वाराणसी: काशी फूलों के कारोबार का बड़ा गढ़ माना जाता है. बनारस से अलग-अलग तरह के फूलों की सप्लाई पूर्वांचल के कई जिलों में की जाती है. खासतौर पर शादियों के मौसम में तो बनारस के फूलों का कारोबार चरम पर होता है, लेकिन कोरोना महामारी के दौर में फूलों के कारोबार पर गहरा असर पड़ा है. फूल उगाने वाले किसान, माली और सजावट का काम करने वाले व्यापारी हर किसी की कमर इस महामारी ने तोड़ कर रख दी है. सबसे बड़ा असर बाहर से आने वाले फूलों की खेती पर पड़ा है. सजावटी और सुगंधित फूल जिनके दाम सुनकर आम दिनों में लोगों के होश उड़ जाया करते थे, आज कल वे भी औने-पौने दाम पर बिक रहे है. बाजार में फूल डंप पड़े हैं, लेकिन खरीदार ही नहीं है. खेतों से तोड़े जाने के बाद इन फूलों को कचरे में फेंकना पड़ रहा है.
वाराणसी में फूलों की दो मंडियां लगती हैं. इनमें एक किसान फूल मंडी और दूसरी बांसफाटक स्थित फूल मंडी शामिल है. दोनों फूल मंडियों से बनारस समेत आसपास के कई जिलों के कारोबारी सजावटी फूल और माला खरीदकर ले जाया करते हैं. लेकिन, इन दिनों अधिकांश मंदिर बंद पड़े हैं, वहीं श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में गिने-चुने लोगों को सिर्फ कोविड रिपोर्ट निगेटिव होने पर ही एंट्री दी जा रही है, संकट मोचन मंदिर समेत अन्य बड़े मंदिरों का भी यही हाल है. ऐसे मंदिरों से भीड़ नदारद है. उधर, शादियों का सीजन होने के बावजूद भी सिर्फ 25 लोगों के साथ विवाह समारोह आयोजित करने की अनुमति ने लोगों को काफी मायूस कर दिया है. जिसकी वजह से लोग सादे तरीके से शादी विवाह कर रहे हैं. ऐसे में फूलों के डेकोरेशन का कोई काम भी ना के बराबर हो रहा है. इसका बड़ा खामियाजा इस कारोबार से जुड़े लोगों को उठाना पड़ रहा है.
मुश्किल में कारोबारी
वाराणसी के मलदहिया स्थित किसान फूल मंडी में आने वाले किसानों का हाल बेहाल है. फूलों की खेती करने वाले किसान अनिल पटेल का कहना है कि पिछले साल महामारी के दौर में लॉकडाउन के बाद हालत कुछ बेहतर हो गई थी. क्योंकि मई से चीजें नॉर्मल होना शुरू हो गई थी, लेकिन इस बार तो हालत बिगड़ती ही जा रही है. शादियों का सीजन अप्रैल में शुरू हुआ है. उम्मीद थी कि इस बार बेहतर कारोबार होगा, क्योंकि लगन और शादियां अच्छी थी. आर्डर मिलने के बाद जब बंदिशें हुई, तो सब कैंसिल करना पड़ा. अब हालत यह है कि खेतों से तोड़कर फूल को मंडियों तक लाते हैं और नहीं बिकने पर उसे फेंकना पड़ता है.
खत्म हो गई इनकम
किसान अनिल ने बताया कि जहां पहले प्रतिदिन 1000 से 1500 रुपये तक की आमदनी हो जाया करती थी. वह इस समय 200 से 250 बमुश्किल मिल पा रहा है. इससे फूलों की लागत भी निकाल पाना मुश्किल हो गया है. मंडी के व्यवस्थापक का भी कहना है कि यहां आने वाले किसान बेहद मायूस हैं. कारोबारियों द्वारा आर्डर दिए जाने के बाद वह फूल खरीद कर तो ला रहे हैं, लेकिन कारोबारियों का आर्डर कैंसिल होने की वजह से किसानों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. एक तरफ बाहर से आने वाले फूलों के खराब होने की वजह से व्यापारी नुकसान सह रहे हैं, तो यहां लोकल आर्डर कैंसिल होने की वजह से उन्हें दोहरी मार झेलनी पड़ रही है.
बाहर से आने वाले फूलों की भी कीमत गिरी
सजावटी फूलों का काम करने वाले कारोबारियों का कहना है कि कोलकाता और दक्षिण भारत से रजनीगंधा गुलाब समेत कई अलग-अलग तरह के सजावटी फूलों को मंगवाया जाता है. फूल तो अच्छे खासे मिल रहे हैं, लेकिन खरीदार हैं ही नहीं. इससे बाहर से आने वाले फूलों की कीमत पर भी असर पड़ा है. शुरुआत में तो फूल महंगे बिक रहे थे, लेकिन अब बाहर से आने वाले फूलों के कीमत में भी काफी कमी आ गई है. पहले जहां रजनीगंधा के फूल 18 से 20 रुपये प्रति किलोग्राम था, वह अब 15 रुपये तक आ गया है. अन्य सजावटी फूलों की स्थिति भी कुछ इसी तरह है. सजावटी फूल पत्तियों के लिए पहले जहां 50 से 60 रुपये प्रति सजावटी पत्ती और फूल देना होता था, वह अब 35 से 40 रुपये में ही मिल जा रही है. अब सजावट के लिए दिए गए ऑर्डर को भी लोग कैंसिल कराने लगे हैं. इसकी वजह से आर्डर किया हुआ फूल और किसानों के द्वारा लाया गया फूल मंडी में ही बर्बाद हो जा रहा है.
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तैयार फूलों के बुके भी हो रहे बेकार
फूलों का कारोबार कर के सजावटी फूलों से बुके बनाने वाले भी बेहाल हैं. उनका कहना है रोज सुबह चार पांच बुके तैयार करके रखा जा रहा है, लेकिन वह शाम तक मुरझा कर खराब हो जा रहे हैं, क्योंकि खरीददार है ही नहीं. सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि 1 बजे बाजार बंद होना है और फूलों का कारोबार शाम को शादियों के सीजन में और मंदिरों में रहता है. शाम तक बाजार खुल न पाने की स्थिति में फूलों की बर्बादी बेइंतेहा हो रही है. कारोबारी इसको रोक पाने में फेल हैं. कुल मिलाकर इस महामारी के दौर में फूल से जुड़े कारोबारियों को भी अपना मुनाफा निकालना मुश्किल हो गया है, लागत निकल आए तो वह बहुत बड़ी बात है.