वाराणसी : उत्तर प्रदेश 2022 विधानसभा चुनाव अब धीरे-धीरे नजदीक आ रहा है. यूपी में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी किसी भी हालत में अपनी गद्दी को जाने नहीं देना चाहती है. दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियां यूपी में भाजपा से सत्ता छीनने पर अमादा हैं. हालांकि राजनीतिक गठजोड़ फिलहाल अभी शुरू नहीं हुआ है, लेकिन जातिगत आधार पर बटे वोटर्स को अपनी तरफ करने के लिए पार्टियों ने अब तरह-तरह के हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए हैं. इसकी शुरुआत बीजेपी के नेता एक के बाद एक नए पासे फेंककर कर रहे हैं.
मिशन 2022 की तैयारी में जुटी बीजेपी इस बार बीजेपी ने यूपी में यादवों के वोट बैंक में सेंधमारी कर समाजवादी पार्टी को छोड़ देने की कोशिश है. इसकी शुरुआत सोमवार को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से किया. दो दिवसीय काशी प्रवास पर पहुंचे नड्डा अचानक से एक यादव कार्यकर्ता के घर नाश्ते पर पहुंच गए. नड्डा के इस क्षेत्र में आने के बाद खलबली मच गई. हालांकि खलबली मचना भी जायज है. क्योंकि जिस बूथ अध्यक्ष के घर नड्डा ने पहुंचकर नाश्ता किया उस बूथ पर 2019 के लोकसभा चुनाव में 800 वोट में से 450 से ज्यादा वोट अकेले बीजेपी को मिले थे. इस क्षेत्र के अलावा आसपास के लगभग आधा दर्जन से ज्यादा मोहल्ले यादव वोटर्स के लिए काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. यूं कहिए कि पीएम मोदी के गढ़ से बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अखिलेश के पुश्तैनी वोट बैंक पर सेंधमारी की कोशिश शुरू कर दी है.
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यादव कार्यकर्ता के घर किया नाश्ता.
इस वोट बैंक पर जमाती है सपा अपना अधिकारदरअसल, उत्तर प्रदेश में यादव वोट बैंक काफी मजबूत माना जाता है. इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि आज काफी लंबे वक्त से समाजवादी पार्टी यादव वोटर्स को सिर्फ अपनी तरह मानती रही है. इस वोट बैंक पर समाजवादी पार्टी अपना एकाधिकार मानकर यादवों को छोड़कर बाकी वोट बैंक को साधने में जुटी रहती है. इस उम्मीद के साथ कि यादव जाएंगे कहा, लेकिन 2017 विधानसभा और 2019 लोकसभा चुनावों में गठबंधन के बाद भी यादव वोट बैंक खिसक गया. इसका सबसे बड़ा उदाहरण महागठबंधन में शामिल होने वाली बहुजन समाजवादी पार्टी की सर्वे सर्वा मायावती ने यह बयान देकर भी साफ कर दिया कि बसपा का सपा के साथ जाना बसपा के लिए नुकसानदायक हुआ. क्योंकि यादवों ने समाजवादी पार्टी को तो वोट दिया, लेकिन बहुजन समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सपा समर्थन में जहां भी खड़े हुए वहां का वोट बैंक भाजपा के पक्ष में चला गया. यानी समाजवादी पार्टी का यह पुश्तैनी वोट बैंक भाजपा के पक्ष में जाने से अब समाजवादी पार्टी खेमे में डर तो जायज है.मिशन 2022 की तैयारी में जुटी बीजेपी
डर का भाजपा उठा रही फायदाइसी डर को और मजबूत करते हुए सोमवार को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने वाराणसी के मध्यमेश्वर मंडल के हरतीरथ मोहल्ले में जाकर राजेश कुमार यादव के घर पर नाश्ता किया और परिवारजनों से मुलाकात की. इस मोहल्ले में 800 से ज्यादा वोट यादव परिवारों के हैं. यही नहीं शहर दक्षिणी का यह इलाका बीजेपी का गढ़ तो माना जाता है लेकिन मैदागिन, दारानगर, मध्यमेश्वर, हरतीरथ, विशेश्वरगंज, गायघाट, भैरवनाथ समेत तमाम इलाके यादव बाहुल्य क्षेत्र के लिए जाने जाते हैं. इन क्षेत्रों में समाजवादी पार्टी का पुश्तैनी वोट बैंक लंबे वक्त से काबिज है और यही वजह है कि काशी प्रवास पर पहुंचे जेपी नड्डा ने इसी मोहल्ले को चुनकर यादव वोटर्स को अपनी तरफ खींचने का प्रयास किया, जिससे समाजवादी पार्टी के खेमे में हड़कंप मचना जायज है.
मिशन 2022 की तैयारी में जुटी बीजेपी
सपा का दावा- 'कुछ कर ले भाजपा, यादव वोटर्स हमारे साथ'हालांकि जब समाजवादी पार्टी के महानगर अध्यक्ष विष्णु शर्मा से बातचीत की गई तो उनका साफ तौर पर कहना था कि चाहे खाना खा लें या प्रवास कर लें यादवों का वोट बैंक समाजवादी पार्टी के अलावा कहीं जाने वाला नहीं है. लेकिन इन सबके बीच विष्णु ने एक सवाल भी उठा दिया कि बीजेपी को अखिलेश का डर सता रहा है.
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यादव कार्यकर्ता के घर किया नाश्ता.
अखिलेश के प्लान पर नड्डा का पलटवार दरअसल, 27 फरवरी को अखिलेश यादव वाराणसी में थे. अखिलेश यादव 3 दिनों तक काशी प्रवास पर रहे. काशी में रहते हुए जौनपुर, मिर्जापुर का दौरा भी उन्होंने किया. कहीं ना कहीं से अखिलेश का यह काशी प्रवास बीजेपी के खेमे में हलचल मचाने वाला जरूर था. यही वजह है कि काशी प्रवास पर पहुंचे राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अखिलेश के इस प्रवास की काट करने के लिए सबसे पहले सपा के पुश्तैनी वोट बैंक यादव पर ही डोरा डालना शुरू कर दिया. पूरे शहर, महानगर और जिले को छोड़कर इस इलाके के यादव कार्यकर्ता के घर पहुंचकर नड्डा ने यह संदेश दे दिया कि बीजेपी के लिए हर जाति, हर धर्म के लोग बराबर हैं और कार्यकर्ता सर्वोपरि है. जिसके बाद यह सवाल उठना अब जायज है कि आखिर 2022 में यादव वोट बैंक किसकी तरफ जाएगा.
बिगड़ा समीकरण तो फायदा उठाने में जुटी बीजेपी
यूपी में यादव वोट बैंक का गणित इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि आबादी और परसेंटेज के लिहाज से लगभग 15% यादव वोट बैंक हमेशा से समाजवादी पार्टी के साथ ही माना जाता रहा है. लेकिन 2012 में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां समीकरण बदल गए थे. अखिलेश का विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ना शायद उनके पुश्तैनी वोटर्स को नहीं भाया और यादवों ने सपा का साथ छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया. जिसके बाद समाजवादी पार्टी में हड़कंप जरूर मचा. हालांकि आज भी सपा अपने इस वोट बैंक पर एकाधिकार मानती है. लेकिन बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष की तरफ से खेले गए दांव के बाद बीजेपी के यादव कार्यकर्ता खुद को भाग्यशाली मान रहे हैं. उनका कहना है कि भगवान राम जैसे शबरी के घर पहुंचे थे, वैसे ही नड्डा जी उनके घर पहुंच कर एक बड़ा संदेश दे गए हैं. हालांकि बीजेपी नेता धर्म, जाति वाले विपक्षी दलों के आरोपों को मानने को तैयार नहीं है. उनका कहना है कि कहने वाले कहते रहें, लेकिन बीजेपी किसी जाति और धर्म की राजनीति को बढ़ावा नहीं देती, बल्कि सबका साथ, सबका विश्वास जीतने पर भरोसा करती है.
यूपी की राजनीति में अच्छी हिस्सेदारी
यूपी की तमाम ओबीसी जातियों में यादवों की हिस्सेदारी करीब 20% है. यूपी की कुल आबादी में करीब 8 से 9% यादव वोटर ऐसे हैं जो सीधे तौर पर यूपी की राजनीति पर असर डालते हैं. यूपी में पांच बार उनके सीएम रहे हैं. छोटी बड़ी 5 हजार से अधिक जातियों वाले समूह ओबीसी में सबसे ज्यादा सक्रियता यादवों में देखी गई है. यही वजह है कि यादवों पर अपना एकाधिकार जमाने वाली समाजवादी पार्टी के किले में सेंध लगाकर यादवों को अपनी तरफ करने की जुगत में बीजेपी अभी से जुट चुकी है.