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न्यायमूर्ति सुनीत कुमार बोले संविधान निर्माण में मदन मोहन मालवीय का महत्वपूर्ण योगदान

काशी हिन्दू विश्वविधालय के विधि संकाय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुनीत कुमार का विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया.

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न्यायमूर्ति सुनीत कुमार
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Published : Aug 27, 2022, 10:52 PM IST

वाराणसी: काशी हिन्दू विश्वविधालय के विधि संकाय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुनीत कुमार का विशिष्ट व्याख्यान "क्या न्यायपालिका अपने क्षेत्राधिकार को पार कर कार्य कर रही हैं? " के विषय पर आयोजन किया गया.

यह कार्यक्रम संकाय के शताब्दी समारोह के अंतर्गत आयोजित किया गया. माननीय न्यायमूर्ति ने विषय को इंगित किया कि न्यायपालिका अपने संवैधानिक क्षेत्राधिकार के सीमा के अंतर्गत ही कार्य करती है. उन्होंने इस विषय की प्रस्तावना में इस बात की ओर इशारा किया कि कार्यपालिका और न्यायपालिका में संविधान के अंतर्गत ही आपसी टकराव के कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, विशेष तौर पर मौलिक अधिकार और राज्य के नीति-निर्देशक तत्व. जिसकी वजह से न्यायपालिका को उन क्षेत्रों में जोकि कार्यपालिका का मूलतः क्षेत्र है, उनमें हस्तक्षेप करना पड़ता है.

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उसमें कुछ विधिक प्रश्न ऐसे आ जाते हैं. जिसके कारण इनका निष्पादन करना न्यायपालिका की संवैधानिक जिम्मेदारी है. संविधान के निर्माण में नेहरू रिपोर्ट, 1928, कांग्रेस रिपोर्ट, 1931 और पूना पैक्ट, 1932, जिसमें कि पं. मदन मोहन मालवीय का भी योगदान था. संविधान के निर्माण में उनकी एक विशिष्ट भूमिका रही है. न्यायमूर्ति ने शाहबानो, बाबरी मस्जिद, जम्मू कश्मीर में इंटरनेट सेवाएं, निजता का अधिकार, पर्यावरण संरक्षण, सीएनजी ईधन केस, केशवानंद भारती, पेगासस केस, प्रकाश सिंह केस, विधान सभा शक्ति परीक्षण विवाद, आदि मामलों के माध्यम से विषय का विवेचनात्मक दृष्टिकोण दिया. स्वागत विधि संकाय के प्रमुख प्रो. अली मेहंदी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन प्रो एके पांण्डेय, शताब्दी समारोह समन्वयक ने दिया. कार्यक्रम संचालन डॉक्टर क्षेमेंद्र मणि त्रिपाठी ने किया. विधि संकाय के प्रथम वर्ष के छात्रों ने इस आयोजन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.

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वाराणसी: काशी हिन्दू विश्वविधालय के विधि संकाय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुनीत कुमार का विशिष्ट व्याख्यान "क्या न्यायपालिका अपने क्षेत्राधिकार को पार कर कार्य कर रही हैं? " के विषय पर आयोजन किया गया.

यह कार्यक्रम संकाय के शताब्दी समारोह के अंतर्गत आयोजित किया गया. माननीय न्यायमूर्ति ने विषय को इंगित किया कि न्यायपालिका अपने संवैधानिक क्षेत्राधिकार के सीमा के अंतर्गत ही कार्य करती है. उन्होंने इस विषय की प्रस्तावना में इस बात की ओर इशारा किया कि कार्यपालिका और न्यायपालिका में संविधान के अंतर्गत ही आपसी टकराव के कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, विशेष तौर पर मौलिक अधिकार और राज्य के नीति-निर्देशक तत्व. जिसकी वजह से न्यायपालिका को उन क्षेत्रों में जोकि कार्यपालिका का मूलतः क्षेत्र है, उनमें हस्तक्षेप करना पड़ता है.

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उसमें कुछ विधिक प्रश्न ऐसे आ जाते हैं. जिसके कारण इनका निष्पादन करना न्यायपालिका की संवैधानिक जिम्मेदारी है. संविधान के निर्माण में नेहरू रिपोर्ट, 1928, कांग्रेस रिपोर्ट, 1931 और पूना पैक्ट, 1932, जिसमें कि पं. मदन मोहन मालवीय का भी योगदान था. संविधान के निर्माण में उनकी एक विशिष्ट भूमिका रही है. न्यायमूर्ति ने शाहबानो, बाबरी मस्जिद, जम्मू कश्मीर में इंटरनेट सेवाएं, निजता का अधिकार, पर्यावरण संरक्षण, सीएनजी ईधन केस, केशवानंद भारती, पेगासस केस, प्रकाश सिंह केस, विधान सभा शक्ति परीक्षण विवाद, आदि मामलों के माध्यम से विषय का विवेचनात्मक दृष्टिकोण दिया. स्वागत विधि संकाय के प्रमुख प्रो. अली मेहंदी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन प्रो एके पांण्डेय, शताब्दी समारोह समन्वयक ने दिया. कार्यक्रम संचालन डॉक्टर क्षेमेंद्र मणि त्रिपाठी ने किया. विधि संकाय के प्रथम वर्ष के छात्रों ने इस आयोजन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.

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