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वाराणसी: लॉकडाउन से कुलियों के आगे गहराया रोजी-रोटी का संकट, आर्थिक संकट से जूझ रहा परिवार

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में लॉकडाउन के चलते ट्रेनों के नहीं चलने से कुलियों के आगे रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है. उनका परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा है. ईटीवी भारत से बातचीत में कुलियों ने अपना दर्द बयां किया.

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Published : Jun 1, 2020, 10:25 AM IST

lockdown impact on porters in varanasi
कुलियों के सामने रोजी-रोटी का संकट.

वाराणसी: 'सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं. लोग आते हैं, लोग जाते हैं, हम यहीं पे खड़े रह जाते हैं.' अमिताभ बच्चन की सुपरहिट फिल्म 'कुली' का यह गीत तो आपको याद ही होगा. कुलियों की जिंदगी पर आधारित इस फिल्म ने लोगों की काफी हद तक सोच बदल दी. लाल रंग का कुर्ता और बिल्ला पहने ये कुली लोगों का बोझ उठाकर, अपने परिवार का पेट पालते हैं. लेकिन आज ये कुली बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर हैं.

हालात यह है कि 5 से 6 लोगों की जिम्मेदारी एक अकेले कंधे पर है. लेकिन आज वह कंधा चाह कर भी परिवार की मदद नहीं कर पा रहा, क्योंकि ट्रेनों का संचालन बंद होने की वजह से कुलियों के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं.

कुलियों के सामने रोजी-रोटी का संकट.

2 महीने से खाली बैठे हैं सैकड़ों कुली
दरअसल, 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगाए जाने से ही ट्रेनों का संचालन बंद कर दिया गया. लगभग 2 महीने से ज्यादा का वक्त बीतने को है, लेकिन ट्रेन अभी पूरी तरह से पटरी पर नहीं दौड़ी है. सिर्फ श्रमिक एक्सप्रेस और कुछ गिनी चुनी ट्रेनें ही चल रही हैं. लेकिन वाराणसी जंक्शन से गुजरने वाली ट्रेनों की संख्या भी बेहद कम है, जो अभी सिर्फ प्रवासी मजदूरों को लेकर आ रही है. इस वजह से यहां काम करने वाले लगभग 200 से ज्यादा कुलियों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहराता जा रहा है.

lockdown impact on porters in varanasi
सरकार से कुलियों को मदद की आस.

'किसी ने नहीं की कुलियों की मदद'
विश्रामगृह खोलकर सुबह-शाम इसमें आराम करने के अलावा इन कुलियों के पास अब कोई काम नहीं है. ईटीवी भारत से बयां करते हुए उन्होंने कहा कि उनके बारे में किसी ने नहीं सोचा. रेलवे, सामाजिक संस्था या फिर प्रशासन, कोई उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया.

वाराणसी ने नामकरण के 64 साल पूरे किए, अथर्ववेद में है इस नाम का उल्लेख

उन्होंने कहा कि हमारी मदद को राशन के पैकेट तो दूर किसी ने हमारे स्वास्थ्य परीक्षण के बारे में भी नहीं सोचा. कैसे चलेगा घर का खर्च और कैसे भरेंगे अपने घर वालों का पेट. यह हमारे आगे बड़ा संकट है.

वाराणसी: 'सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं. लोग आते हैं, लोग जाते हैं, हम यहीं पे खड़े रह जाते हैं.' अमिताभ बच्चन की सुपरहिट फिल्म 'कुली' का यह गीत तो आपको याद ही होगा. कुलियों की जिंदगी पर आधारित इस फिल्म ने लोगों की काफी हद तक सोच बदल दी. लाल रंग का कुर्ता और बिल्ला पहने ये कुली लोगों का बोझ उठाकर, अपने परिवार का पेट पालते हैं. लेकिन आज ये कुली बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर हैं.

हालात यह है कि 5 से 6 लोगों की जिम्मेदारी एक अकेले कंधे पर है. लेकिन आज वह कंधा चाह कर भी परिवार की मदद नहीं कर पा रहा, क्योंकि ट्रेनों का संचालन बंद होने की वजह से कुलियों के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं.

कुलियों के सामने रोजी-रोटी का संकट.

2 महीने से खाली बैठे हैं सैकड़ों कुली
दरअसल, 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगाए जाने से ही ट्रेनों का संचालन बंद कर दिया गया. लगभग 2 महीने से ज्यादा का वक्त बीतने को है, लेकिन ट्रेन अभी पूरी तरह से पटरी पर नहीं दौड़ी है. सिर्फ श्रमिक एक्सप्रेस और कुछ गिनी चुनी ट्रेनें ही चल रही हैं. लेकिन वाराणसी जंक्शन से गुजरने वाली ट्रेनों की संख्या भी बेहद कम है, जो अभी सिर्फ प्रवासी मजदूरों को लेकर आ रही है. इस वजह से यहां काम करने वाले लगभग 200 से ज्यादा कुलियों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहराता जा रहा है.

lockdown impact on porters in varanasi
सरकार से कुलियों को मदद की आस.

'किसी ने नहीं की कुलियों की मदद'
विश्रामगृह खोलकर सुबह-शाम इसमें आराम करने के अलावा इन कुलियों के पास अब कोई काम नहीं है. ईटीवी भारत से बयां करते हुए उन्होंने कहा कि उनके बारे में किसी ने नहीं सोचा. रेलवे, सामाजिक संस्था या फिर प्रशासन, कोई उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया.

वाराणसी ने नामकरण के 64 साल पूरे किए, अथर्ववेद में है इस नाम का उल्लेख

उन्होंने कहा कि हमारी मदद को राशन के पैकेट तो दूर किसी ने हमारे स्वास्थ्य परीक्षण के बारे में भी नहीं सोचा. कैसे चलेगा घर का खर्च और कैसे भरेंगे अपने घर वालों का पेट. यह हमारे आगे बड़ा संकट है.

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