वाराणसीः उत्तर भारत में दीपावली के दिन लक्ष्मी गणेश की पूजा का विधान है. वहीं दूसरी तरफ पूर्वी भारत में मां काली के पूजा का विधान है, लेकिन शिव की नगरी काशी में सारे रंग एक साथ देखने को मिलते हैं. दरअसल दीपावली के दिन जिले में बंगीय समाज के लोगों ने मां काली की प्रतिमा को स्थापित किया था. मंगलवार को तीन दिवसीय काली पूजा का समापन कर मां काली की प्रतिमा को विसर्जित किया गया.
तीन दिवसीय काली पूजा का समापन
मिनी बंगाल कहे जाने वाली काशी नगरी में दीपावली के दिन स्थापित की गई मां काली की प्रतिमा को मंगलवार को विसर्जित किया गया. दरअसल बंगाली रिती रिवाज से दीपावली के दिन मां काली की प्रतिमा को स्थापित किया गया था. मान्यता है कि इस पूजा में शामिल होने से राहु और केतु ग्रह के दोषों से मुक्ति मिलती हैं.
अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए गए
मंगलवार देर शाम ढोल की थाप के बीच भक्तों ने पदयात्रा कर मां काली की प्रतिमा को सरोवर तक ले गए, फिर पूजा और आरती के बाद मां की विदाई की गई. अलग-अलग पूजा पंडालों में तीन दिनों तक अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए गए. कहीं सांस्कृतिक कार्यक्रम की बहार रही. कहीं भंडारे के साथ गरीबों को कंबल बांटा गया. जिले के भेलूपुर स्थित प्राचीन शंकुधारा कुंड में देर शाम से ही मां काली के प्रतिमाओं का विसर्जन का क्रम जारी रहा.
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तीन दिवसीय मां काली की पूजन के बाद लोगों ने पूरे विधि विधान से मां की विदाई की. साथ ही लोगों ने विभिन्न स्थानों से होते हुए शोभायात्रा निकाली. इसके बाद पवित्र कुंड में मां की प्रतिमा को विसर्जित किया गया.
-अहिन्दर नारायण भट्टाचार्य, श्रद्धालु