रिपोर्ट.

वाराणसी: पूर्वांचल की आटा मिलों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. गेहूं की किल्लत के कारण पूर्वांचल की मिलें बन्दी के कगार पर हैं. बड़ी बात यह है कि इस संकट ने न सिर्फ मिलों को बंदी के कगार पर ला दिया है, बल्कि कर्मचारियों की छंटनी की नौबत तक आ गई है. यह कहना है फ्लोर मिल एसोसिएशन से जुड़े पदाधिकारी व मिल मालिकों का. उन्होंने बताया कि यह हाल एक या दो नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की लगभग 70 फीसदी आटा मिलों का है.

उत्तर प्रदेश में लगभग 350 फ्लोर मिलें हैं. जिसमें 70 फीसदी से ज्यादा मिलें इस मंदी से जूझ रही हैं. बहुत कम ही मिल हैं, जो आवश्यकता से ज्यादा स्टॉक रख कर चलती हैं. यदि उत्पादन की बात करें तो अकेले वाराणसी और चंदौली जिले से ही 35 हजार टन प्रतिदिन आटे का उत्पादन होता है. लेकिन वर्तमान में इन दोनों जिलों से महज 15 से 17 सौ टन ही आटे का उत्पादन हो रहा है.

इस बारे में उत्तर प्रदेश फ्लोर मिल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष दीपक बजाज ने बताया कि उत्तर प्रदेश सर्वाधिक गेहूं उत्पादक राज्य है. 34 फीसदी गेहूं उत्पादन के साथ पूरे भारतवर्ष में इसका पहला स्थान है. लेकिन, इस बार ज्यादा माल का निर्यात उत्तर प्रदेश से हो गया, जिसके बाद मार्केट में गेहूं की शॉर्टेज हो गई है. उन्होंने बताया कि अब ऐसी स्थिति हो गई है कि लगभग सभी फ्लोर मिल माल
खत्म हो गया है.

सरकार के नए टेंडर से भी राहत नहीं
एसोसिएशन के उपाध्यक्ष ने बताया कि अभी कुछ दिन पहले सरकार ने गेहूं की किल्लत को देखते हुए ओपन मार्केट में 25 लाख टन गेहूं देने की बात कही. इस टेंडर के आने से त्वरित कुछ दबाव पड़ा है. लेकिन यह स्थाई नहीं है. क्योंकि,अभी मार्केट में गेहूं की कमी है. टेंडर से गेहूं के घर तक पहुंचने की प्रक्रिया में भी लगभग 15 दिन लग जाता है. जब तक नया गेहू नहीं आ जाता. वास्तव में इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता है.

गुजरात राजस्थान से मंगाया जा रहा गेंहू
एसोसिएशन के उपाध्यक्ष दीपक बजाज ने बताया कि उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि हम लोग कांडला- गुजरात, राजस्थान से गेहूं लेकर यहां आए हैं. निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश की मिलों के सामने एक बड़ा संकट है. पिछले 2 महीने की तस्वीर देख ली जाए तो इस संकट से इंडस्ट्रीज बंद होने के कगार पर है, जिससे कर्मचारियों की छंटनी लाजमी है. उन्होंने बताया कि यूपी में लगभग 87 हजार कर्मचारी इन मिलों में कार्य कर रहे हैं.

संकट के क्या हैं कारण
उन्होंने बताया कि संकट काल की स्थिति उत्पन्न होने के कुछ प्रमुख कारण हैं, जिसमें सरकार के पास न्यूनतम स्टॉक का होना और उसके बाद सरकार की ओर से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अलावा कोरोना काल के बाद भी लगातार एक्स्ट्रा अनाज आमजन तक उपलब्ध कराना प्रमुख कारण है. इसके अलावा निर्यात का भी एक बड़ा असर पड़ा है. क्योंकि, शुरू के महीनों में बड़ी मात्रा में निर्यात में गेहूं प्रदेश का चला गया. यदि सरकार उस समय त्वरित गेहूं के निर्यात को रोकने का निर्णय ले लेती, तो शायद स्थिति और भी ज्यादा बुरी हो जाती.

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