वाराणसी: देश में पहली बार गोबर और गोमूत्र पर एक साथ वैज्ञानिक रिसर्च होने जा रहा है. यह वैज्ञानिक रिसर्च भारत सरकार द्वारा IIT-BHU से कराया जा रहा है. गायों के गोबर और गोमूत्र से किसानों की आय बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने यह पहल की है. इस पहल से न सिर्फ किसानों को आर्थिक लाभ मिलेगा, बल्कि गोबर और गोमूत्र का वैज्ञानिक प्रयोग अन्य वैज्ञानिक शोधों में किया जा सकेगा. इसके साथ ही इससे अलग-अलग कार्यों को किया जाएगा. इसके लिए भारतीय और विदेशी नस्ल की गायों पर अध्ययन हो रहा है.
देश में गाय का गोबर प्रयोग करने की पुरानी परंपरा रही है. धार्मिक आयोजनों में गांव और शहर में गाय के गोबर का प्रयोग किया जाता है. ऐसे ही कई दवाओं में गाय के गोमूत्र का प्रयोग फायदेमंद होने का दावा किया जाता है. अब इन सभी बातों को साइंटिफिक बल देने के लिए IIT-BHU में इस पर शोध कार्य किया जा रहा है. इसके साथ ही किसानों की आय को गाय के गोबर और गोमूत्र से कैसे बढ़ाया जा सकता है, इस पर भी अध्ययन किया जा रहा है. इसमें देसी नस्ल की साहीवाल आदि गायों पर अध्ययन हो रहा है.
देसी गायों पर ध्यान दे सकेंगे किसान: उन्होनें बताया कि वैज्ञानिक अध्ययन से पता करेंगे कि जो हमारी वर्षों से चली आ रही परंपराएं हैं, उसका वैज्ञानिक क्या है. इसका फायदा ये होगा कि किसान जो सिर्फ दूध के लिए जर्सी गाय जैसी गाय के पीछे जा रहे हैं वो अपने यहां की देसी गाय पर उतना ही ध्यान देंगे. क्योंकि उनको यह पता चलेगा कि दूध के अलावा उनको गोबर और गौमूत्र से भी आर्थिक फायदा हो सकता है. साहीवाल जैसी प्रजाति की गाय का भी महत्व हम बताने की कोशिश कर रहे हैं.
अलग-अलग ब्रीड की गायों पर शोध: IIT BHU में बायोकैमिकल इंजीनियरिंग में रिसर्च स्कॉलर कैलाशपति पांडेय ने बताया कि भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरह की गाय पाई जाती हैं, जोकि देसी गाय हैं, इनपर स्टडी की जा रही है. भारत के अलग-अलग हिस्सों की अलग-अलग जलवायु होती है. इन हिस्सों में पाई जाने वाली गायों का खान-पान और रहन-सहन भी मायने रखता है. हम यह देखना चाहते हैं कि जिस देश में देसी गाय की अलग-अलग ब्रीड्स हैं, उनमें जो गोबर और गोमूत्र हैं उनमें क्या असमानताएं हैं. जो उन्हें विदेशी गायों की ब्रीड से अलग बनाती है.
गोमूत्र में अनेको रोगों की प्रतिरक्षा क्षमता: कैलाशपति ने बताया कि हमने भारत के विभिन्न हिस्सों में जाकर जो हमारी भारतीय गाय हैं उनका गोबर और गौमूत्र इकट्ठा किया. इसके बाद जीसीएम से जांच कराया. वहीं गोबर का मेटाजीनोमिक एनालिसिस कराया. हमें गोमूत्र के बारे में पता चला कि उसमें ऐसे कमंपाउंड होते हैं, जिनमें अनेकों रोगों की प्रतिरक्षा क्षमता होती है. ऐसी क्वालिटी बाहर की गायों जैसी जर्सी आदि में नहीं पाई जाती है. देसी गायों का माइक्रोबियली रिच होता है. उसमें ऐसे बहुत सारे लाभप्रद बैक्टीरिया होते हैं जोकि बाहर की ब्रीड में नहीं पाए जाते हैं.
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