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महाश्मशान पर सजी महफिल, जलती चिताओं के बीच नगरवधुओं ने किया नृत्य

कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच सोमवार को काशी की नगर वधुओं ने मणिकर्णिका घाट बाबा मसाननाथ को नृत्यांजलि दी. काशी के महाश्मशान पर जलती चिताओं के बीच नृत्य कर नगर वधुओं ने सैकड़ों साल पुरानी इस अनूठी परंपरा का निर्वहन किया.

नगरवधुओं ने किया नृत्य
नगरवधुओं ने किया नृत्य
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Published : Apr 20, 2021, 12:32 PM IST

वाराणसी : कोरोना काल में सबसे ज्यादा चर्चा श्मशान घाटों की हो रही है. श्मशान घाटों पर बढ़ रही भीड़ दुख दर्द और तकलीफ की तस्वीरें हर जगह देखने को मिल रही हैं. इसी बीच धर्म नगरी काशी में महाश्मशान मणिकर्णिका पर वह तस्वीर देखने को मिली, जो बिल्कुल अलग थी. दरअसल, महाश्मशान पर सोमवार को नाच और गाने की महफिल सजी थी. सबसे बड़ी बात यह है कि यह महफिल किसी शौक के लिए नहीं थी. महफिल सजी थी उस सैकड़ों साल पुरानी परंपरा को निभाने के लिए, जिसकी नीव राजा मानसिंह ने रखी थी. काशी के मणिकर्णिका घाट पर बाबा मसान के मंदिर में नगरवधुओं ने अपना नृत्य प्रस्तुत किया.

नगरवधुओं ने किया नृत्य

अनूठे आयोजनों का शहर बनारस

काशी में कई अनोखे आयोजन देखने को मिलते हैं, जो सैकड़ों साल पुराने हैं और आज भी परंपराओं के निर्वहन के रूप में पूरे किए जाते हैं. चाहे महाश्मशान पर होने वाली चिता भस्म की होली हो या फिर घाटों पर सजने वाली महामूर्खों की महफिल. इसी कड़ी में सोमवार को महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच स्थित बाबा महाश्मशान के मंदिर परिसर में नगरबधुओं ने बाबा के सामने नृत्य करके उन्हें नमन किया. हालांकि, कोविड-19 के बढ़ रहे संक्रमण की वजह से कार्यक्रम सीमित लोगों के बीच संपन्न हुआ.

इस वर्ष सिर्फ परंपरा निभाई गई

वाराणसी के घाट पर यह आयोजन सैकड़ों वर्षों से होता आ रहा है. बीते कुछ सालों में इसे काफी बृहद रूप में किया जाने लगा. इसमें हर वर्ष बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ गंगा के तट पर जुटती थी. हालांकि इस बार कोविड संक्रमण की वजह से यह आयोजन बेहद छोटे रूप में संपन्न हुआ. मंदिर के अंदर ही चार से पांच की संख्या में पहुंची नगरवधुओं ने अपनी संगीतांजलि प्रस्तुत कर भगवान भोलेनाथ को श्रद्धा सुमन अर्पित किया.

इसे भी पढ़ें- मेरठ में कोरोना से मरने वालों की संख्या बढ़ी, श्मशान में पैर रखने की जगह नहीं

यह है आयोजन की कहानी

मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि राजा मानसिंह ने जब बाबा मसाननाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, तब कई बड़े संगीतकारों को यहां अपनी संगीतांजलि प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रण भेजा था. महाश्मशान और जलती चिताओं के बीच आने के लिए कोई कलाकार तैयार नहीं हुआ. तब इस बात की जानकारी होने पर काशी की नगरवधुओं ने बाबा के सामने अपना कार्यक्रम पेश करने की अनुमति मांगी. अपने वर्तमान जीवन को सुधारने की कामना के साथ अगले आने वाले जीवन में इस नर्क वाले जीवन से मुक्ति की कामना करते हुए अपने कार्यक्रम की प्रस्तुति दी. तब से लेकर अब तक अपने अगले जन्म को सुधारने की खातिर नगरवधुओं का यह आयोजन काशी के इस महाशमशान पर जारी है.

वाराणसी : कोरोना काल में सबसे ज्यादा चर्चा श्मशान घाटों की हो रही है. श्मशान घाटों पर बढ़ रही भीड़ दुख दर्द और तकलीफ की तस्वीरें हर जगह देखने को मिल रही हैं. इसी बीच धर्म नगरी काशी में महाश्मशान मणिकर्णिका पर वह तस्वीर देखने को मिली, जो बिल्कुल अलग थी. दरअसल, महाश्मशान पर सोमवार को नाच और गाने की महफिल सजी थी. सबसे बड़ी बात यह है कि यह महफिल किसी शौक के लिए नहीं थी. महफिल सजी थी उस सैकड़ों साल पुरानी परंपरा को निभाने के लिए, जिसकी नीव राजा मानसिंह ने रखी थी. काशी के मणिकर्णिका घाट पर बाबा मसान के मंदिर में नगरवधुओं ने अपना नृत्य प्रस्तुत किया.

नगरवधुओं ने किया नृत्य

अनूठे आयोजनों का शहर बनारस

काशी में कई अनोखे आयोजन देखने को मिलते हैं, जो सैकड़ों साल पुराने हैं और आज भी परंपराओं के निर्वहन के रूप में पूरे किए जाते हैं. चाहे महाश्मशान पर होने वाली चिता भस्म की होली हो या फिर घाटों पर सजने वाली महामूर्खों की महफिल. इसी कड़ी में सोमवार को महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच स्थित बाबा महाश्मशान के मंदिर परिसर में नगरबधुओं ने बाबा के सामने नृत्य करके उन्हें नमन किया. हालांकि, कोविड-19 के बढ़ रहे संक्रमण की वजह से कार्यक्रम सीमित लोगों के बीच संपन्न हुआ.

इस वर्ष सिर्फ परंपरा निभाई गई

वाराणसी के घाट पर यह आयोजन सैकड़ों वर्षों से होता आ रहा है. बीते कुछ सालों में इसे काफी बृहद रूप में किया जाने लगा. इसमें हर वर्ष बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ गंगा के तट पर जुटती थी. हालांकि इस बार कोविड संक्रमण की वजह से यह आयोजन बेहद छोटे रूप में संपन्न हुआ. मंदिर के अंदर ही चार से पांच की संख्या में पहुंची नगरवधुओं ने अपनी संगीतांजलि प्रस्तुत कर भगवान भोलेनाथ को श्रद्धा सुमन अर्पित किया.

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यह है आयोजन की कहानी

मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि राजा मानसिंह ने जब बाबा मसाननाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, तब कई बड़े संगीतकारों को यहां अपनी संगीतांजलि प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रण भेजा था. महाश्मशान और जलती चिताओं के बीच आने के लिए कोई कलाकार तैयार नहीं हुआ. तब इस बात की जानकारी होने पर काशी की नगरवधुओं ने बाबा के सामने अपना कार्यक्रम पेश करने की अनुमति मांगी. अपने वर्तमान जीवन को सुधारने की कामना के साथ अगले आने वाले जीवन में इस नर्क वाले जीवन से मुक्ति की कामना करते हुए अपने कार्यक्रम की प्रस्तुति दी. तब से लेकर अब तक अपने अगले जन्म को सुधारने की खातिर नगरवधुओं का यह आयोजन काशी के इस महाशमशान पर जारी है.

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