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वाराणसी: चाय दुकानों पर लटके ताले तो अड़ीबाजों ने चुना डिजिटल प्लेटफॉर्म

वाराणसी में चाय की दुकानों पर जुटने वाले अड़ीबाजों को लॉकडाउन ने काफी सताया, लेकिन इन अड़ीबाजों ने अब नया तरीका खोज लिया है. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए बनारसियों की अड़ीबाजी लॉकडाउन में भी जारी है.

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Published : Jul 11, 2020, 9:29 PM IST

Updated : Jul 11, 2020, 11:07 PM IST

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वाराणसी में अड़ीबाजों ने चुना डिजिटल प्लैटफॉर्म.

वाराणसी: धर्म नगरी काशी मस्ती और अड़ीबाजों का शहर कहा जाता है. यहां की मशहूर चाय की दुकानों पर लगने वाली अड़ियां पूरे देश और दुनिया में जानी जाती हैं. मशहूर उपन्यासकार और साहित्यकार काशीनाथ सिंह की कृति मोहल्ला अस्सी के फिल्मी रूप में काशी की इस अड़ी को बखूबी दिखाया गया है. अस्सी पर लगने वाली पप्पू की चाय की अड़ी हो या फिर सोनारपुरा पर पल्लू की चाय की अड़ी सभी पर कोरोना ने ताला टांग दिया है. लॉकडाउन की वजह से चाय की भट्ठियों बुझ गईं और अड़ीबाजों की अड़ी भी खत्म हो गई. देश-विदेश की समसामयिक मुद्दों पर होने वाली चर्चा पर भी लगाम लग गई, लेकिन काशी के लोगों ने इस समस्या का डिजिटल समाधान तलाश लिया. चाय की भट्ठियों के बुझने के बाद अड़ीबाजों ने सुबह-शाम अपने घर के बेडरूम से ही चाय की अड़ियों को डिजिटल तरीके से लगाना शुरू कर दिया. इसकी तारीफ खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने वर्चुअल संवाद में की है.

क्या है अड़ीबाजी ?
दरअसल, काशी की गलियों मोहल्लों और सड़कों पर चाय की दुकानों पर लगने वाले बुद्धिजीवियों के जमघट को अड़ीबाजी के नाम से जाना जाता है. काफी पुराने वक्त से काशी के अस्सी इलाके में मशहूर पप्पू की चाय की दुकान पर बीएचयू विद्यापीठ जैसे विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर आते थे. इसके अलावा देश के नामचीन साहित्यकार संगीतकार और बुद्धिजीवियों का जुटान होता रहा है. चाय के साथ देश-विदेश में हो रही वर्तमान घटनाओं पर चर्चा और व्यंग के साथ अपने ही अंदाज में बातों को करना ही काशी की अड़ी है.

काशी में अड़ीबाजों ने चुना डिजिटल प्लेटफॉर्म.

लॉकडाउन में बुझ गईं भट्ठियां
हालांकि, जब लॉकडाउन हुआ तब चाय की दुकानों पर ताले लग गए और अड़ीबाजों का अड्डा भी उनसे छिन गया, जिसके बाद धीरे-धीरे अपनी जीवनशैली में शामिल अड़ीबाजी के शौकीनों ने इसका तरीका डिजिटल चाय की अड़ी के रूप में निकाला. होटल कारोबार से जुड़े अरविंद मिश्रा ने डिजिटल अड़ी को मूर्त रूप दिया. फेसबुक पर चाय की गरमा गरम प्याली की तस्वीर के साथ डिजिटल अड़ीबाजी का पेज बन गया. देखते ही देखते लोग इससे जुड़ते गए और सुबह 9:00 बजे और शाम 6:00 बजे घर के बेडरूम से ही चाय की गरमा गरम प्याली के साथ अड़ीबाजों की अड़ी लगने लगी. चीन की गुस्ताखी हो या फिर भारत की चीन के प्रति कोई कार्रवाई, पाकिस्तान में चल रहा कोरोना वायरस का कहर हो या भारत में कोरोना की वजह से चल रहे राजनैतिक ड्रामे की तस्वीर, हर विषय पर इन अड़ीबाजों ने घर बैठे डिजिटल तरीके से चर्चा शुरू कर दी.

पीएम ने की तारीफ
काशी का जीवंत रूप भले ही चाय की भट्ठियों के बुझने के बाद कुछ दिन से न दिखा हो, लेकिन उसे डिजिटल युग में अपने तरीके से जिंदा रखने का काशीवासियों का यह प्रयास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बेहद ही पसंद आया. बीते दिनों अपने वर्चुअल संवाद में काशीवासियों के इस प्रयास की उन्होंने जमकर तारीफ की. डिजिटल चाय की आईडी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कमेंट ने इन अड़ीबाजों को और भी उत्साहित कर दिया और अब अड़ीबाजी से न सिर्फ बनारस, बल्कि देश-विदेश के कोने-कोने से भी लोग जुड़ना शुरू हो चुके हैं. ये लोग हर देशी-विदेशी मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया देकर बनारस की पहचान अड़ीबाजी को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जिंदा रख रहे हैं.

वाराणसी: धर्म नगरी काशी मस्ती और अड़ीबाजों का शहर कहा जाता है. यहां की मशहूर चाय की दुकानों पर लगने वाली अड़ियां पूरे देश और दुनिया में जानी जाती हैं. मशहूर उपन्यासकार और साहित्यकार काशीनाथ सिंह की कृति मोहल्ला अस्सी के फिल्मी रूप में काशी की इस अड़ी को बखूबी दिखाया गया है. अस्सी पर लगने वाली पप्पू की चाय की अड़ी हो या फिर सोनारपुरा पर पल्लू की चाय की अड़ी सभी पर कोरोना ने ताला टांग दिया है. लॉकडाउन की वजह से चाय की भट्ठियों बुझ गईं और अड़ीबाजों की अड़ी भी खत्म हो गई. देश-विदेश की समसामयिक मुद्दों पर होने वाली चर्चा पर भी लगाम लग गई, लेकिन काशी के लोगों ने इस समस्या का डिजिटल समाधान तलाश लिया. चाय की भट्ठियों के बुझने के बाद अड़ीबाजों ने सुबह-शाम अपने घर के बेडरूम से ही चाय की अड़ियों को डिजिटल तरीके से लगाना शुरू कर दिया. इसकी तारीफ खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने वर्चुअल संवाद में की है.

क्या है अड़ीबाजी ?
दरअसल, काशी की गलियों मोहल्लों और सड़कों पर चाय की दुकानों पर लगने वाले बुद्धिजीवियों के जमघट को अड़ीबाजी के नाम से जाना जाता है. काफी पुराने वक्त से काशी के अस्सी इलाके में मशहूर पप्पू की चाय की दुकान पर बीएचयू विद्यापीठ जैसे विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर आते थे. इसके अलावा देश के नामचीन साहित्यकार संगीतकार और बुद्धिजीवियों का जुटान होता रहा है. चाय के साथ देश-विदेश में हो रही वर्तमान घटनाओं पर चर्चा और व्यंग के साथ अपने ही अंदाज में बातों को करना ही काशी की अड़ी है.

काशी में अड़ीबाजों ने चुना डिजिटल प्लेटफॉर्म.

लॉकडाउन में बुझ गईं भट्ठियां
हालांकि, जब लॉकडाउन हुआ तब चाय की दुकानों पर ताले लग गए और अड़ीबाजों का अड्डा भी उनसे छिन गया, जिसके बाद धीरे-धीरे अपनी जीवनशैली में शामिल अड़ीबाजी के शौकीनों ने इसका तरीका डिजिटल चाय की अड़ी के रूप में निकाला. होटल कारोबार से जुड़े अरविंद मिश्रा ने डिजिटल अड़ी को मूर्त रूप दिया. फेसबुक पर चाय की गरमा गरम प्याली की तस्वीर के साथ डिजिटल अड़ीबाजी का पेज बन गया. देखते ही देखते लोग इससे जुड़ते गए और सुबह 9:00 बजे और शाम 6:00 बजे घर के बेडरूम से ही चाय की गरमा गरम प्याली के साथ अड़ीबाजों की अड़ी लगने लगी. चीन की गुस्ताखी हो या फिर भारत की चीन के प्रति कोई कार्रवाई, पाकिस्तान में चल रहा कोरोना वायरस का कहर हो या भारत में कोरोना की वजह से चल रहे राजनैतिक ड्रामे की तस्वीर, हर विषय पर इन अड़ीबाजों ने घर बैठे डिजिटल तरीके से चर्चा शुरू कर दी.

पीएम ने की तारीफ
काशी का जीवंत रूप भले ही चाय की भट्ठियों के बुझने के बाद कुछ दिन से न दिखा हो, लेकिन उसे डिजिटल युग में अपने तरीके से जिंदा रखने का काशीवासियों का यह प्रयास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बेहद ही पसंद आया. बीते दिनों अपने वर्चुअल संवाद में काशीवासियों के इस प्रयास की उन्होंने जमकर तारीफ की. डिजिटल चाय की आईडी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कमेंट ने इन अड़ीबाजों को और भी उत्साहित कर दिया और अब अड़ीबाजी से न सिर्फ बनारस, बल्कि देश-विदेश के कोने-कोने से भी लोग जुड़ना शुरू हो चुके हैं. ये लोग हर देशी-विदेशी मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया देकर बनारस की पहचान अड़ीबाजी को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जिंदा रख रहे हैं.

Last Updated : Jul 11, 2020, 11:07 PM IST
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