वाराणसी: हरतालिका तीज (Hartalika Teej) 9 सितंबर गुरुवार को पूरे देश में मनाया गया. हरतालिका तीज सुहागन महिलाओं के लिए अहम पर्व है. इस दिन सुहागन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं, जबकि कुंवारी कन्याएं अच्छा वर पाने के लिए भगवान शिव (Lord Shiv) और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा करती हैं. इस पर्व की छठा तब और निराली लगती है, जब शाम पूरवइया गीतों से सजती है. इस दिन कजरी गीत गाने की विशेष परंपरा है. इस पर्व के अवसर पर प्रख्यात बनारस घराने की ठुमरी गायिका और भारत रत्न शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां (Shehnai player Ustad Bismillah Khan) की मानस पुत्री सोमा घोष भी कहती हैं कि हरतालिका तीज पर महिलाएं लोकगीत (Folk Song), कजरी (Kajri) और ठुमरी के जरिए अपने दिल की बात कहती हैं. महिलाएं अपने पति से मेंहदी लाने का हठ करती हैं. वो कैसे हठ करती हैं ये बनारस घराने की शास्त्रीय-उपशास्त्रीय गायिका पद्मश्री डॉ. सोमा घोष (Padmashree Dr. Soma Ghosh) ने एक कजरी के जरिए बयां किया है.
बनारस समेत पूरे देश में आज हरितालिका तीज पर्व की धूम है. तीज पर महिलाएं व्रत रखने के साथ बाजार में खरीदारी करती हैं. पिया को रिझाने के लिए हाथों में मेहंदी भी रचाती हैं. पति की लंबी आयु के लिए पत्नी निर्जला व्रत रखती है. शाम होते ही विभिन्न शिवालयों में जाकर कथा सुनती हैं और मां पार्वती के संग बाबा भोलेनाथ को खुश करने के लिए पूजा-अर्चना करती हैं. हरतालिका तीज का व्रत बेहद कठिन व्रत माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि व्रत रखने वाली महिलाओं को रात को नहीं सोना चाहिए. व्रत के दौरान पूरी रात जागरण किया जाता है. इस दौरान भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा और अर्चना की जाती है. इस अवसर पर पद्मश्री सोमा घोष ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान कजरी गीत गाया.
व्रत नियम
हरतालिका व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है. इस व्रत के दौरान महिलाएं सुबह से लेकर अगले दिन सुबह सूर्योदय तक जल ग्रहण तक नहीं कर सकतीं. महिलाएं 24 घंटे तक बिना अन्न और जल के हरतालिका तीज का व्रत रहती हैं. इस व्रत को कुंवारी लड़कियां और शादीशुदा महिलाएं दोनों ही कर सकती हैं.
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क्या है मान्यता
मान्यता है कि इस व्रत को जब भी कोई लड़की या महिला एक बार शुरू कर देती है तो हर साल इस व्रत को पूरे नियम के साथ करना पड़ता है. इस व्रत को आप बीच में नहीं छोड़ सकती हैं. इस दिन महिलाएं नए कपड़े पहनकर सोलह शृंगार करती हैं. वहीं आसपास की सभी व्रती महिलाएं रात भर भजन गाकर रात्रि जागरण करती हैं.
शास्त्रों के अनुसार, हिमवान की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए बालकाल में हिमालय पर्वत पर अन्न त्याग कर घोर तपस्या शुरू कर दी थी. इस बात पार्वती जी के माता-पिता काफी परेशान थे. तभी एक दिन नारद जी राजा हिमवान के पास पार्वती जी के लिए भगवान विष्णु की ओर से विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचे. माता पार्वती ने यह शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया. पार्वती जी ने अपनी एक सखी से कहा कि वह सिर्फ भोलेनाथ को ही पति के रूप में स्वीकार करेंगी. सखी की सलाह पर पार्वती जी ने घने वन में एक गुफा में भगवान शिव की अराधना की. भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी से शिवलिंग बनकर विधिवत पूजा की और रातभर जागरण किया. पार्वती जी के तप से खुश होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था.
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