वाराणसी: भारत में एक बड़ी आबादी गांव में बसती है और कहते हैं कि जब गांव का विकास होता है, तो शहर खुद-ब-खुद खूबसूरत और विकसित होने लगते हैं, लेकिन आज के बदलते सामाजिक परिवेश में जब शहरी क्षेत्रों के विकास में तेजी आ रही है, तो वहीं आज भी ग्रामीण क्षेत्र शायद विकास से अछूते हैं. यही वजह है कि नगर निकाय क्षेत्र में पड़ने वाले इलाकों में विकास की बात तो होती है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम सभाओं के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रीय मोहल्ले या फिर बस्तियों का विकास उस अंदाज या उस स्थिति में नहीं हो पाता जैसे दावे कागजों में होते हैं.
ऐसे ही दावे की सच्चाई ईटीवी भारत ने शहरी क्षेत्रों से सटे उन तमाम ग्रामीण इलाकों की करने की कोशिश की. जहां आज भी मूलभूत सुविधाओं में सीवर और नाली जैसी विकास की बातें भी बेमानी नजर आती हैं. बारिश के मौसम में बनारस शहर से सटे काशी विद्यापीठ ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले ग्राम सभा लहरतारा, शिवदासपुर पसियाना बस्ती जैसे इलाकों में बारिश का मौसम इस क्षेत्र के लोगों के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं होता. क्योंकि बरसात के मौसम में इन इलाके में रहने वाले लोगों की जिंदगी नर्क से भी बदतर हो जाती है.
बरसात के मौसम में पैदल चलना हो जाता है दुश्वार
वाराणसी से सटे लहरतारा ग्राम सभा, शिवदासपुर ग्राम सभा और पसियाना बस्ती जैसे इलाके आज भी विकास की सच्चाई को बयां करने के लिए काफी हैं. इन तीनों ग्राम सभाओं में कुल मिलाकर 35 हजार से ज्यादा की आबादी बसती है. लहरतारा ग्राम सभा में 12 हजार शिवदासपुर ग्राम सभा में लगभग 20 हजार और पसियाना बस्ती क्षेत्र में लगभग 7 हजार की आबादी रहती है. आबादी के हिसाब से इस इलाके में विकास की बातें भी बेईमानी ही हैं.
सड़कों पर जमा पानी, नालियों में बजबजा रहा गंदा पानी यह बताने के लिए काफी है कि इस क्षेत्र में अब तक कुछ हुआ ही नहीं है. ईटीवी भारत की टीम जब यहां इस हकीकत को जानने पहुंची तो लोगों ने अपने दर्द को बयां करते हुए अपना दुखड़ा रोया. किसी ने कहा कि कई सालों से सड़क पर पानी लगा है, तो किसी ने बताया कि बरसात के मौसम में तो यहां पैदल चलना भी दुश्वार हो जाता है.
बारिश के मौसम में नारकीय जीवन जीने को मजबूर लोग
लोगों का कहना था कि नाली और सीवर का आज तक कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हुआ, जिसकी वजह से बारिश के मौसम में नारकीय जीवन हो जाता है. लोग गिरते पड़ते हैं. चोटिल होते हैं. बीमार पड़ते हैं. अस्पताल भेजना पड़ता है. शिकायतों के बाद भी न आज तक सड़क बनी और न ही यहां पर लगने वाले पानी के निकासी का कोई प्रबंध हुआ. इतनी बड़ी आबादी होने के बाद भी इन ग्राम सभाओं में हालात बेहद खराब है. नगर निकाय के नजदीक होने के बाद भी ग्रामसभा और नगर निकाय के बीच चल रही खींचतान की वजह से इस इलाके में लोग यह नहीं समझ पा रहे कि वह जाएं तो जाएं कहां.
संत कबीर जन्मस्थल में जाता है गंदा पानी
वहीं इस इलाके में एक पवित्र स्थल भी मौजूद है. महान संत कबीर की जन्म स्थली इसी ग्राम सभा में पड़ती है. देश दुनिया के लोग यहां पहुंचते हैं, लेकिन सड़क पर लगा बरसात का और नाले का गंदा पानी न सिर्फ बनारस की छवि बिगड़ता है, बल्कि इस महान संत के पवित्र स्थल तक आने के रास्ते इस सच्चाई को भी बयां करता है. यहां के महंत का कहना है कि अब तक यहां कोई स्थाई व्यवस्था नहीं है. यहां हजारों घरों से नाले और सीवर का पानी मठ में मौजूद एक तालाब में लाया जाता है, जिस को रोकने के लिए कई बार अधिकारियों से गुजारिश की, लेकिन आज तक इस क्षेत्र में सीवर लाइन भी नहीं पड़ी है. नालियां नहीं बनी है, जिसकी वजह से पूरा इलाका बारिश और बारिश के बाद जल निकासी की समस्या से जूझता रहता है.
हालांकि जब इस बारे में अधिकारियों ने कहा कि जितना पैसा नगर निकाय के विकास में आता है. उतना ग्राम सभाओं को कहां मिलता है. हालांकि यह माना कि पानी लगने की समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से इलाकों में हैं, लेकिन यह भी विश्वास दिलाया कि जल्द ही इसका निस्तारण होगा सरकार और प्रशासन ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले वाटर लॉगिंग की समस्या को निस्तारित करने पर जोर दे रहा है. स्वीकृत धनराशि से काम तेज करने की बात कही जा रही है. यहां तक कि मनरेगा से भी नाली और खड़ंजा बनाने की प्रक्रिया तेज की जा रही है. ताकि पानी लगने की समस्या का समाधान हो सके.