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कबीर दास जयंती: काशी के इस घाट पर एक आम लड़के के कबीर बनने की है जीवंत कहानी, यहीं मिला था गुरु मंत्र - कबीर दास की कहानी

कबीर दास की जयंती आज प्रदेश भर में धूमधाम से मनाई जाती है. वाराणसी में कबीर की प्राकट्य स्थली से लेकर उनकी कर्मस्थली के अलावा एक ऐसा स्थान भी है, जिसके बारे में कम लोग ही जानते हैं. इस स्थान पर कबीर दास को गुरु मंत्र मिला था. आइए जानते हैं इस स्थान की महत्ता.

कबीर दास जयंती
कबीर दास जयंती
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Published : Jun 14, 2022, 11:05 AM IST

वाराणसी: जाती पाती पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई, महान संत कबीर साहब जिनकी आज जयंती मनाई जा रही है. कबीर साहब लहरतारा वाराणसी में एक तालाब में कमल पुष्प पर प्रकट हुए थे. इसके बाद उनका लालन-पालन नीरू और नीमा नाम के जुलाहे दंपति ने किया था. बचपन से ही उन्हें जाती-पाती और धर्म के ताने सुनने पड़ते थे.

वाराणसी में कबीर की प्राकट्य स्थली से लेकर उनकी कर्मस्थली के अलावा एक ऐसा स्थान भी है, जिसके बारे में कम लोग ही जानते हैं. कबीर पंथ के लिए यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी स्थान पर कबीर को गुरु मंत्र मिला था. वह गुरु मंत्र जिसने एक आम लड़के को कबीर की ओर अग्रसर किया. आइए आज कबीर जयंती पर आपको कबीर पंथ के उस महत्वपूर्ण स्थान के बारे में बताते हैं, जहां गुरु से गुरु मंत्र मिलने के बाद उन्होंने पूरे विश्व को एक अलग संदेश देने का प्रयास किया.

कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे. किस जाति और किस धर्म से थे यह भी किसी को नहीं पता. लेकिन, राम के अनन्य भक्त और बिना पढ़े-लिखे होने के बाद भी उनकी बातें, उनकी वाणी आज पूरे विश्व को एक मार्ग दिखाने का काम कर रही है. वैसे तो काशी नगरी विद्वानों और संतों की नगरी हमेशा से रही है. लेकिन, कबीर से जुड़ी कई ऐसी कहानियां भी हैं, जो काशी के अलग-अलग हिस्सों में आपको सुनने को मिल जाएंगी.

कबीर दास जयंती पर संवाददाता की स्पेशल रिपोर्ट.

ऐसी ही कहानी वाराणसी के पंचगंगा घाट से जुड़ी हुई है. पंचगंगा घाट एक आम लड़के के कबीर बनने का साक्षी है. कबीर प्राकट्य स्थल लहरतारा के महंत आचार्य गोविंद दास का कहना है कि पंचगंगा घाट कबीर के संत कबीर बनने का सबसे बड़ा प्रमाण है. इसी घाट पर काशी के महान विद्वान और संत रामानंदाचार्य रहते थे.

कबीर एक बार उनसे मिलने पहुंचे और उन्हें अपने गुरु बनाने की इच्छा जाहिर करते हुए उनका चरण स्पर्श करने की कोशिश की. लेकिन रामानंदाचार्य नाराज हो गए और उनसे कहा कि तुम अभी बहुत छोटे हो यहां से जाओ और तुम अभी इस योग्य नहीं हो कि तुम्हें मैं अपना शिष्य बना लूं, लेकिन, कबीर ने उनसे ही शिक्षा लेने की धुन पकड़ ली. रोज उनके पास जाते और वहां से उनको यह कहकर लौटा दिया जाता कि तुम्हें शिक्षा-दीक्षा नहीं दूंगा. लेकिन, कबीर ने हट पकड़ ली और एक दिन जब रामानंदाचार्य जी सुबह सूर्य उदय से पहले घाटों की सीढ़ियों से उतरकर मां गंगा में स्नान करने जा रहे थे. उसी दौरान ब्रह्म मुहूर्त में कबीर वहां एक सीढ़ी पर जाकर लेट गए.

कबीर के सीने पर पड़ गया था रामानंदाचार्य का पैर

रोज की तरह जब रामानंदाचार्य जी स्नान के लिए नीचे उतरने लगे तब उनका पैर कबीर के सीने पर पड़ गया. सीने पर पैर पड़ने के बाद रामानंदाचार्य के मुंह से राम-राम निकला. इसे सुनते ही कबीर खड़े हो गए और रामानंदाचार्य जी का पैर छूकर उन्होंने कहा कि उन्हें उनका गुरु मंत्र मिल गया राम. इतना सुनने के बाद रामानंदाचार्य जी ने कबीर को अपने सीने से लगाया और कहा कि तुम निश्चित तौर पर पूरे विश्व में राम नाम की अलख जगाओगे. उन्होंने कहा कि सभी धर्म और जातियों को एक साथ लेकर आगे आने का काम करोगे. बस यही घटना एक आम लड़के को कबीर बनाने की सबसे महत्वपूर्ण और बड़ी घटना मानी जाती है.

लहरतारा में आज भी कबीर से जुड़ीं स्मृतियां मौजूद

इस स्थान के अलावा वाराणसी में कबीर के प्राकट्य स्थल लहरतारा में आज भी कबीर से जुड़ीं तमाम स्मृतियां मौजूद हैं. इसके अतिरिक्त कबीर चौराहा पर मूलगादी जो कबीर की कर्म स्थली कही जाती है, वहां पर भी बहुत सी चीजें मौजूद हैं. यहां तक कि ऊपर के हिस्से में कबीर साहब के माता-पिता नीरू और नीमा की समाधि भी है. यहां पर डिजिटल कबीर झोपड़ी बनाने का काम भी पूरा हो चुका है, जो पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. कबीर से जुड़ी तमाम चीजें जैसे उनका लोटा, त्रिशूल इत्यादि भी यहां पर संजोकर रखा गया है.

यह भी पढ़ें: गोरखपुर: कबीरदास के 'चरण पादुका मंदिर' पर अतिक्रमण, अनदेखी के चलते मिटने को है इतिहास

पंचगंगा घाट पर कबीर को मिला गुरु मंत्र

सबसे बड़ी बात यह है कि पंचगंगा घाट पर कबीर को जो राम नाम का गुरु मंत्र मिला, उसी राम नाम को पकड़कर कबीर ने संत परंपरा को आगे बढ़ाने का काम किया. कबीर ने अपनी रचनाओं के साथ राम और रहीम को जोड़कर भक्ति मार्ग की विशिष्ट व्याख्या की. इसकी वजह से कभी-कभी एक धर्म विशेष में बंधे हुए नहीं माने जाते रहे. उन्होंने सभी धर्मों के लोगों को एक समान बताते हुए ईश्वर की बैरागी युक्त भक्ति करने का संदेश दिया. सभी धर्मों को साथ लेकर चलने के कारण कबीर आज भी लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं.

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वाराणसी: जाती पाती पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई, महान संत कबीर साहब जिनकी आज जयंती मनाई जा रही है. कबीर साहब लहरतारा वाराणसी में एक तालाब में कमल पुष्प पर प्रकट हुए थे. इसके बाद उनका लालन-पालन नीरू और नीमा नाम के जुलाहे दंपति ने किया था. बचपन से ही उन्हें जाती-पाती और धर्म के ताने सुनने पड़ते थे.

वाराणसी में कबीर की प्राकट्य स्थली से लेकर उनकी कर्मस्थली के अलावा एक ऐसा स्थान भी है, जिसके बारे में कम लोग ही जानते हैं. कबीर पंथ के लिए यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी स्थान पर कबीर को गुरु मंत्र मिला था. वह गुरु मंत्र जिसने एक आम लड़के को कबीर की ओर अग्रसर किया. आइए आज कबीर जयंती पर आपको कबीर पंथ के उस महत्वपूर्ण स्थान के बारे में बताते हैं, जहां गुरु से गुरु मंत्र मिलने के बाद उन्होंने पूरे विश्व को एक अलग संदेश देने का प्रयास किया.

कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे. किस जाति और किस धर्म से थे यह भी किसी को नहीं पता. लेकिन, राम के अनन्य भक्त और बिना पढ़े-लिखे होने के बाद भी उनकी बातें, उनकी वाणी आज पूरे विश्व को एक मार्ग दिखाने का काम कर रही है. वैसे तो काशी नगरी विद्वानों और संतों की नगरी हमेशा से रही है. लेकिन, कबीर से जुड़ी कई ऐसी कहानियां भी हैं, जो काशी के अलग-अलग हिस्सों में आपको सुनने को मिल जाएंगी.

कबीर दास जयंती पर संवाददाता की स्पेशल रिपोर्ट.

ऐसी ही कहानी वाराणसी के पंचगंगा घाट से जुड़ी हुई है. पंचगंगा घाट एक आम लड़के के कबीर बनने का साक्षी है. कबीर प्राकट्य स्थल लहरतारा के महंत आचार्य गोविंद दास का कहना है कि पंचगंगा घाट कबीर के संत कबीर बनने का सबसे बड़ा प्रमाण है. इसी घाट पर काशी के महान विद्वान और संत रामानंदाचार्य रहते थे.

कबीर एक बार उनसे मिलने पहुंचे और उन्हें अपने गुरु बनाने की इच्छा जाहिर करते हुए उनका चरण स्पर्श करने की कोशिश की. लेकिन रामानंदाचार्य नाराज हो गए और उनसे कहा कि तुम अभी बहुत छोटे हो यहां से जाओ और तुम अभी इस योग्य नहीं हो कि तुम्हें मैं अपना शिष्य बना लूं, लेकिन, कबीर ने उनसे ही शिक्षा लेने की धुन पकड़ ली. रोज उनके पास जाते और वहां से उनको यह कहकर लौटा दिया जाता कि तुम्हें शिक्षा-दीक्षा नहीं दूंगा. लेकिन, कबीर ने हट पकड़ ली और एक दिन जब रामानंदाचार्य जी सुबह सूर्य उदय से पहले घाटों की सीढ़ियों से उतरकर मां गंगा में स्नान करने जा रहे थे. उसी दौरान ब्रह्म मुहूर्त में कबीर वहां एक सीढ़ी पर जाकर लेट गए.

कबीर के सीने पर पड़ गया था रामानंदाचार्य का पैर

रोज की तरह जब रामानंदाचार्य जी स्नान के लिए नीचे उतरने लगे तब उनका पैर कबीर के सीने पर पड़ गया. सीने पर पैर पड़ने के बाद रामानंदाचार्य के मुंह से राम-राम निकला. इसे सुनते ही कबीर खड़े हो गए और रामानंदाचार्य जी का पैर छूकर उन्होंने कहा कि उन्हें उनका गुरु मंत्र मिल गया राम. इतना सुनने के बाद रामानंदाचार्य जी ने कबीर को अपने सीने से लगाया और कहा कि तुम निश्चित तौर पर पूरे विश्व में राम नाम की अलख जगाओगे. उन्होंने कहा कि सभी धर्म और जातियों को एक साथ लेकर आगे आने का काम करोगे. बस यही घटना एक आम लड़के को कबीर बनाने की सबसे महत्वपूर्ण और बड़ी घटना मानी जाती है.

लहरतारा में आज भी कबीर से जुड़ीं स्मृतियां मौजूद

इस स्थान के अलावा वाराणसी में कबीर के प्राकट्य स्थल लहरतारा में आज भी कबीर से जुड़ीं तमाम स्मृतियां मौजूद हैं. इसके अतिरिक्त कबीर चौराहा पर मूलगादी जो कबीर की कर्म स्थली कही जाती है, वहां पर भी बहुत सी चीजें मौजूद हैं. यहां तक कि ऊपर के हिस्से में कबीर साहब के माता-पिता नीरू और नीमा की समाधि भी है. यहां पर डिजिटल कबीर झोपड़ी बनाने का काम भी पूरा हो चुका है, जो पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. कबीर से जुड़ी तमाम चीजें जैसे उनका लोटा, त्रिशूल इत्यादि भी यहां पर संजोकर रखा गया है.

यह भी पढ़ें: गोरखपुर: कबीरदास के 'चरण पादुका मंदिर' पर अतिक्रमण, अनदेखी के चलते मिटने को है इतिहास

पंचगंगा घाट पर कबीर को मिला गुरु मंत्र

सबसे बड़ी बात यह है कि पंचगंगा घाट पर कबीर को जो राम नाम का गुरु मंत्र मिला, उसी राम नाम को पकड़कर कबीर ने संत परंपरा को आगे बढ़ाने का काम किया. कबीर ने अपनी रचनाओं के साथ राम और रहीम को जोड़कर भक्ति मार्ग की विशिष्ट व्याख्या की. इसकी वजह से कभी-कभी एक धर्म विशेष में बंधे हुए नहीं माने जाते रहे. उन्होंने सभी धर्मों के लोगों को एक समान बताते हुए ईश्वर की बैरागी युक्त भक्ति करने का संदेश दिया. सभी धर्मों को साथ लेकर चलने के कारण कबीर आज भी लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं.

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