वाराणसी: आज पूरा देश गर्व और गौरव के साथ कारगिल विजय दिवस मना रहा है. कारगिल युद्ध को आज पूरे 24 वर्ष हो गए हैं. आज भी पाकिस्तान के दांत खट्टे करने वाले जवानों की वीर गाथा सुनकर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. ऐसी ही विजय गाथा वाराणसी के चौबेपुर के रहने वाले अलीम अली की भी है. अलीम अली को कारगिल युद्ध में 8 गोलियां लगी थी, इसके बाद भी वे डटकर लड़े और मौत को मात भी दी.
1990 में सेना में भर्ती हुए थे अलीमः वाराणसी के चौबेपुर क्षेत्र के सरसौल गांव निवासी 22 ग्रेनेडियर के नायक रहे अलीम अली 1990 में सेना में भर्ती हुए थे. जुलाई 1992 से सितंबर 1995 तक कश्मीर में चल रहे 'ऑपरेशन रक्षक' में शामिल थे. पाकिस्तान जब कारगिल में घुसा तब 7 जून 1999 में अलीम अली को कारगिल में युद्ध लड़ने भेजा गया. अलीम अली ने अपने 25 साथियों के साथ कारगिल के युद्ध में हिस्सा लिया था और 21 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित जुबार हिल पर साथियों के साथ तिरंगा फहराया था. पाकिस्तानी फौज से युद्ध के दौरान उन्हें सीने, घुटने, कमर समेत शरीर के अन्य हिस्सों में आठ गोलियां लगी थीं.
छुट्टी कर दी गई थी रद्दः कारगिल युद्ध के दौरान 22 ग्रेनेडियर के नायक रहे अलीम अली ने बताया कि ‘सर्वदा शक्तिशाली’ पर भरोसा करने वाली हमारी बटालियन 1999 में हैदाराबाद में थी. मई में दोस्त की शादी के लिए छुट्टी पर आया था. इसी बीच कारगिल युद्ध के कारण छ्ट्टी रद्द होने की सूचना मिली. आदेश के बाद 25 जवानों की एक टुकड़ी जुबार हिल पहुंची. 2 जुलाई को वहां पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा बंकर बनाने की सूचना मिली, लेकिन कोई गतिविधि समझ में नहीं आई. इसके बाद हम लोग तिरंगा फहराकर सर्वदा शक्तिशाली का नारा लगाने लगे. इसी बीच तीन तरफ से दुश्मनों ने फायरिंग शुरू कर दी.
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सीने में लगी गोलीः अलीम अली ने बताया कि तीन घंटे के आमने-सामने की फायरिंग में पाकिस्तान के कई जवानों को हमने ढेर किया. इसके अगले दिन भोर में पाकिस्तानी सैनिकों के अटैक से हमारे सात जवान शहीद हो गए. इसी दौरान पहली बार उसके पैर और हाथ में 2 गोली लगी, लेकिन मोर्चे पर डटा रहा. इसके बाद उन्हें चार गोली और लगी. जिससे लहूलुहान होकर जमीन पर गिर पड़े. लेकिन उन्होंने साहस जुटाया जैसे ही उठे तभी एक गोली उनके सीने में जा लगी और वे खाई में गिर कर बेहोश हो गए.
हाथों को हिलता हुआ देखा सैनिकों ने पहुंचाया अस्पतालः 6 जुलाई की शाम सेना की एक और टुकड़ी आ गई और पाकिस्तानियों को खदेड़ दिया. हालांकि, तब तक ग्रेनेडियर बटालियन के 10 जवान शहीद हो चुके थे और 15 घायल थे. अलीम बताते हैं कि 15 घायलों में ऐसा कोई भी नहीं था जिसको गोली न लगी हो और हाथ-पैर न गायब हो. लेकिन, इसके बाद भी जवानों ने पूरा ताकत से लड़ाई लड़ी और विजय हासिल की. वहीं, पाकिस्तान के 35 सैनिक मारे गए थे. अलीम बताते हैं कि 10 शहीद जवानों के पार्थिव शरीर के साथ उनको भी मार हुआ समझकर एक कतार में रख दिया गया था. लेकिन बाद में जब डॉक्टरों ने उनके हाथों को हिलता हुआ देखा तो तत्काल सैनिक अस्पताल में पहुंचाया गया, जहां उनकी जिंदगी बच गई.