वाराणसी: पाकिस्तान का जिक्र आते ही जहन में कई सारे ऐसे सवाल उठते हैं, जो आज भी लोगों को झकझोर कर रख देते हैं. लेकिन, हैरान करने वाली बात तो यह है कि काशी में पाकिस्तान की एक ऐसी अमानत मौजूद है, जिसे लोग पूजते हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं काशी में विराजमान पाकिस्तानी महादेव (Pakistani Mahadev Varanasi) की. इनको लेकर कहा जाता है कि पाकिस्तान के बंटवारे के समय महादेव काशी में आकर विराजमान हो गए थे. क्या है पाकिस्तानी महादेव की कहानी, पढ़ें हमारी खास रिपोर्ट में.
काशी का जिक्र आते ही महादेव के नाम का जिक्र होना सहज माना जाता है. ऐसे में काशी में मौजूद हर शिवालय की अपनी अलग कहानी है. ऐसे ही अलग कहानी संजोए हुए हैं पाकिस्तानी महादेव. आज-कल पाकिस्तानी महादेव लोगों की आस्था का केंद्र बने हुए हैं. कहा जाता है कि 1947 में हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे के समय पूरा देश एक अलग विरह में जल रहा था. ऐसे में लाहौर से दो हीरा व्यापारियों ने वहां स्थापित शिवलिंग को काशी के शीतला घाट पर विसर्जित करने के लिए सोचा. जहां लोगों ने विसर्जन करने से रोका और उन्हें मां गंगा के तट पर स्थापित कर दिया. तभी से शिवलिंग का नाम पाकिस्तानी महादेव रख दिया गया. आम दिनों के साथ सावन में पाकिस्तानी महादेव का खासा महत्व माना जाता है. सावन के सोमवार में भक्त यहां आकर विधि-विधान से बाबा का पूजन-अर्चन करते हैं. इसके साथ ही अलग-अलग सोमवार को बाबा का श्रृंगार किया जाता है.
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क्या है पाकिस्तानी महादेव की मान्यता
विनय तिवारी ने बताया कि मां शीतला घाट पर पाकिस्तानी महादेव का अति प्राचीन मंदिर विराजमान है. जैसे कि मान्यता (pakistani mahadev recognition) है कि सन 1947 में जब हिंदुस्तान-पाकिस्तान का बंटवारा हो रहा था, तब किसी भक्त द्वारा इनको पाकिस्तान के लाहौर से काशी लाया गया और यहां पर स्थापित कर दिया गया. तब से पाकिस्तानी महादेव का यह शिवलिंग यहां पर विराजमान है.
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