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वाराणसी: पीएम मोदी की इलेक्ट्रॉनिक चाक अब दे रही कुम्हारों को शॉक

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में कुम्हारों के अच्छे दिन वापस आने से उनके चेहरे खिल उठे हैं. प्रधानमंत्री योजना के तहत कुम्हारों को इलेक्ट्रॉनिक चाक दी गई है जिससे कि वह अधिक से अधिक दीयों को बनाकर अपने रोजगार को बढ़ा सके लेकिन दूसरी तरफ कुम्हारों के लिए बिजली और उसके बिल भुगतान की समस्या भी हो रही है.

इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीया बनाता कुम्हार.
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Published : Oct 18, 2019, 1:43 PM IST

वाराणसी: बात अगर दीपावली की हो और मिट्टी के दिए और कुम्हारों के बारे में चर्चा न की जाए तो शायद दीपावली का पर्व कुछ अधूरा सा लगता है. हाईटेक हो रहे दौर में भी मिट्टी के दीयों की पूछ एक बार फिर से होने लगी है और कुम्हारों की भी उम्मीद जग गई है. उनका आने वाला कल एक बार फिर से सुनहरा होगा.

कुम्हार बनाएंगे इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीये.

वाराणसी के कुम्हार तो बहुत सी उम्मीदें पाल रखे हैं, इसकी बड़ी वजह यह है कि बनारस के अधिकांश कुम्हारों को प्रधानमंत्री योजना के तहत उनकी जिंदगी बदलने के लिए अब पुरानी पत्थर की चाक के जगह इलेक्ट्रॉनिक चाक दे दी गई है. शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर लोहता गांव में 12 से अधिक कुम्हार परिवार अब परंपरागत चौक की जगह इलेक्ट्रॉनिक चौक का इस्तेमाल कर रहे हैं. एक तरफ जहां इसने प्रोडक्शन में इजाफा किया है वहीं इन्हें शॉक भी दिया है.

लौटी खोई हुई उम्मीद की किरणें
प्रधानमंत्री योजना के अंतर्गत बनारस में बहुत से कुम्हारों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद अपने हाथ से इलेक्ट्रॉनिक चाक प्रदान की थी. इनमें लोहता इलाके के भी कुछ कुम्हार शामिल थे. यह चाक और मिट्टी छानने के लिए है, जिससे लग रहा है कि बहुत कुछ बदल जाएगा. शुरुआती दौर में चीजें अच्छी भी रहीं, लेकिन बिजली से चलने वाले चाक ने प्रतिदिन बनाए जाने वाले दीयों की संख्या में तो अच्छा खासा इजाफा किया, मुनाफा बढ़ा तो जिंदगी बदलने की उम्मीद भी बढ़ गई. वहीं बिजली ने ऐसा झटका दिया कि सबकुछ फिर से उसी जगह आ गया जहां से शुरुआत हुई थी. कुम्हारों का कहना है कि हाल ही में प्रदेश सरकार ने बिजली की कीमतों में इजाफा किया जिसने इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की कमर तोड़ दी है.

इसे भी पढ़ें:- बदायूंः प्लास्टिक और थर्माकोल के बैन से कुम्हारों के आए अच्छे दिन


सुविधा के साथ-साथ परेशानियां भी बढ़ी
कुम्हारों का कहना है कि बिजली से चलने वाली चाक दिन भर में 5 घंटा चलाने के बाद महीने में पहले हमें 700 से 800 रुपये बिल का भुगतान करना पड़ता था, लेकिन अब बिजली के बिल में 400 से 500 रुपये की बढ़ोतरी हो गई है. वहीं कुम्हारों को बिजली में किसी तरह की कोई सब्सिडी सरकार की तरफ से न मिलने की वजह से यह चाक प्रोडक्शन बढ़ाने का काम तो कर रही है लेकिन मुनाफा वहीं का वहीं है. प्रोडक्शन बढ़ने से जो मुनाफा हो रहा था, वह बिजली के बिल में ही चला जा रहा है. सरकार द्वारा कुम्हारों को मुनाफे के लिए यह सुविधा तो उपलब्ध कराई गई है लेकिन वहीं अब कुम्हारों के लिए परेशानी बढ़ाने वाली भी बन गई है.


वाराणसी: बात अगर दीपावली की हो और मिट्टी के दिए और कुम्हारों के बारे में चर्चा न की जाए तो शायद दीपावली का पर्व कुछ अधूरा सा लगता है. हाईटेक हो रहे दौर में भी मिट्टी के दीयों की पूछ एक बार फिर से होने लगी है और कुम्हारों की भी उम्मीद जग गई है. उनका आने वाला कल एक बार फिर से सुनहरा होगा.

कुम्हार बनाएंगे इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीये.

वाराणसी के कुम्हार तो बहुत सी उम्मीदें पाल रखे हैं, इसकी बड़ी वजह यह है कि बनारस के अधिकांश कुम्हारों को प्रधानमंत्री योजना के तहत उनकी जिंदगी बदलने के लिए अब पुरानी पत्थर की चाक के जगह इलेक्ट्रॉनिक चाक दे दी गई है. शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर लोहता गांव में 12 से अधिक कुम्हार परिवार अब परंपरागत चौक की जगह इलेक्ट्रॉनिक चौक का इस्तेमाल कर रहे हैं. एक तरफ जहां इसने प्रोडक्शन में इजाफा किया है वहीं इन्हें शॉक भी दिया है.

लौटी खोई हुई उम्मीद की किरणें
प्रधानमंत्री योजना के अंतर्गत बनारस में बहुत से कुम्हारों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद अपने हाथ से इलेक्ट्रॉनिक चाक प्रदान की थी. इनमें लोहता इलाके के भी कुछ कुम्हार शामिल थे. यह चाक और मिट्टी छानने के लिए है, जिससे लग रहा है कि बहुत कुछ बदल जाएगा. शुरुआती दौर में चीजें अच्छी भी रहीं, लेकिन बिजली से चलने वाले चाक ने प्रतिदिन बनाए जाने वाले दीयों की संख्या में तो अच्छा खासा इजाफा किया, मुनाफा बढ़ा तो जिंदगी बदलने की उम्मीद भी बढ़ गई. वहीं बिजली ने ऐसा झटका दिया कि सबकुछ फिर से उसी जगह आ गया जहां से शुरुआत हुई थी. कुम्हारों का कहना है कि हाल ही में प्रदेश सरकार ने बिजली की कीमतों में इजाफा किया जिसने इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की कमर तोड़ दी है.

इसे भी पढ़ें:- बदायूंः प्लास्टिक और थर्माकोल के बैन से कुम्हारों के आए अच्छे दिन


सुविधा के साथ-साथ परेशानियां भी बढ़ी
कुम्हारों का कहना है कि बिजली से चलने वाली चाक दिन भर में 5 घंटा चलाने के बाद महीने में पहले हमें 700 से 800 रुपये बिल का भुगतान करना पड़ता था, लेकिन अब बिजली के बिल में 400 से 500 रुपये की बढ़ोतरी हो गई है. वहीं कुम्हारों को बिजली में किसी तरह की कोई सब्सिडी सरकार की तरफ से न मिलने की वजह से यह चाक प्रोडक्शन बढ़ाने का काम तो कर रही है लेकिन मुनाफा वहीं का वहीं है. प्रोडक्शन बढ़ने से जो मुनाफा हो रहा था, वह बिजली के बिल में ही चला जा रहा है. सरकार द्वारा कुम्हारों को मुनाफे के लिए यह सुविधा तो उपलब्ध कराई गई है लेकिन वहीं अब कुम्हारों के लिए परेशानी बढ़ाने वाली भी बन गई है.


Intro:स्पेशल स्टोरी:

वाराणसी: बात अगर दीपावली की हो और मिट्टी के दिए और कुम्हारों के बारे में चर्चा ना की जाए तो शायद दीपावली का पर्व कुछ अधूरा सा लगता है हाईटेक हो रहे दौर में भी मिट्टी के दीयों की पूछ एक बार फिर से होने लगी है और कुम्हारों को भी उम्मीद जग गई है कि उनका आने वाला कल एक बार फिर से सुनहरा होगा वाराणसी के कुम्हार तो बहुत सी उम्मीदें पाल रखे हैं. इसकी बड़ी वजह यह है क्योंकि बनारस के अधिकांश कुम्हारों को प्रधानमंत्री योजना जगह उनकी जिंदगी बदलने के लिए अब पुरानी पत्थर की चाक जगह इलेक्ट्रॉनिक चाक दे दी गई है. शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर लोहता गांव में दर्जनों कुमार परिवार अब परंपरागत चौक की जगह इस इलेक्ट्रॉनिक चौक का इस्तेमाल कर रहे हैं एक तरफ जहां इसने प्रोडक्शन में इजाफा किया है वही इन्हें शॉक भी दिया है.


Body:वीओ-01 दरअसल प्रधानमंत्री योजना के अंतर्गत बनारस में बहुत से कुम्हारों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद अपने हाथ से इलेक्ट्रॉनिक चाक प्रदान की थी. इनमें लोहता इलाके के भी कुछ कुम्हार शामिल थे. यह चाक मिली और मिट्टी छानने के लिए मशीन मिली तो लगा बहुत कुछ बदल जाएगा. शुरुआती दौर में चीजें अच्छी भी रहीं, लेकिन बिजली से चलने वाले चाक ने प्रतिदिन बनाए जाने वाले दीयो की संख्या में तो अच्छा खासा इजाफा किया, मुनाफा बढ़ा तो जिंदगी बदलने की उम्मीद भी बढ़ गई, लेकिन बिजली ने ऐसा झटका दिया कि सबकुछ फिर से उसी जगह आ गया जहां से शुरुआत हुई थी. कुम्हारों का कहना है कि हाल ही में प्रदेश सरकार ने बिजली की कीमतों में इजाफा किया जिसने इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की कमर तोड़ दी है.

बाईट- नंदलाल प्रजापति, कुम्हार
बाईट- शिव शंकर, कुम्हार
बाईट- नित्या प्रजापति, परिवारजन




Conclusion:वीओ-02 कुम्हारों का कहना है बिजली से चलने वाली चाक दिन भर में 5 घंटा चलाने के बाद महीने में पहले हमें 700 से 800 रुपए बिल का भुगतान करना पड़ता था, लेकिन अब बिजली के बिल में 400 से 500 रुपये की बढ़ोतरी हो गई है. वहीं कुम्हारों को बिजली में किसी तरह की कोई सब्सिडी सरकार की तरफ से ना मिलने की वजह से यह चाक प्रोडक्शन बढ़ाने का काम तो कर रही है लेकिन मुनाफा वही का वही है. क्योंकि प्रोडक्शन बढ़ने से जो मुनाफा हो रहा था, वह बिजली के बिल में ही चला जा रहा है इसलिए सरकार को अपनी ही योजना जो दी तो गई थी कुम्हारों को मुनाफे के लिए वहीं अब कुम्हारों के लिए परेशानी बढ़ाने वाली बन गई है.

गोपाल मिश्र

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