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दुर्गा पूजा न होने से बनारस में मायूसी, कारोबारियों को लगी करोड़ों की चपत - durga puja during corona period

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में इस साल दुर्गा पूजा को लेकर कोई तैयारी नहीं की जा रही है. कोरोना के चलते इस बार कहीं पर भी कोई पूजा पंडाल बनाने की अनुमति नहीं मिल सकी है. ऐसे में दूर्गा पूजा की तैयारी में लगे तमाम कारोबारियों को इस बार करोड़ों की चपत लगने वाली है.

नहीं मिली पंडाल लगाने की मंजूरी.
नहीं मिली पंडाल लगाने की मंजूरी.
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Published : Oct 10, 2020, 8:54 PM IST

वाराणसी: काशी नगरी में शक्ति की आराधना का एक अलग रूप दिखाई देता है, क्योंकि शारदीय नवरात्र के मौके पर जिले में बनाए जाने वाले पूजा पंडाल और यहां होने वाली दुर्गा पूजा 'मिनी कोलकाता' के नाम से जानी जाती है. हर साल 350 से ज्यादा रजिस्टर्ड पूजा पंडालों में मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा की स्थापना होती है, लेकिन इस बार कोविड-19 की वजह से न पूजा हो रही है और न ही पंडाल बनाए जा रहे हैं. हर साल सड़कों पर जगमगाती बिजली की झालरों और मां के भजनों से गूंजने वाले रास्ते इस बार सुनसान दिखाई देंगे, क्योंकि यूपी सरकार ने भले ही पूजा पंडालों की स्थापना और दुर्गा पूजा की अनुमति शर्तों के साथ दी है, लेकिन जिले में बढ़ रहे कोविड-19 मामलों की वजह से प्रशासन ने न पंडाल बनाने की अनुमति दी है और न ही पूजा करने की. यही वजह है कि इस बार हजारों परिवारों को करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा.

दुर्गा पूजा के लिए नहीं मिली पंडाल लगाने की मंजूरी.

नहीं मिली पूजा पंडाल की अनुमति
वाराणसी में 350 से ज्यादा रजिस्टर्ड दुर्गा पूजा पंडाल हर साल स्थापित किए जाते हैं. वहीं करीब 35 से ज्यादा दुर्गा पूजा समितियां ऐसी हैं, जो काफी पुराने वक्त से दुर्गा पूजा संपन्न करवा रही हैं और भव्यता के साथ बनारस ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल में इनकी एक अलग पहचान है. इनमें से एक है वाराणसी दुर्गोत्सव समिति, दरअसल बनारस की सबसे पुरानी दुर्गा पूजा होने की वजह से यहां का उत्सव बहुत ही भव्यता के साथ होता है. बंगाली परिवारों की तरफ से शुरू हुई इस दुर्गा पूजा का इस बार 99वां वर्ष है, लेकिन आयोजन समिति के लोगों में मायूसी है. इसके पीछे की वजह यह कि न ही पूजा पंडाल निर्मित हुआ है और न ही प्रतिमा स्थापना की इजाजत मिली है. इसी वजह से पूजा समितियों में निराशा है. इस बार सिर्फ कलश स्थापना कर पूजा किए जाने की बात पूजा समिति से जुड़े लोग कर रहे हैं. हालांकि प्रयास अभी जारी है और कोशिश है कि छोटी प्रतिमा बैठाने की ही अनुमति मिल जाए, जिससे कि न परंपरा टूटे और न ही लोगों का उत्साह कम हो.

कोरोना के चलते अनुमति नहीं
पूजा समिति के अलावा वाराणसी के हथुआ मार्केट इलाके में होने वाली प्रीमियर ब्वॉज क्लब की दुर्गा पूजा, ईगल क्लब, काशी दुर्गोत्सव समिति, सनातन धर्म इंटर कॉलेज में होने वाले भव्य दुर्गा पूजा समेत सार्वजनिक दुर्गोत्सव समिति टाउनहॉल में होने वाली दुर्गा पूजा पुरानी और भव्यता के साथ संपन्न होने वाली दुर्गा पूजा बनारस में मानी जाती है, लेकिन इस बार कहीं भी आयोजन होगा, इसे लेकर संशय बना हुआ है. हालांकि जिलाधिकारी ने फोन पर हुई बातचीत में यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी तरह की कोई अनुमति पूजा समितियों को नहीं मिलने जा रही है. डीएम ने जानकारी देते हुए बताया कि न पूजा पंडाल बनाए जाएंगे और न ही प्रतिमा स्थापना की अनुमति होगी. अगर लोग परंपरा का निर्वहन करना चाहें तो वे मानक के अनुरूप कर सकते हैं, लेकिन भीड़ इकट्ठा नहीं करनी है.

पूजा पंडाल बनाने वाले मायूस

दुर्गा पूजा न होने की वजह से वाराणसी में 1000 से ज्यादा परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. दुर्गा प्रतिमा बनाने वाले कारीगर तो पहले ही मायूस हैं, क्योंकि किसी को दुर्गा प्रतिमा तैयार करने का ऑर्डर ही नहीं मिला था. इसके अलावा जिले के सबसे बड़े और पुराने टेंट और पंडाल कारोबारी कानू बाबू डेकोरेटर के यहां भी मायूसी है. कारोबारी का कहना है कि हर साल 250 से ज्यादा मजदूर पश्चिम बंगाल से सिर्फ पूजा पंडाल बनाने के लिए बुलाए जाते थे. 6 महीना पहले से ही पंडाल बनाने की शुरुआत हो जाती थी, लेकिन इस बार न अनुमति मिली और न ही एक भी मजदूर कोलकाता से यहां आया. इस वजह से करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है. इसकी बड़ी वजह यह है कि वाराणसी की लगभग 60 फीसद दुर्गा पूजा की जिम्मेदारी कानू बाबू डेकोरेटर्स को ही मिली हुई है. पूजा पंडाल बनाने से लेकर अन्य तैयारियां इनके जिम्मे होती है, लेकिन इस बार न पंडाल बने और न ही इनके साथ जुड़कर काम करने वाले सैकड़ों परिवारों को कोई रोजगार मिला.

हजारों परिवारों के लिए मुश्किल भरा दौर
वहीं पूजा पंडालों में सबसे महत्वपूर्ण रोल निभाने वाले बिजली और साउंड कारीगर भी मायूस हैं. बनारस में अधिकांश पूजा पंडालों में गौतम साउंडस बिजली सजावट से लेकर अन्य सारे अरेंजमेंट करते हैं, लेकिन इस बार एक भी काम इनके जिम्मे नहीं आया है. इन लोगों का साफ तौर पर कहना है कि दुर्गा पूजा वाराणसी में होने का मतलब है कि एक हजार से ज्यादा परिवारों को रोजगार मिलना, लेकिन इस बार करोड़ों से ज्यादा का नुकसान जिले में अकेले दुर्गा पूजा न होने की वजह से हो रहा है, जिसके चलते हजारों परिवार प्रभावित हो रहे हैं.

महत्वपूर्ण बातें-

  • वाराणसी में 350 रजिस्टर्ड दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना होती है.
  • लगभग 75 से ज्यादा बड़े दुर्गापूजा पंडालों का निर्माण वाराणसी में होता है.
  • एक पंडाल तैयार करने में टेंट कारोबारी, बिजली सजावट कारोबारी, कपड़ा कारोबारी, बांस और बल्लियों के कारोबारी समेत लगभग 10 से ज्यादा कारोबारियों की हिस्सेदारी होती है.
  • हर साल वाराणसी में दुर्गा पूजा पंडाल बनाने के लिए लगभग 500 से ज्यादा लेबर पश्चिम बंगाल से आते हैं.
  • अनुमान है कि 9 दिनों के इस उत्सव में लगभग 10 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होते हैं.
  • अलग-अलग दुर्गोत्सव समितियों से जुड़े कारोबारी और मजदूरों को इसका सीधा फायदा मिलता है.
  • इस बार आयोजन न होने की वजह से यह प्रॉफिट जीरो पर पहुंच गया है.

वाराणसी: काशी नगरी में शक्ति की आराधना का एक अलग रूप दिखाई देता है, क्योंकि शारदीय नवरात्र के मौके पर जिले में बनाए जाने वाले पूजा पंडाल और यहां होने वाली दुर्गा पूजा 'मिनी कोलकाता' के नाम से जानी जाती है. हर साल 350 से ज्यादा रजिस्टर्ड पूजा पंडालों में मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा की स्थापना होती है, लेकिन इस बार कोविड-19 की वजह से न पूजा हो रही है और न ही पंडाल बनाए जा रहे हैं. हर साल सड़कों पर जगमगाती बिजली की झालरों और मां के भजनों से गूंजने वाले रास्ते इस बार सुनसान दिखाई देंगे, क्योंकि यूपी सरकार ने भले ही पूजा पंडालों की स्थापना और दुर्गा पूजा की अनुमति शर्तों के साथ दी है, लेकिन जिले में बढ़ रहे कोविड-19 मामलों की वजह से प्रशासन ने न पंडाल बनाने की अनुमति दी है और न ही पूजा करने की. यही वजह है कि इस बार हजारों परिवारों को करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा.

दुर्गा पूजा के लिए नहीं मिली पंडाल लगाने की मंजूरी.

नहीं मिली पूजा पंडाल की अनुमति
वाराणसी में 350 से ज्यादा रजिस्टर्ड दुर्गा पूजा पंडाल हर साल स्थापित किए जाते हैं. वहीं करीब 35 से ज्यादा दुर्गा पूजा समितियां ऐसी हैं, जो काफी पुराने वक्त से दुर्गा पूजा संपन्न करवा रही हैं और भव्यता के साथ बनारस ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल में इनकी एक अलग पहचान है. इनमें से एक है वाराणसी दुर्गोत्सव समिति, दरअसल बनारस की सबसे पुरानी दुर्गा पूजा होने की वजह से यहां का उत्सव बहुत ही भव्यता के साथ होता है. बंगाली परिवारों की तरफ से शुरू हुई इस दुर्गा पूजा का इस बार 99वां वर्ष है, लेकिन आयोजन समिति के लोगों में मायूसी है. इसके पीछे की वजह यह कि न ही पूजा पंडाल निर्मित हुआ है और न ही प्रतिमा स्थापना की इजाजत मिली है. इसी वजह से पूजा समितियों में निराशा है. इस बार सिर्फ कलश स्थापना कर पूजा किए जाने की बात पूजा समिति से जुड़े लोग कर रहे हैं. हालांकि प्रयास अभी जारी है और कोशिश है कि छोटी प्रतिमा बैठाने की ही अनुमति मिल जाए, जिससे कि न परंपरा टूटे और न ही लोगों का उत्साह कम हो.

कोरोना के चलते अनुमति नहीं
पूजा समिति के अलावा वाराणसी के हथुआ मार्केट इलाके में होने वाली प्रीमियर ब्वॉज क्लब की दुर्गा पूजा, ईगल क्लब, काशी दुर्गोत्सव समिति, सनातन धर्म इंटर कॉलेज में होने वाले भव्य दुर्गा पूजा समेत सार्वजनिक दुर्गोत्सव समिति टाउनहॉल में होने वाली दुर्गा पूजा पुरानी और भव्यता के साथ संपन्न होने वाली दुर्गा पूजा बनारस में मानी जाती है, लेकिन इस बार कहीं भी आयोजन होगा, इसे लेकर संशय बना हुआ है. हालांकि जिलाधिकारी ने फोन पर हुई बातचीत में यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी तरह की कोई अनुमति पूजा समितियों को नहीं मिलने जा रही है. डीएम ने जानकारी देते हुए बताया कि न पूजा पंडाल बनाए जाएंगे और न ही प्रतिमा स्थापना की अनुमति होगी. अगर लोग परंपरा का निर्वहन करना चाहें तो वे मानक के अनुरूप कर सकते हैं, लेकिन भीड़ इकट्ठा नहीं करनी है.

पूजा पंडाल बनाने वाले मायूस

दुर्गा पूजा न होने की वजह से वाराणसी में 1000 से ज्यादा परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. दुर्गा प्रतिमा बनाने वाले कारीगर तो पहले ही मायूस हैं, क्योंकि किसी को दुर्गा प्रतिमा तैयार करने का ऑर्डर ही नहीं मिला था. इसके अलावा जिले के सबसे बड़े और पुराने टेंट और पंडाल कारोबारी कानू बाबू डेकोरेटर के यहां भी मायूसी है. कारोबारी का कहना है कि हर साल 250 से ज्यादा मजदूर पश्चिम बंगाल से सिर्फ पूजा पंडाल बनाने के लिए बुलाए जाते थे. 6 महीना पहले से ही पंडाल बनाने की शुरुआत हो जाती थी, लेकिन इस बार न अनुमति मिली और न ही एक भी मजदूर कोलकाता से यहां आया. इस वजह से करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है. इसकी बड़ी वजह यह है कि वाराणसी की लगभग 60 फीसद दुर्गा पूजा की जिम्मेदारी कानू बाबू डेकोरेटर्स को ही मिली हुई है. पूजा पंडाल बनाने से लेकर अन्य तैयारियां इनके जिम्मे होती है, लेकिन इस बार न पंडाल बने और न ही इनके साथ जुड़कर काम करने वाले सैकड़ों परिवारों को कोई रोजगार मिला.

हजारों परिवारों के लिए मुश्किल भरा दौर
वहीं पूजा पंडालों में सबसे महत्वपूर्ण रोल निभाने वाले बिजली और साउंड कारीगर भी मायूस हैं. बनारस में अधिकांश पूजा पंडालों में गौतम साउंडस बिजली सजावट से लेकर अन्य सारे अरेंजमेंट करते हैं, लेकिन इस बार एक भी काम इनके जिम्मे नहीं आया है. इन लोगों का साफ तौर पर कहना है कि दुर्गा पूजा वाराणसी में होने का मतलब है कि एक हजार से ज्यादा परिवारों को रोजगार मिलना, लेकिन इस बार करोड़ों से ज्यादा का नुकसान जिले में अकेले दुर्गा पूजा न होने की वजह से हो रहा है, जिसके चलते हजारों परिवार प्रभावित हो रहे हैं.

महत्वपूर्ण बातें-

  • वाराणसी में 350 रजिस्टर्ड दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना होती है.
  • लगभग 75 से ज्यादा बड़े दुर्गापूजा पंडालों का निर्माण वाराणसी में होता है.
  • एक पंडाल तैयार करने में टेंट कारोबारी, बिजली सजावट कारोबारी, कपड़ा कारोबारी, बांस और बल्लियों के कारोबारी समेत लगभग 10 से ज्यादा कारोबारियों की हिस्सेदारी होती है.
  • हर साल वाराणसी में दुर्गा पूजा पंडाल बनाने के लिए लगभग 500 से ज्यादा लेबर पश्चिम बंगाल से आते हैं.
  • अनुमान है कि 9 दिनों के इस उत्सव में लगभग 10 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होते हैं.
  • अलग-अलग दुर्गोत्सव समितियों से जुड़े कारोबारी और मजदूरों को इसका सीधा फायदा मिलता है.
  • इस बार आयोजन न होने की वजह से यह प्रॉफिट जीरो पर पहुंच गया है.
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