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बंदर भगाने के लिए सामने आए कलंदर, यात्रियों को मिली राहत - वाराणसी बंदरों के आतंक से लोग हुए परेशान

वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन पर बंदरों से यात्रियों को बचाने के लिए अब कलंदरों का सहारा लिया जा रहा है. बंदर रेलवे प्लेटफॉर्म पर यात्रियों को नुकसान पहुंचा देते थे. इसको लेकर लगातार शिकायतें उत्तर रेलवे के लखनऊ मंडल पहुंच रही थीं.

बंदरों का हुआ सफाया
बंदरों का हुआ सफाया
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Published : Mar 19, 2021, 10:22 PM IST

वाराणसी: बंदरों के आतंक से लोगों को बचाने के लिए हर जिले में तरह-तरह के प्रयास होते हैं. नगर निगम बंदरों को पकड़ने के लिए कभी मथुरा से तो कभी वृंदावन या कानपुर से बंदर पकड़ने वाले एक्सपर्ट बुलाते हैं. इन सबके बीच वाराणसी में कैंट रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को परेशान करने वाले बंदरों को भगाने के लिए अब कलंदर का सहारा लिया जा रहा है.

मिल गया बंदरों का इलाज

यह भी पढ़ें: मस्जिद की अजान के ट्वीट पर पुलिस ने रिप्लाई के साथ किया रीट्वीट


क्या होता है कलंदर

बंदरों की समस्या को दूर करने के लिए कलंदर आगे आया है. यह वही कलंदर है जिसे एक कलाकार के रूप में जाना जाता है. तरह-तरह की आवाजें निकालना, अपनी प्रतिभा से लोगों को हंसाना और भीड़ में खुद को अलग रखना उसे ही कलंदर कहा जाता है. उत्तर रेलवे ने इस कलंदर का इस्तेमाल बंदरों को भगाने के लिए किया, जो सफल भी साबित हुआ.

बहुत बढ़ गया था बंदरों का आतंक

वाराणसी के कैंट रेलवे स्टेशन के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर बंदरों का आतंक बहुत ज्यादा बढ़ गया था. यात्रियों की भीड़ में खाने की तलाश करने के लिए बंदर रेलवे प्लेटफॉर्म पर टहलने लगते और यात्रियों को नुकसान पहुंचा देते थे. इसको लेकर लगातार शिकायतें उत्तर रेलवे के लखनऊ मंडल पहुंच रही थीं. लखनऊ मंडल तक शिकायत पहुंचने के बाद पहले बंदरों को पकड़ने का काम हुआ, लेकिन जब यह सफल नहीं हुआ तब कलंदर की मदद ली गई.



गायब होने लगे बंदर

कलंदर के लिए सबसे पहले ऐसे कलाकार ढूंढे गए जो लंगूर और अलग-अलग प्रजाति के बंदरों की आवाजें निकाल सकें. इनके हाथों में डंडा थमा कर इनको रेलवे स्टेशन के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर और फुट ओवर ब्रिज पर लंगूर, बंदर की आवाज निकाल कर घुमाया जाने लगा. इसका असर भी हुआ और परिसर में मौजूद बंदर धीरे-धीरे गायब होने लगे.



उत्तर रेलवे के चार रेलवे स्टेशनों पर होगा लागू

इस सफलता के बाद उत्तर रेलवे ने 6 महीने के संविदा पर दो कलंदर की नियुक्ति रेलवे स्टेशन पर की है. इन दोनों कलंदरों की जिम्मेदारी कैंट रेलवे स्टेशन पर बंदरों को भगाने की है. जिसके लिए सुबह 9 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक यह कलंदर रेलवे स्टेशन पर मौजूद रहते हैं. उत्तर रेलवे के एडीआरएम रवि प्रकाश चतुर्वेदी का कहना है कि यह प्रयास यूनिक और थोड़ा हटकर था. पहले संशय था कि यह सफल होगा कि नहीं क्योंकि बंदरों का आतंक इतना ज्यादा था कि इनको पकड़ने के लिए शुरू हुआ. अभियान भी फेल साबित हुआ. लेकिन 10 से 15 दिन में ही जब यह प्रयास शुरू हुआ तो उसके बाद बंदरों का कम होने का सिलसिला भी शुरू हो गया. सफलता को देखकर इसे उत्तर रेलवे के चार स्टेशनों पर लागू किया जा रहा है. इसकी शुरूआत बनारस से हुई है और यह सफल भी हुआ है. फिलहाल यह कलंदर अब कैंट परिसर में घूम-घूम के बंदरों से सीधे पंगा लेते हैं और उन्हें अपनी कला और आवाज के बल पर बाहर खदेड़ देते हैं.

वाराणसी: बंदरों के आतंक से लोगों को बचाने के लिए हर जिले में तरह-तरह के प्रयास होते हैं. नगर निगम बंदरों को पकड़ने के लिए कभी मथुरा से तो कभी वृंदावन या कानपुर से बंदर पकड़ने वाले एक्सपर्ट बुलाते हैं. इन सबके बीच वाराणसी में कैंट रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को परेशान करने वाले बंदरों को भगाने के लिए अब कलंदर का सहारा लिया जा रहा है.

मिल गया बंदरों का इलाज

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क्या होता है कलंदर

बंदरों की समस्या को दूर करने के लिए कलंदर आगे आया है. यह वही कलंदर है जिसे एक कलाकार के रूप में जाना जाता है. तरह-तरह की आवाजें निकालना, अपनी प्रतिभा से लोगों को हंसाना और भीड़ में खुद को अलग रखना उसे ही कलंदर कहा जाता है. उत्तर रेलवे ने इस कलंदर का इस्तेमाल बंदरों को भगाने के लिए किया, जो सफल भी साबित हुआ.

बहुत बढ़ गया था बंदरों का आतंक

वाराणसी के कैंट रेलवे स्टेशन के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर बंदरों का आतंक बहुत ज्यादा बढ़ गया था. यात्रियों की भीड़ में खाने की तलाश करने के लिए बंदर रेलवे प्लेटफॉर्म पर टहलने लगते और यात्रियों को नुकसान पहुंचा देते थे. इसको लेकर लगातार शिकायतें उत्तर रेलवे के लखनऊ मंडल पहुंच रही थीं. लखनऊ मंडल तक शिकायत पहुंचने के बाद पहले बंदरों को पकड़ने का काम हुआ, लेकिन जब यह सफल नहीं हुआ तब कलंदर की मदद ली गई.



गायब होने लगे बंदर

कलंदर के लिए सबसे पहले ऐसे कलाकार ढूंढे गए जो लंगूर और अलग-अलग प्रजाति के बंदरों की आवाजें निकाल सकें. इनके हाथों में डंडा थमा कर इनको रेलवे स्टेशन के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर और फुट ओवर ब्रिज पर लंगूर, बंदर की आवाज निकाल कर घुमाया जाने लगा. इसका असर भी हुआ और परिसर में मौजूद बंदर धीरे-धीरे गायब होने लगे.



उत्तर रेलवे के चार रेलवे स्टेशनों पर होगा लागू

इस सफलता के बाद उत्तर रेलवे ने 6 महीने के संविदा पर दो कलंदर की नियुक्ति रेलवे स्टेशन पर की है. इन दोनों कलंदरों की जिम्मेदारी कैंट रेलवे स्टेशन पर बंदरों को भगाने की है. जिसके लिए सुबह 9 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक यह कलंदर रेलवे स्टेशन पर मौजूद रहते हैं. उत्तर रेलवे के एडीआरएम रवि प्रकाश चतुर्वेदी का कहना है कि यह प्रयास यूनिक और थोड़ा हटकर था. पहले संशय था कि यह सफल होगा कि नहीं क्योंकि बंदरों का आतंक इतना ज्यादा था कि इनको पकड़ने के लिए शुरू हुआ. अभियान भी फेल साबित हुआ. लेकिन 10 से 15 दिन में ही जब यह प्रयास शुरू हुआ तो उसके बाद बंदरों का कम होने का सिलसिला भी शुरू हो गया. सफलता को देखकर इसे उत्तर रेलवे के चार स्टेशनों पर लागू किया जा रहा है. इसकी शुरूआत बनारस से हुई है और यह सफल भी हुआ है. फिलहाल यह कलंदर अब कैंट परिसर में घूम-घूम के बंदरों से सीधे पंगा लेते हैं और उन्हें अपनी कला और आवाज के बल पर बाहर खदेड़ देते हैं.

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