वाराणसी: सनातन धर्म में पड़ने वाले हर पर्व का अपना अलग महत्व और उससे जुड़ी कथाएं होती हैं. कई पर्व ऐसे होते हैं जो अनादि काल से लेकर आज तक उसी रूप में मनाए जा रहे हैं, जैसे इनकी शुरुआत हुई थी. ऐसा ही पर्व है अनंत चतुर्दशी का पर्व. अनंत मतलब जिसका न आदि हो ना अंत ऐसे श्री हरि विष्णु ही हैं. भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाए जाने वाले इस व्रत में स्नान करने के बाद अक्षत, दूर्वा, शुद्ध रेशम या कपास के सूत से बने और हल्दी से रंगे हुए चौदह गांठ के अनंत की पूजा की जाती है, फिर अनंत देव का ध्यान करके अनंत, जिसकी पूजा की गई होती है उसे पुरुष दाहिनी और स्त्री बायीं भुजा या हाथ में बांधते है. इस बार कब पड़ रहा है अनंत चतुर्दशी का पर्व और क्या है इससे जुड़ी कथा जानिए आप भी.
धारण किया जाता है खास धागा
पंडित ऋषि द्विवेदी के मुताबिक, अनंत चतुर्दशी का पर्व इस बार 19 सितंबर यानी रविवार को मनाया जाएगा. चतुर्दशी तिथि 19 सितंबर की सुबह 5:41 पर प्रारंभ होगी जो 20 सितंबर की सुबह 5:01 तक रहेगी. 19 सितंबर को ही यह पर्व मनाया जाना शास्त्र सम्मत माना जा रहा है. पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि अनंत चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान ध्यान करने के बाद सूत या रेशम के धागे में 14 गांठे लगाने के बाद श्री हरि विष्णु के रूप में इसका पूजन किया जाता है.
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि अनंत चतुर्दशी से जुड़ी कथा महाभारत काल में शुरू हुई. ऐसा बताया जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को अपने खोए हुए राजपाट को वापस पाने और महाभारत के युद्ध को जीतने के लिए अनंत चतुर्दशी का व्रत करवाया था. भाद्रपद मास की चतुर्दशी तिथि को पढ़ने वाले इस व्रत को जब पांडवों ने किया तो उन्हें महाभारत के युद्ध में जीत भी हासिल हुई और उनका खोया हुआ राजपाट उन्हें वापस मिल गया. इसलिए यह व्रत हर तरह के सुख और वैभव को प्राप्त करने के लिए अति उत्तम व्रत माना जाता है. अनंत को भगवान श्री हरि विष्णु के रूप में पूजा जाता है और श्री हरि व्रत करने के बाद भक्तों को अपना आशीर्वाद भी देते हैं.
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