वाराणसी: विश्व में पहली बार मच्छरों द्वारा फैलने वाली बीमारी जापानी इंसेफ्लाइटिस के पीछे माइक्रो आरएनए -155 की गतिविधियों का पता चला है. ये माइक्रो आरएनए मस्तिष्क के माइक्रोग्लियल कोशिकाओं में मौजूद होती हैं, जो कि बीमारी के खिलाफ लड़ने में सहायक प्रोटीन का संश्लेषण नहीं होने देतीं. यह सबसे बेहतर अवसर होता है, जब जापानी इंसेफ्लाइटिस का वायरस मस्तिष्क में अपना संक्रमण तेजी से फैलाने में सफल हो जाता है. आइएमएस-बीएचयू स्थित मालीक्यूलर बायोलाजी के विभागाध्यक्ष प्रो. सुनीत कुमार सिंह के निर्देशन में हुआ यह शोध प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल बीबीए-जीन रेगुलेटरी मैकेनिज्म के सितंबर के अंक में प्रकाशित हो चुका है.
जानें यह शोध
इस अध्ययन से पता चलता है कि यदि माइक्रो आरएनए -155 के बढ़ते स्तर को एक सीमा के बाद रोक दें, तो हम जापानी इंसेफेलाइटिस के घातक स्वरूप से लोगों को बच सकेंगे. प्रोफेसर सुनीत सिंह एक प्रख्यात वायरोलॉजिस्ट हैं. उनका यह शोध कार्य एक अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक जर्नल "BBA - Gene Regulatory Mechanisms" में सितंबर 2020 के महीने में प्रकाशित हुआ है.
प्रो. सुनीत कुमार सिंह के निर्देशन में किये गए अध्ययन से पता चला है कि माइक्रोआरएनए -144, पेलिनो 1 (पीईएलआई 1) प्रोटीन के संश्लेषण को कम करता है और अपने खिलाफ होने वाली इम्यून रिस्पांस को रोकता है , जो की जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस के मस्तिष्क में संक्रमण करने में मदद करता है. उन्होंने यह भी दिखाया है कि माइक्रोआरएनए -144 के खिलाफ अवरोधकों का उपयोग करके मष्तिष्क की मइक्रोग्लियल कोशिकाओं में इम्यून रिस्पांस को सक्रिय किया जा सकता है, जो की मष्तिष्क में जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस संक्रमण में अवरोधक की भूमिका अदा करेगा. इसलिए इस तंत्र का उपयोग जेईवी संक्रमण के खिलाफ माइक्रोआरएनए-आधारित दवाओं के विकास के लिए किया जा सकता है.
वाराणसी: प्रो. सुनीत सिंह के निर्देशन में जापानी इन्सेफेलाइटिस वायरस पैथोजेनेसिस पर महत्वपूर्ण शोध - जापानी इन्सेफेलाइटिस वायरस
जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस (जेईवी) क्यूलेक्स मच्छरों द्वारा फैलता है. जेईवी संक्रमण के लक्षण हल्के बुखार, सिरदर्द जैसे होते हैं. गंभीर स्थितियों में यह एन्सेफलाइटिस, कोमा, कंपकंपी या आक्षेप और अक्सर मौत का कारण बन सकता है. यह शोध प्रो. सुनीत सिंह के निर्देशन में जापानी इन्सेफेलाइटिस वायरस पैथोजेनेसिस पर किया गया है.
वाराणसी: विश्व में पहली बार मच्छरों द्वारा फैलने वाली बीमारी जापानी इंसेफ्लाइटिस के पीछे माइक्रो आरएनए -155 की गतिविधियों का पता चला है. ये माइक्रो आरएनए मस्तिष्क के माइक्रोग्लियल कोशिकाओं में मौजूद होती हैं, जो कि बीमारी के खिलाफ लड़ने में सहायक प्रोटीन का संश्लेषण नहीं होने देतीं. यह सबसे बेहतर अवसर होता है, जब जापानी इंसेफ्लाइटिस का वायरस मस्तिष्क में अपना संक्रमण तेजी से फैलाने में सफल हो जाता है. आइएमएस-बीएचयू स्थित मालीक्यूलर बायोलाजी के विभागाध्यक्ष प्रो. सुनीत कुमार सिंह के निर्देशन में हुआ यह शोध प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल बीबीए-जीन रेगुलेटरी मैकेनिज्म के सितंबर के अंक में प्रकाशित हो चुका है.
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इस अध्ययन से पता चलता है कि यदि माइक्रो आरएनए -155 के बढ़ते स्तर को एक सीमा के बाद रोक दें, तो हम जापानी इंसेफेलाइटिस के घातक स्वरूप से लोगों को बच सकेंगे. प्रोफेसर सुनीत सिंह एक प्रख्यात वायरोलॉजिस्ट हैं. उनका यह शोध कार्य एक अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक जर्नल "BBA - Gene Regulatory Mechanisms" में सितंबर 2020 के महीने में प्रकाशित हुआ है.
प्रो. सुनीत कुमार सिंह के निर्देशन में किये गए अध्ययन से पता चला है कि माइक्रोआरएनए -144, पेलिनो 1 (पीईएलआई 1) प्रोटीन के संश्लेषण को कम करता है और अपने खिलाफ होने वाली इम्यून रिस्पांस को रोकता है , जो की जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस के मस्तिष्क में संक्रमण करने में मदद करता है. उन्होंने यह भी दिखाया है कि माइक्रोआरएनए -144 के खिलाफ अवरोधकों का उपयोग करके मष्तिष्क की मइक्रोग्लियल कोशिकाओं में इम्यून रिस्पांस को सक्रिय किया जा सकता है, जो की मष्तिष्क में जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस संक्रमण में अवरोधक की भूमिका अदा करेगा. इसलिए इस तंत्र का उपयोग जेईवी संक्रमण के खिलाफ माइक्रोआरएनए-आधारित दवाओं के विकास के लिए किया जा सकता है.