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गधे की आवाज के साथ शुरू होता है 'महामूर्खों का मेला', शिरकत करते हैं देश-विदेश से लोग - महामूर्ख मेला वाराणसी

वाराणसी के गंगा घाट पर आयोजित होता है महामूर्खों का मेला. राजेंद्र प्रसाद घाट पर होने वाला यह आयोजन ओपन थिएटर के लिए जाना जाता है. महामूर्खों के मेले में दुल्हन के रूप में दाढ़ी वाला मर्द और दूल्हे के रूप में बिल्कुल साफ-सुथरे चेहरे वाली महिला पूर्वांचल की परंपरा के अनुरूप विवाह की रस्म में बैठते हैं.

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महामूर्खों का मेला
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Published : Apr 2, 2022, 3:40 PM IST

वाराणसी: बनारस जिसके नाम में ही रस शब्द समाहित हो उस शहर के विविध आयोजन किस तरह से अलग-अलग रंग और रस से भरे होंगे, इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता है. ऐसा ही रस से भरा एक आयोजन गंगा घाट में संपन्न हुआ, जिसे महामूर्ख मेला के नाम से जाना जाता है. यह आयोजन 1 अप्रैल मूर्ख दिवस के दिन होने वाला काशी के मशहूर पुराने कार्यक्रमों में से एक है.

राजेंद्र प्रसाद घाट पर होने वाला यह आयोजन ओपन थिएटर के लिए जाना जाता है, क्योंकि घाट की सीढ़ियां थिएटर के रूप में मौजूद भारी भीड़ को नियंत्रित करने का काम करती हैं. इस आयोजन को 54 सालों से शनिवार गोष्ठी संस्था की ओर से आयोजित किया जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि कार्यक्रम की शुरुआत गधे की आवाज के साथ कलाकार करते हैं और फिर एक अनोखी शादी संपन्न होती है.

महामूर्खों का मेला
महामूर्खों का मेला

यह भी पढ़ें- देखिए मधुमक्खियों से जान बचाने को 50 फुट ऊंची पानी की टंकी से कूदने जा रहे युवक की कैसे बची जान


इसमें दुल्हन के रूप में दाढ़ी वाला मर्द और दूल्हे के रूप में बिल्कुल साफ-सुथरे चेहरे वाली महिला पूर्वांचल की परंपरा के अनुरूप विवाह की रस्म में बैठते हैं. अगड़म-बगड़म मंत्र के साथ शादी संपन्न होती है और फिर तुरंत ही टूट जाती है. आयोजन करने वालों का मानना है कि जीवन में मूर्खता की शुरुआत ही शादी से होती है. इसलिए इस आयोजन में शादी के जरिए मूर्खता का संदेश देने का काम होता है.

महामूर्खों का मेला

बुद्धिजीवियों के शहर बनारस में होने वाले इस महामूर्ख मेले में देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग शिरकत करने के लिए काशी पहुंचते हैं. यहां अलग-अलग हिस्से से कई नामचीन कवि और शायर भी पहुंचते हैं, जो देर रात तक महफिल में अपनी कविताओं और शेरो-शायरी से शमां बांधते हैं और हास्य-व्यंग्य का तड़का लगाते हैं.

महामूर्खों का मेला
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वाराणसी: बनारस जिसके नाम में ही रस शब्द समाहित हो उस शहर के विविध आयोजन किस तरह से अलग-अलग रंग और रस से भरे होंगे, इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता है. ऐसा ही रस से भरा एक आयोजन गंगा घाट में संपन्न हुआ, जिसे महामूर्ख मेला के नाम से जाना जाता है. यह आयोजन 1 अप्रैल मूर्ख दिवस के दिन होने वाला काशी के मशहूर पुराने कार्यक्रमों में से एक है.

राजेंद्र प्रसाद घाट पर होने वाला यह आयोजन ओपन थिएटर के लिए जाना जाता है, क्योंकि घाट की सीढ़ियां थिएटर के रूप में मौजूद भारी भीड़ को नियंत्रित करने का काम करती हैं. इस आयोजन को 54 सालों से शनिवार गोष्ठी संस्था की ओर से आयोजित किया जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि कार्यक्रम की शुरुआत गधे की आवाज के साथ कलाकार करते हैं और फिर एक अनोखी शादी संपन्न होती है.

महामूर्खों का मेला
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इसमें दुल्हन के रूप में दाढ़ी वाला मर्द और दूल्हे के रूप में बिल्कुल साफ-सुथरे चेहरे वाली महिला पूर्वांचल की परंपरा के अनुरूप विवाह की रस्म में बैठते हैं. अगड़म-बगड़म मंत्र के साथ शादी संपन्न होती है और फिर तुरंत ही टूट जाती है. आयोजन करने वालों का मानना है कि जीवन में मूर्खता की शुरुआत ही शादी से होती है. इसलिए इस आयोजन में शादी के जरिए मूर्खता का संदेश देने का काम होता है.

महामूर्खों का मेला

बुद्धिजीवियों के शहर बनारस में होने वाले इस महामूर्ख मेले में देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग शिरकत करने के लिए काशी पहुंचते हैं. यहां अलग-अलग हिस्से से कई नामचीन कवि और शायर भी पहुंचते हैं, जो देर रात तक महफिल में अपनी कविताओं और शेरो-शायरी से शमां बांधते हैं और हास्य-व्यंग्य का तड़का लगाते हैं.

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