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51 सालों से काशी में किया जा रहा है 'निशा पूजा' का आयोजन

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में दीपावली के पर्व के साथ-साथ काली पूजा का भी महोत्सव देखने को मिला. काशी की गलियों में इस काली पूजा का आयोजन पिछले 51 सालों से होता चला आ रहा है, जहां भक्तों की लंबी कतार लगी होती है.

काली पूजा का आयोजन
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Published : Oct 28, 2019, 10:34 AM IST

वाराणसी: दीपावली का पर्व पूरे देश में धूम-धाम के साथ मनाया गया. वहीं शिव की नगरी काशी में बंगाली समाज की ओर से काली पूजन का आयोजन किया गया. उत्तर भारत में लक्ष्मी-गणेश की पूजा जितनी महत्वपूर्ण है, उतना ही पूर्वी भारत में काली पूजा का महत्व है. मां काली की पूजा के दौरान काशी में एक मिनी बंगाल की झलक देखने को मिलती है.

वाराणसी में किया गया काली पूजा का आयोजन.

काली पूजा का किया गया आयोजन

  • कार्तिक अमावस्या की रात में होने वाली काली पूजा कहानी को 'निशा पूजा' के नाम से भी जाना जाता हैं.
  • काशी के देवनाथपुर में स्थित नौसंग पूजा पंडाल में भव्य काली माता के पंडाल को सजाया जाता है.
  • पिछले 51 सालों से यह परंपरा अनवरत चली आ रही है.
  • पूरे बनारस में यह प्रतिमा खास है, क्योंकि प्रतिमा लगभग 30 फीट ऊंची होती है.
  • इस मूर्ति की स्थापना मुस्लिम बाहुल्य इलाके में की जाती है.

इसे भी पढ़ें:- दीपावली 2019: मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए इन मुहूर्त का रखें ध्यान, ऐसे करें पूजा-पाठ

  • जिला प्रशासन ने इस पूजा के लिए सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए थे.
  • अतीस कुमार दास ने बताया कि यह पूजा करते हुए उन्हें 50 वर्ष बीत गए हैं.
  • दीपावली के दिन शुभ मुहूर्त में माता की स्थापना की जाती है.

वाराणसी: दीपावली का पर्व पूरे देश में धूम-धाम के साथ मनाया गया. वहीं शिव की नगरी काशी में बंगाली समाज की ओर से काली पूजन का आयोजन किया गया. उत्तर भारत में लक्ष्मी-गणेश की पूजा जितनी महत्वपूर्ण है, उतना ही पूर्वी भारत में काली पूजा का महत्व है. मां काली की पूजा के दौरान काशी में एक मिनी बंगाल की झलक देखने को मिलती है.

वाराणसी में किया गया काली पूजा का आयोजन.

काली पूजा का किया गया आयोजन

  • कार्तिक अमावस्या की रात में होने वाली काली पूजा कहानी को 'निशा पूजा' के नाम से भी जाना जाता हैं.
  • काशी के देवनाथपुर में स्थित नौसंग पूजा पंडाल में भव्य काली माता के पंडाल को सजाया जाता है.
  • पिछले 51 सालों से यह परंपरा अनवरत चली आ रही है.
  • पूरे बनारस में यह प्रतिमा खास है, क्योंकि प्रतिमा लगभग 30 फीट ऊंची होती है.
  • इस मूर्ति की स्थापना मुस्लिम बाहुल्य इलाके में की जाती है.

इसे भी पढ़ें:- दीपावली 2019: मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए इन मुहूर्त का रखें ध्यान, ऐसे करें पूजा-पाठ

  • जिला प्रशासन ने इस पूजा के लिए सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए थे.
  • अतीस कुमार दास ने बताया कि यह पूजा करते हुए उन्हें 50 वर्ष बीत गए हैं.
  • दीपावली के दिन शुभ मुहूर्त में माता की स्थापना की जाती है.
Intro:देशभर में दीपावली की धूम है ऐसे में शिव की नगरी काशी में बंगाली समाज द्वारा काली पूजन किया जाता है। उत्तर भारत में गृहस्थ के लिए लक्ष्मी गणेश की पूजा जितनी महत्वपूर्ण है।उतना ही पूर्वी भारत में काली पूजा का महत्व है। ऐसे में यह तस्वीर काशी में मिनी बंगाल की झलक दिखाती है। बंगिय पूजा पंडाल मेंढक की अनुगूंज मध्य रात्रि तक होगी।


Body:कार्तिक अमावस्या की रात में होने वाली काली पूजा कहानी सी पूजा के नाम से भी जानी जाती है काशी में देवनाथपुर स्थित नौटंकी पूजा पंडाल में भव्य काली प्रतिमा का विधि विधान से पूजन पाठ किया गया मां के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी रही पिछले 51 सालों से यह परंपरा अनवरत चली आ रही है। पूरे बनारस में मां काली यह प्रतिमा इसलिए खास होती है क्योंकि लगभग 30 फीट ऊंची प्रतिमा पूरे पूर्वांचल में अकेली होती है। अमूर्त इसलिए खास है क्योंकि बनारस की सकरी गलियों में इसकी स्थापना होती है। उसके साथी मुस्लिम बाहुल्य इलाके में मूर्ति की स्थापना होती। जिला प्रशासन की सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए हैं।


Conclusion:अतीस कुमार दास ने बताया यह पूजा करते हुए हम लोगों को 50 वर्ष बीत गए यह पूजा इसलिए खास है। पिछले 50 वर्षों से एक ही स्थान पर मां की प्रतिमा बनाई जाती है।वली के दिन शुभ मुहूर्त में माता की स्थापना किया जाता है। निशा निशा पूजन माता का किया गया। तांत्रिक विधि विधान से वेदी बनाकर पूजन पाठ किया जाता है जो भी मनोकामना होती है वह मां के दर्शन मात्र से ही पूर्ण हो जाती है। राहु और केतु ग्रह
अशुतोष उपाध्याय
9005099684
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