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भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की जयंती पर लोगों ने अर्पित की श्रद्धांजलि

भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की जयंती पर लोगों ने उन्हें नम आंखों से याद किया और श्रद्धांजलि अर्पित की. इस दौरान वाराणसी में उनकी दरगाह फातमान स्थित उनके रौजे पर लोगो ने उन्हें अकीदत पेश की.

बिस्मिल्लाह खां की जयंती पर लोगों ने अर्पित की श्रद्धांजलि
बिस्मिल्लाह खां की जयंती पर लोगों ने अर्पित की श्रद्धांजलि
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Published : Mar 21, 2021, 5:58 PM IST

वाराणसी: भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की जयंती पर देश-दुनिया में लोगों ने अपने-अपने तरीके से उन्हें याद किया. इसी क्रम में वाराणसी में उनकी जयंती पर रविवार को दरगाह फातमान स्थित उनके रौजे पर लोगो ने उन्हें अकीदत पेश की.

प्रतिमा लगवाने की उठी मांग

इस दौरान उस्ताद बिस्मिल्लाह खां फाउंडेशन के प्रवक्ता शकील अहमद जादूगर ने कहा, 'खान साहब भारत रत्न के साथ एक महान संगीतज्ञ भी थे. इतने महान कलाकार होने के बाद भी उनका जीवन सादगी के साथ बीता, वो हर किसी के लिए प्रेरणादाई हैं.' अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि कहने को कई विधायक और मंत्री जिले में है, मगर उस्ताद की कब्र पर अकीदत का फूल चढ़ाने वाला कोई नहीं है. उन्होंने सरकार से अपील की कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की प्रतिमा को कैंट स्टेशन पर स्थापित किया जाए, साथ ही बनारस में संगीत एकेडमी खोली जाए. जिससे आने वाली युवा पीढ़ी भी उन्हें याद रखेगी.

शहनाई का पर्याय थे उस्ताद बिस्मिल्‍लाह खां

इसी क्रम में कांग्रेस पार्टी के पूर्व विधायक अजय राय भी उस्ताद के रौजे पर पहुंचे और उन्हें अकीदत के फूल चढ़ाए. उन्होंने कहा कि बिस्मिल्‍लाह खां शहनाई का पर्याय थे. दशकों दशक जब भी शहनाई गूंजेगी तो, बिस्मिल्लाह खां ही याद आएंगे. क्योंकि बिस्मिल्लाह खां जैसे फनकार सदियों में जन्म लेते हैं. उनमें बनारसी ठसक और मस्‍ती, बनारसीपन, फक्कड़ी मिजाज और गंगा जमुनी की जीवंत तहजीब से पूरी तरह से भरी थी. मुस्लिम समुदाय में जन्‍मे बिस्मिल्‍लाह खां मंदिर में रियाज करते थे और सरस्‍वती मां की पूजा करते थे. वो बनारस की पहचान थे, लेकिन दुर्भाग्य देखिये ऐसे कोहिनूर की जयंती पर उनके दरगाह पर सरकार का कोई भी जनप्रतिनिधि नहीं आया. इस महान फनकार के जन्‍मदिवस पर हम श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.

2006 में हुआ था निधन

बता दें कि 21 अगस्त 2006 को लंबी बीमारी के बाद उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का निधन हुआ था. उस समय देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की मौजूदगी में उन्हें 21 तोपों की सलामी देने के बाद दरगाह फातमान में सुपुर्दे खाक किया गया था. उस दौरान प्रशासनिक अधिकारी ही नहीं, जाने-माने संगीतज्ञ और तमाम हस्तियों ने उस्ताद के दरगाह पर अपनी अकीदत पेश की थी.

वाराणसी: भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की जयंती पर देश-दुनिया में लोगों ने अपने-अपने तरीके से उन्हें याद किया. इसी क्रम में वाराणसी में उनकी जयंती पर रविवार को दरगाह फातमान स्थित उनके रौजे पर लोगो ने उन्हें अकीदत पेश की.

प्रतिमा लगवाने की उठी मांग

इस दौरान उस्ताद बिस्मिल्लाह खां फाउंडेशन के प्रवक्ता शकील अहमद जादूगर ने कहा, 'खान साहब भारत रत्न के साथ एक महान संगीतज्ञ भी थे. इतने महान कलाकार होने के बाद भी उनका जीवन सादगी के साथ बीता, वो हर किसी के लिए प्रेरणादाई हैं.' अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि कहने को कई विधायक और मंत्री जिले में है, मगर उस्ताद की कब्र पर अकीदत का फूल चढ़ाने वाला कोई नहीं है. उन्होंने सरकार से अपील की कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की प्रतिमा को कैंट स्टेशन पर स्थापित किया जाए, साथ ही बनारस में संगीत एकेडमी खोली जाए. जिससे आने वाली युवा पीढ़ी भी उन्हें याद रखेगी.

शहनाई का पर्याय थे उस्ताद बिस्मिल्‍लाह खां

इसी क्रम में कांग्रेस पार्टी के पूर्व विधायक अजय राय भी उस्ताद के रौजे पर पहुंचे और उन्हें अकीदत के फूल चढ़ाए. उन्होंने कहा कि बिस्मिल्‍लाह खां शहनाई का पर्याय थे. दशकों दशक जब भी शहनाई गूंजेगी तो, बिस्मिल्लाह खां ही याद आएंगे. क्योंकि बिस्मिल्लाह खां जैसे फनकार सदियों में जन्म लेते हैं. उनमें बनारसी ठसक और मस्‍ती, बनारसीपन, फक्कड़ी मिजाज और गंगा जमुनी की जीवंत तहजीब से पूरी तरह से भरी थी. मुस्लिम समुदाय में जन्‍मे बिस्मिल्‍लाह खां मंदिर में रियाज करते थे और सरस्‍वती मां की पूजा करते थे. वो बनारस की पहचान थे, लेकिन दुर्भाग्य देखिये ऐसे कोहिनूर की जयंती पर उनके दरगाह पर सरकार का कोई भी जनप्रतिनिधि नहीं आया. इस महान फनकार के जन्‍मदिवस पर हम श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.

2006 में हुआ था निधन

बता दें कि 21 अगस्त 2006 को लंबी बीमारी के बाद उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का निधन हुआ था. उस समय देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की मौजूदगी में उन्हें 21 तोपों की सलामी देने के बाद दरगाह फातमान में सुपुर्दे खाक किया गया था. उस दौरान प्रशासनिक अधिकारी ही नहीं, जाने-माने संगीतज्ञ और तमाम हस्तियों ने उस्ताद के दरगाह पर अपनी अकीदत पेश की थी.

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