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ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में पीएफआई ने जताई नाराजगी, लेटर जारी कर कही यह बात

ज्ञानवापी मामले में कट्टरवादी संगठन PFI की एंट्री हो गई है. PFI ने ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में वाराणसी की जिला कोर्ट के आदेश पर नाराजगी जताई है. पीएफआई ने इसे लेकर एक लेटर जारी किया है.

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ज्ञानवापी मामले पर कट्टरवादी संगठन PFI की एंट्री
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Published : Sep 14, 2022, 1:16 PM IST

वाराणसी: ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी केस में वाराणसी की जिला कोर्ट के आदेश पर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने आपत्ति जताई है. PFI के चेयरमैन ओएमए सलाम ने बयान जारी कर कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के आदेश से अल्पसंख्यक इबादतगाहों को निशाना बनाने के फासीवादी एजेंडे को हौसला मिलेगा. पॉपुलर फ्रंट सदियों पुरानी मस्जिद की रक्षा में मसाजिद कमेटी के संघर्ष का समर्थन करता है. पॉपुलर फ्रंट जिला अदालत के आदेश को हाईकोर्ट में चैलेंज करने के मसाजिद कमेटी के फैसले के साथ खड़ा है.

ओएमए सलाम ने कहा है कि अदालत ने आदेश सुनाते समय पूजा स्थल एक्ट 1991 को नजरअंदाज किया है. इस एक्ट को धार्मिक संपत्तियों पर सांप्रदायिक राजनीति को रोकने के लिए पारित किया गया था. जैसा कि बाबरी मस्जिद के साथ हुआ था. श्रृंगार गौरी याचिका की मंशा ही गलत है. सांप्रदायिक तत्वों ने बुरे उद्देश्य के तहत इसे पेश किया है.

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पीएफआई का लेटर

इसे भी पढ़े-श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी केस में फैसला, जानें कब क्या हुआ

ओएमए सलाम का कहना है कि देश को अब आवश्यकता है कि लोगों के एक वर्ग का अन्य लोगों के धार्मिक स्थलों और संपत्तियों पर दावा करने का खतरनाक रुझान हमेशा के लिए समाप्त हो. दुर्भाग्य से अदालत ने एक तंग नजरी भरा फैसला दिया है. ऐसा लगता है कि याचिका पर सुनवाई करते इस बात को नजरअंदाज कर दिया गया है कि किस तरह से सांप्रदायिक फासीवादियों ने भारतीय समाज में ध्रुवीकरण पैदा करने के लिए दशकों तक बाबरी मस्जिद को इस्तेमाल किया. उसके चलते देश भर में कई निर्दोषों की जान गई और काफी तबाही मची. हालिया फैसले से देश के अन्य हिस्सों में भी अल्पसंख्यक इबादतगाहों पर इसी तरह के झूठे दावे और हमले करने का हौसला मिलेगा.

यह भी पढ़े-सपा नेता आजम खान को दिल का दौरा पड़ा, सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती

वाराणसी: ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी केस में वाराणसी की जिला कोर्ट के आदेश पर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने आपत्ति जताई है. PFI के चेयरमैन ओएमए सलाम ने बयान जारी कर कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के आदेश से अल्पसंख्यक इबादतगाहों को निशाना बनाने के फासीवादी एजेंडे को हौसला मिलेगा. पॉपुलर फ्रंट सदियों पुरानी मस्जिद की रक्षा में मसाजिद कमेटी के संघर्ष का समर्थन करता है. पॉपुलर फ्रंट जिला अदालत के आदेश को हाईकोर्ट में चैलेंज करने के मसाजिद कमेटी के फैसले के साथ खड़ा है.

ओएमए सलाम ने कहा है कि अदालत ने आदेश सुनाते समय पूजा स्थल एक्ट 1991 को नजरअंदाज किया है. इस एक्ट को धार्मिक संपत्तियों पर सांप्रदायिक राजनीति को रोकने के लिए पारित किया गया था. जैसा कि बाबरी मस्जिद के साथ हुआ था. श्रृंगार गौरी याचिका की मंशा ही गलत है. सांप्रदायिक तत्वों ने बुरे उद्देश्य के तहत इसे पेश किया है.

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पीएफआई का लेटर

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ओएमए सलाम का कहना है कि देश को अब आवश्यकता है कि लोगों के एक वर्ग का अन्य लोगों के धार्मिक स्थलों और संपत्तियों पर दावा करने का खतरनाक रुझान हमेशा के लिए समाप्त हो. दुर्भाग्य से अदालत ने एक तंग नजरी भरा फैसला दिया है. ऐसा लगता है कि याचिका पर सुनवाई करते इस बात को नजरअंदाज कर दिया गया है कि किस तरह से सांप्रदायिक फासीवादियों ने भारतीय समाज में ध्रुवीकरण पैदा करने के लिए दशकों तक बाबरी मस्जिद को इस्तेमाल किया. उसके चलते देश भर में कई निर्दोषों की जान गई और काफी तबाही मची. हालिया फैसले से देश के अन्य हिस्सों में भी अल्पसंख्यक इबादतगाहों पर इसी तरह के झूठे दावे और हमले करने का हौसला मिलेगा.

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