वाराणसी : माना जाता है कि दीपावली के बाद पर्वों की लंबी श्रृंखला खत्म होती है और फिर होली से त्योहार पुनः शुरू होते हैं, लेकिन काशी अविनाशी है और यहां त्यौहार कभी खत्म नहीं होते. दीपावली के बाद काशी में अन्नकूट पर्व की धूम रही. अन्नकूट का यह पर्व काशी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि वाराणसी ही एक ऐसी जगह है, जहां माता अन्नपूर्णा स्वयं विराजमान हैं. मान्यता है कि मां अन्नपूर्णा से भिक्षा लेकर भगवान शिव पूरे ब्रह्मांड के लोगों का पेट भरते हैं. इसी मान्यता के अनुरूप काशी में अन्नकूट का पर्व मनाया गया. श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में एक तरफ जहां 21 कुंतल का छप्पन भोग तैयार कर लड्डू का मंदिर तैयार किया गया वहीं माता अन्नपूर्णा मंदिर में भी कुल 511 कुंतल मिष्ठान का भोग लगा. दोनों ही मंदिरों में लड्ड के मंदिर बनाकर देव विग्रह तैयार किए गए.
26 कुंतल लड्डू से तैयार हुआ मंदिर
मंगलवार को काशी के हर मंदिर में अन्नकूट पर्व मनाया गया. सबसे ज्यादा उल्लास विश्वनाथ मंदिर और अन्नपूर्णा मंदिर में देखने को मिला. अन्नपूर्णा मंदिर में तो एक लंबी चौड़ी दीवार ही लड्डू से सजा दी गई. दीवार ही अकेले 21 कुंतल लड्डू से सजाई गई. जबकि मंदिर में लगभग 5 कुंतल लड्डू इस्तेमाल किए गए. विश्वनाथ धाम में 8 कुंतल लड्डू का प्रयोग कर मंदिर तैयार किया गया.
56 प्रकार के पकवानों से भोग लगाने की है परंपरा
अन्नकूट महोत्सव के दिन मोदक से काशी के सभी मंदिरों और उनके शिखर को सजाया जाता है. इस पर्व पर बाबा विश्वनाथ मंदिर परिसर के साथ माता अन्नपूर्णा को 56 तरह के पकवान का भोग लगाया गया. मान्यता है कि इस भोग से प्रसन्न होकर भगवान वर्ष भर भक्तों को समृद्धि प्रदान करते हैं.
माता अन्नपूर्णा ने भोलेनाथ को दिया था आशीर्वाद
मान्यता यह भी है कि आज ही के दिन काशी में वास के लिए जब भगवान शंकर पहुंचे थे तब उन्होंने भिक्षा मांगकर माता अन्नपूर्णा से अपना और काशी वासियों का पेट भरा था. मां ने देवाधि देव महादेव को यह आशीर्वाद दिया कि अब काशी में कभी कोई भूखा नहीं सोएगा. इसी मान्यता के अनुसार सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा को निभाया जा रहा है.
दूरदराज से आए लोगों का लगता है जमावड़ा
खास बात यह है कि इस अद्भुत नजारे का दर्शन करने और इस खास उत्सव का हिस्सा बनने के लिए काशी ही नहीं, बल्कि दूर दूर से लोग बनारस पहुंचे हैं. कोलकाता के अलावा दक्षिण भारत से बड़ी संख्या में लोगों का हुजूम काशी में उमड़ा है. विश्वनाथ मंदिर से जुड़े लोगों का कहना है कि इस परंपरा को विस्तार तब और मिला जब अन्नकूट महोत्सव के साथ गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई और इस खुशी में काशी के देवालयों में 56 प्रकार के भोग लगाकर ईश्वर को प्रसन्न करने साथ ही सुख, शांति और समृद्धि की कामना के लिए लोगों ने सैकड़ों वर्ष पुरानी इस परंपरा को और आगे बढ़ाया.
लड्डू के मंदिर का अपना ही महत्व
काशी ही एक यह ऐसा स्थान है, जहां लड्डू का मंदिर तैयार किया जाता है. इसके पीछे मान्यता है कि काशी अन्नपूर्णा की नगरी है और अन्नपूर्णा का मंदिर भक्तों के पेट भरने का स्थान माना जाता है. यही वजह है कि बाबा विश्वनाथ के मंदिर से लेकर माता अन्नपूर्णा के मंदिर के गर्भ गृह तक लड्डू का मंदिर और शिखर तैयार होता है. उसमें ही भगवान को स्थापित करते हुए वर्ष भर धन-धान्य से परिपूर्ण रहने का आशीर्वाद लिया जाता है.
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