वाराणसी: बनारस के कण कण में शिव का वास माना जाता है. काशी के 23 हजार मंदिरों में कुछ मंदिरों का विशेष स्थान है. जिनमें काशी विश्वनाथ मंदिर, कर्मदेश्वर महादेव मंदिर, सुमेरू दुर्गा मंदिर, पंचकोशी मंदिर, वाराणसी के गंगा घाट किनारों पर बने हुए मंदिर इत्यादि शामिल हैं. जिनकी अलग ऐतिहासिक कहानी है. वहीं काशी में एक ऐसा शिव मंदिर भी है जिसको लेकर मान्यता है कि यह शिवलिंग तिलभर बढ़ता है. इसका नाम है तिलभांडेश्वर महादेव.
वाराणसी के भेलूपुर इलाके में स्थित तिलभांडेश्वर महादेव(Tilbhandeshwar Mahadev) स्वयंभू हैं. इसे लेकर मान्यता है कि 2000 वर्ष पूर्व दक्षिण भारत के ऋषि विभाण्डक यहां आए थे. प्रतिदिन बढ़ने वाले इस शिवलिंग को देखकर वह आश्चर्यचकित हो गए और यहीं रुक कर कई वर्षों तक साधना की. कालांतर में शिवलिंग की प्रकृति और ऋषि का नाम मिलाकर इनका नामकरण तिलभांडेश्वर रखा गया. जिले के केदारखंड में स्थित तिलभांडेश्वर मंदिर की विशालकाय शिवलिंग अपने इतिहास को स्वयं बयां कर रही है. स्थानीय लोगों के साथ दक्षिण भारत के लोग यहां पर दर्शन पूजन करने जरूर आते हैं. सावन, शिवरात्रि और मकर संक्रांति के समय यहां विशेष प्रकार का अनुष्ठान किया जाता है.
महंत शिवानंद गिरि ने बताया कि मुगलों के बाद अंग्रेजों को शिवलिंग के इस चमत्कार पर विश्वास नहीं हुआ तब काशी के विद्वान ब्राह्मणों के कहानुसार अंग्रेजों ने इसका परीक्षण किया. शिवलिंग को नारे से बांधकर मंदिर के गर्भगृह को सील कर दिया गया. दो दिन बाद जब गर्भ गृह खोला गया तो नारा टूटा हुआ था. तब जाकर अंग्रेजों का भ्रम दूर हुआ.